Rajinder Singh.
कवि और इतिहासकार ज्ञानी ज्ञान सिंह अपनी प्रसिद्घ रचना ‘तवारीख़ गुरू ख़ालसा’ (१९४८-१९४९ विक्रमी) में बताते हैं कि गुरु नानकदेव के समकालीन मुस्लिम शासक सुल्तान सिकन्दर लोधी के शासनकाल (१५४६-१५७४ विक्रमी = १४८९-१५१७ ईसवी) में हिन्दुओं पर बड़े-बड़े ज़ुल्म किए जा रहे थे। उसने हिन्दुओं पर मुण्डका, जज़िया और करा नामक तीन कर=टैक्स इस प्रकार थोप रखे थे-
१) हर एक पगड़ी बांधे आदमी पर = मुण्डका
२) वेश्याओं के चकलों, दुकानों और कारख़ानों पर = जज़िया
३) ज़मीनों पर = करा
ज्ञानी जी आगे लिखते हैं कि सुल्तान सिकन्दर लोधी “मुसलमान रियाया से सिवाय बटाई (चौथे हिस्से खेती) के कुछ नहीं लेता था। इस (भारी कर रूपी) दुःख से अनेक हिन्दू मुसलमान बन रहे थे। ‘तुज़के सिकन्दरी’ में मुसलमानों को अपनी वडियाई (बड़प्पन) दिखाने के वास्ते सिकंदर लोदी स्वयं लिखता है, “मैंने हिन्दू काफ़िरों को अमन नहीं दिया, (बल्कि) उनके ७३२ मन्दिर तोड़ कर मस्जिद बनाने के लिए बुतों का चूना करवा कर मस्जिदों में लगा दिया। १९ हज़ार काफ़िरों को मोमिन बनाया और १३ हज़ार को क़त्ल करवा छोड़ा जो मेरी निज़ात का बायस है।” (तवारीख़ गुरू ख़ालसा, भाग-१, गुरु गोविन्द सिंह प्रेस, सियालकोट, १९४८ विक्रमी, पृष्ठ ७६-७७)।
बड़ी संख्या में होता था गोवध
गुरु अर्जुनदेव के सगे भतीजे और शिष्य सोढ़ी मनोहरदास मेहरबान (१६३७-१६९७ विक्रमी) कृत “जनमसाखी भगत कबीर जी की” (लगभग १६६७ विक्रमी) की साखी ४ और ९४ से ज्ञात होता है कि सुल्तान सिकन्दर लोधी के शासन काल में सात मोक्ष-दायिनी पुरियों में अग्रणी काशी में भी बड़े व्यापक स्तर पर गोवध किया जाता था (जनमसाखी भगत कबीर जी की, १६६७ विक्रमी, डा• नरिन्दर कौर भाटिया द्वारा सम्पादित, गुरु नानकदेव यूनीवर्सिटी, अमृतसर, १९९५ ईसवी, साखी ४ और ९४)।
ऐसा ही बृहत्तर पंजाब में भी किया जाता था। इस विषय में गुरु गोविन्द सिंह के दीवान भाई मनी सिंह (१७०१-१७९१ विक्रमी) अपनी रचना ‘पोथी जनम-साखी : गिआन रतनावली’ (१७८७ विक्रमी) में बताते हैं कि जब गुरु नानकदेव भाई मरदाना रबाबी = रबाब वादक के साथ लाहौर नगर के, जिसे मूल रूप में श्रीराम के कनिष्ठ पुत्र लव ने लवपुर के नाम से बसाया था, क़साईपुरे में आए तो वहां पर सवा पहर दिन चढ़े तक मुसलमानों द्वारा गोवघ किया जाता देखकर द्रवित हो उठे और अपने साथी से बोले, “हम लव की नगरी जानकर यहां आए थे। परन्तु यहां म्लेच्छों का जो राज है, इस वास्ते सवा पहर तक ज़हर-क़हर बरसता रहता है। सो हम दसवां अवतार धार कर म्लेच्छों का नाश करेंगे और तब भी धर्म का राज करेंगे।” (पोथी जनमसाखी : गिआन रतनावली (१७८७ विक्रमी), चिराग़ुद्दीन-सिराजुद्दीन मुस्तफ़ाई छापाख़ाना, लाहौर, १९४७ विक्रमी, पृष्ठ २६५)।
प्रसंगवश यहां पर म्लेच्छ शब्द का शास्त्रसम्मत अभिप्राय जान और समझ लेना लाभकारी होगा। ‘शुक्रनीतिसार’ १/४४ के अनुसार अपने धर्माचरण का त्याग करने वाले, दयाहीन, परपीड़क, प्रचण्ड और नित्य ही हिंसा करने वाले अविवेकीजन निश्चय ही म्लेच्छ कहलाते हैं।
‘चाणक्यनीतिदर्पण’ ११/१६ के अनुसार बावली, कूप, तालाब, आराम (वाटिका), सरोवर अथवा मन्दिर का निराशंक होकर उच्छेद करने वाला व्यक्ति म्लेच्छ कहलाता है।’बौधायन’ के अनुसार गोमांस-भक्षक, शास्र-विरुद्ध अस्पष्ट=अपशब्द=अशुद्ध बोलने वाला और सर्व-आचारों से हीन मनुष्य म्लेच्छ कहा जाता है (डा• पाण्डुरंग वामन काणे कृत धर्म- शास्त्र का इतिहास, भाग-३, लखनऊ, पृष्ठ १०७४)।
चूंकि उपरोक्त लक्षणों में से अधिकांशतः मुसलमान आक्रान्ता-शासकों पर पूर्णतः घटते थे, इसलिए गुरु नानकदेव और उनके उत्तराधिकारी गुरुओं ने उन घोर निर्दयी और अत्याचारी लोगों और उनके समर्थकों को म्लेच्छ बताया है।
इस प्रकार उपरोक्त प्रमाणों से यह सुस्पष्ट हो जाता है कि सुल्तान सिकन्दर लोधी के शासनकाल में हिन्दू न केवल तीन प्रकार के भारी करों के बोझ से दबे-पिसे हुए थे, अपितु व्यापक गोवध के कारण अनेकविध आहत भी हो रहे थे।
नोट: लेखक स्वयं इतिहासकार हैं।
Web Title: History of Lodhi Dynasty-1
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