अनन्त कथामृत से साभार
प्राकट्य एवं लीला-सागर : युवावस्था को छूती वय का भस्मल लपेटे कौपीनधारी जटायुक्त एक जोगी बाबा हाथों में चिमटा-कमण्डल लिये ग्राम नीब करौरी (जिला फर्रूखाबाद, उप्र) के बीच से होते हुए गंगा स्नान हेतु फर्रूखाबाद जाया करते थे। वय, वेश तथा मुख मण्डल के तेज से प्रभावित ग्रामवासियों ने एक दिन आपस में मंत्रणा कर जोगी से ग्राम में ही बस जाने का अग्रह किया।
जोगी ने भी स्नाकन के बाद पुन: वहीं लौट आने का आश्वामसन दे दिया और स्नामनोपरांत लौटकर ग्राम कें एक विशाल वृक्ष के नीचे (जिसमें एक साथ नीम और पीपल के तने एक सूत्र में बंधे अपनी अपनी उंचाई व फैलाव लिये खडे थे) आसन जमा लिया। शीघ्र ही ग्राम के कुछ लोग वहा एकत्रित हो गये और जोगी की इच्छाैनुसार पास के एक खेत में भूमि खोदकर उनके आवास के लिए एक बडी गुफा बना दी और सर्वकालीन बाबा नीम करौरी जी महाराज अब बाबा लछमनदास बनकर नीब करौरी ग्राम में रहने लगें।
समकालीन भक्तोा के लिए एकादशरूद्रावतार बाबा जी महाराज की आविर्भाव लीला नीब करौरी धाम से प्रारम्भ होती हैं और यहीं से प्रारम्भ होती है उनकी अलौकिक कल्याजणमयी लीलायें क्रमश:…
साभार: अनंत कथामृत के सौजन्य से