विपुल रेगे। शुक्रवार रिलीज हुई ‘शैतान’ को देखने के लिए यदि दर्शक लालायित हैं तो इसका श्रेय निर्देशक को नहीं बल्कि केवल आर.माधवन को जाता है। फिल्म से माधवन को निकाल दीजिये तो कुछ बाकी नहीं रह जाएगा। एक अधपकी पटकथा को लेकर निर्देशक शूटिंग शुरु कर देता है तो सारा दारोमदार केवल केंद्रीय भूमिका निभाने वाले कलाकार पर आ जाता है। ‘शैतान’ निर्देशक की नहीं, बल्कि अभिनेता की फिल्म है। बहुत सी गलतियां होने के बावजूद हमें माधवन के बेहतरीन नेगेटिव किरदार को देख संतोष करना पड़ता है।
निर्देशक विकास बहल के निर्देशन में बनी फ़िल्में इन दिनों अच्छा परफॉर्म नहीं कर पा रही हैं। ऋत्विक रोशन के साथ उन्होंने 2019 में ‘सुपर 30’ बनाई थी। इस फिल्म के बाद से विकास सफलता के लिए तरस गए हैं। हाल ही में उनकी एक वेब सीरीज ‘सन फ्लावर 2’ रिलीज हुई है लेकिन ये बुरी तरह फ्लॉप रही। टाइगर श्रॉफ को लेकर ‘गणपत’ बनाई, जो बुरी तरह पिटी। अब वे ‘शैतान’ लेकर आए हैं। ‘शैतान’ ने पहले दिन 14.75 करोड़ का कलेक्शन किया है। ये एक अच्छी शुरुआत है। लगभग 60 करोड़ बजट से बनी फिल्म के लिए पहले दिन की ऐसी शुरुआत बढ़िया कही जा सकती है। भारत में हॉरर जॉनर की फिल्मों की सफलता का प्रतिशत बहुत कम है। इक्का-दुक्का फिल्म ही सफल हो पाती है। विकास बहल ने ‘शैतान’ का हॉरर अपने अंदाज़ में गढ़ा है। पहले दिन अच्छे कलेक्शन के बाद निर्माता अजय देवगन उत्साहित होंगे। उन्होंने अपनी फिल्म का ओटीटी करार नेटफ्लिक्स के साथ किया है। इसे देखते हुए आगे-पीछे फिल्म लागत वसूल तो कर ही लेगी।
कहानी – कबीर ऋषि एक चार्टर्ड अकाउंटेंट है। वह अपनी पत्नी ज्योति, बेटी जान्हवी और बेटे ध्रुव को लेकर फॉर्म हॉउस पर जा रहा है। बीच रास्ते में ये परिवार ढाबे पर रुककर खाना खा रहा है। यहाँ उनसे वनराज कश्यप मिलता है। वनराज कश्यप उनसे घनिष्ठता बढ़ा लेता है। खाने की टेबल पर वह जान्हवी को खाने के लिए एक लड्डू देता है। लड्डू खाने के बाद जान्हवी पूरी तरह वनराज के कंट्रोल में आ जाती है। जब ये परिवार अपने फॉर्म हॉउस पहुँचता है, तो वनराज वहां भी पहुँच जाता है। इस एक रात में वनराज इस परिवार का जीवन तहस नहस कर देता है। वनराज उन्हें बताता है कि वह इंसान नहीं है, बल्कि इंसानों की श्रेणी से बहुत आगे जा चुका है। वनराज जान्हवी को अपने नियंत्रण में कर उसे अपने अड्डे पर ले जाता है। अब कबीर का एक ही उद्देश्य है कि वह वनराज के चंगुल से अपनी बेटी को छुड़ाए।
अभिनय : वास्तव में ‘शैतान’ को कलाकारों के अभिनय के लिए देखा जाना चाहिए। विकास बहल ने अपने लचर निर्देशन से फिल्म को जितना बेहाल किया, उतना ही माधवन और जानकी बोदीवाला ने अपने सुंदर अभिनय से फिल्म को संवार दिया। हां ये फिल्म पूरी तरह से माधवन की फिल्म है। उनका विराट स्वरुप अंत तक फिल्म पर छाया रहता है। ये एक ऐसा शैतान है, जो गेटअप से शैतान नहीं दिखता, बल्कि हावभाव और इरादों से शैतान प्रतीत होता है। माधवन दर्शक के दिल की धड़कन को बाहर निकाल लाने में सफल रहे हैं। फिल्म में उनकी एंट्री होते ही एक भय महसूस होता है। माधवन की प्रेजेंस इतनी ज़ोरदार रही है कि अजय देवगन उनके सामने बहुत फीके दिखाई दिए हैं। जान्हवी का किरदार निभाने वाली जानकी बोदीवाला जबरदस्त कलाकार हैं। माधवन जैसे उच्च श्रेणी के कलाकार के साथ उन्होंने बढ़िया जुगलबंदी बनाई है। अजय देवगन ने वैसा ही अभिनय किया है, जैसा वे अन्य फिल्मों में दिखाते हैं। देवगन अपने किरदार में कुछ अलग नहीं कर पाते। वे माधवन की तरह ‘आउट ऑफ़ बॉक्स’ जाकर परफॉर्म नहीं कर सके।
निर्देशन : विकास बहल ने अपने निर्देशन में बड़ी गंभीर गलतियां की हैं। हॉरर जॉनर की फिल्मों में एक ‘दैवीय तत्व’ हमेशा मौजूद होता है, जो इस फिल्म से नदारद है। कबीर ऋषि को एक शैतान से लड़ना है तो उसे दैवीय सहायता की ज़रुरत होगी। वह कितनी भी अच्छी इच्छा शक्ति वाला हो, बुरी आत्माओं को हरा नहीं सकता। अतार्किकता दिखाते हुए निर्देशक विकास बहल ने दैवीय सहायता नहीं दिखाई है। वे यदि ‘शैतान’ का अस्तित्व दिखा रहे हैं तो उन्हें ‘दैवीय’ का अस्तित्व भी दिखाना होगा। लिहाजा ये बात नहीं पचती कि एक साधारण सा चार्टर्ड अकाउंटेंट एक शैतानी शक्ति को दिमागी चालबाज़ियों से परास्त कर दे। दूसरी गलती ये कि अधिकांश फिल्म एक ही घर में फिल्मा दी गई है। इन ढाई घंटों में निर्देशक ने तनाव का स्तर बहुत अधिक रखा है। जबकि हॉरर फिल्मों में कुछ दूसरे प्रसंग डालकर माहौल को हल्का किया जाता है, ताकि दर्शक की फिल्म देखने की क्षमता ही न चूक जाए। हॉरर फिल्म होते हुए भी इसमें हॉरर कम है और मानसिक प्रताड़ना अधिक। दर्शक डरता नहीं बल्कि तनाव में जाता है।
‘शैतान’ शुरुआती फेज़ में अच्छा प्रदर्शन कर पा रही है तो उसका श्रेय केवल माधवन को जाना चाहिए। एक अधपकी फिल्म जो डराती कम है, मानसिक रुप से अधिक प्रताड़ित करती है। शुरुआती आधे घंटे के बाद फिल्म अपनी ग्रिप खो बैठती है। एक ही घर में आधे से अधिक फिल्म फिल्माने से दृश्यों में एकरसता आने लगती है। एक मोड़ पर आकर दर्शक सोचने लगता है कि फिल्म ख़त्म कब होगी। सोमवार से ‘शैतान’ के कलेक्शन में कमी आएगी क्योकि ये जल्दबाज़ी में तैयार किया गया ‘अधपका प्रोडक्ट’ है, इसका थोड़ा सा कुरकुरापन मात्र माधवन के सौंधे अभिनय में बसा हुआ है।