श्वेता पुरोहित। आज माघ पूर्णिमा है। प्रत्येक वर्ष १२ पूर्णिमा व्रत रखे जाते हैं। इन सभी में माघ मास में पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है। माघ मास में आने के कारण इस तिथि को माघी पूर्णिमा या माघ पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन स्रान, दान और पूजा-पाठ करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और भक्तों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। इस वर्ष माघ पूर्णिमा व्रत।
चंद्रमा आज केतु के मघा नक्षत्र में है। मघा नक्षत्र में हव्य-कव्य के द्वारा पूजे गए सभी पितृगण धन-धान्य, भृत्य, पुत्र तथा पशु प्रदान करते हैं। आज के दिन दान करने का बहुत महत्व है क्योंकि मघा नक्षत्र के अधिष्ठाता देव पितृगण हैं और केतु दान कर्म को दर्शाता है। इसके साथ ही ये माघ मास में है।
माघ की पूर्णिमा के दिन तिल, सूती कपड़े, कम्बल, रत्न, कंचुक, पगड़ी, जूते आदिका अपने वैभवके अनुसार दान करके मनुष्य स्वर्गलोक में सुखी होता है। जो उस दिन भगवान् शङ्कर की विधिपूर्वक पूजा करता है, वह अश्वमेध यज्ञका फल पाकर भगवान् विष्णु के लोक में प्रतिष्ठित होता है।
माघे निमग्नाः सलिले सुशीते
विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति ॥
(२३८। ७८)
अर्थात्:
माघ मास में शीतल जल के भीतर डुबकी लगाने वाले मनुष्य पापमुक्त हो स्वर्गलोक में जाते हैं। सनातन संस्कृति में माघ मास में स्नान का विधान है।
वसिष्ठजी कहते हैं – माघ मास आने पर बस्ती से बाहर जहाँ-कहीं भी जल हो, उसे सब ऋषियों ने गंगाजल के समान बतलाया है; तथापि मैं तुम से विशेषतः माघस्नान के लिये मुख्य-मुख्य तीर्थों का वर्णन करता हूँ। पहला है – तीर्थराज प्रयाग। वह बहुत विख्यात तीर्थ है। प्रयाग सब तीर्थों में कामना की पूर्ति करने वाला तथा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष-चारों पुरुषार्थों को देने वाला है। उसके सिवा नैमिषारण्य, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार, उज्जैन, सरयू, यमुना, द्वारका, अमरावती, सरस्वती और समुद्र का संगम, गंगा-सागर-संगम, कांची, त्र्यम्बक तीर्थ, सप्त-गोदावरीका तट, कालंजर, प्रभास, बदरिकाश्रम, महालय, ओंकारक्षेत्र, पुरुषोत्तमक्षेत्र-जगन्नाथपुरी, गोकर्ण, भृगुकर्ण, भृगुतुंग, पुष्कर, तुंगभद्रा, कावेरी, कृष्णा-वेणी, नर्मदा, सुवर्णमुखरी तथा वेगवती नदी – ये सभी माघ मास में स्नान करनेवालों के लिये मुख्य तीर्थ हैं।
गया नामक जो तीर्थ है, वह पितरों के लिये तृप्ति दायक और हितकर है। ये भूमिपर विराजमान तीर्थ हैं, जिनका मैंने तुमसे वर्णन किया है। अब मानस तीर्थ बतलाता हूँ, सुनो। उनमें भलीभाँति स्नान करने से मनुष्य परम गति को प्राप्त होता है।
सत्यं तीर्थं क्षमा तीर्थं तीर्थमिन्द्रियनिग्रहः ॥
सर्वभूतदया तीर्थं तीर्थमार्जवमेव च ।
दानं तीर्थं दमस्तीर्थं संतोषस्तीर्थमेव च ॥
ब्रह्मचर्यं परं तीर्थं नियमस्तीर्थमुच्यते ।
मन्त्राणां तु जपस्तीर्थं तीर्थं तु प्रियवादिता ॥
ज्ञानं तीर्थं धृतिस्तीर्थमहिंसा तीर्थमेव च।
आत्मतीर्थं ध्यानतीर्थं पुनस्तीर्थं शिवस्मृतिः ॥
तीर्थानामुत्तमं तीर्थं विशुद्धिर्मनसः पुनः।
न जलाप्लुतदेहस्य स्नानमित्यभिधीयते ॥
स स्नातो यो दमस्नातः शुचिस्निग्धमना मतः ।
अर्थात्:
सत्यतीर्थ, क्षमातीर्थ, इन्द्रिय-निग्रह तीर्थ, सर्वभूतदया तीर्थ, आर्जव (सरलता) तीर्थ, दान तीर्थ, दम (मनोनिग्रह) तीर्थ, सन्तोष तीर्थ, ब्रह्मचर्य तीर्थ, नियमतीर्थ, मन्त्र-जपतीर्थ, प्रियभाषण तीर्थ, ज्ञान तीर्थ, धैर्य तीर्थ, अहिंसा तीर्थ, आत्म तीर्थ, ध्यान तीर्थ और शिवस्मरण तीर्थ – ये सभी मानस तीर्थ हैं।
मन की शुद्धि सब तीर्थों से उत्तम तीर्थ है। शरीर से जल में डुबकी लगा लेना ही स्नान नहीं कहलाता। जिसने मन और इन्द्रियों के संयम में स्नान किया है, वास्तव में उसी का स्नान सफल है; क्योंकि वह पवित्र एवं स्नेहयुक्त चित्तवाला माना गया है।
आज अपने पितरों और कुल देवों का स्मरण अवश्य कीजिए और उन्हें प्रणाम कीजिए और उनसे आशिर्वाद लीजिए. अगर आपका मन करे तो अपने पितरों के नाम पर दान भी करें.
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श्री पितृ गायत्री मंत्र
ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात् ॥
ॐ आद्य भूताय विद्महे सर्व सेव्याय धीमहि ।
शिव शक्ति स्वरूपेण पितृ देव प्रचोदयात् ||
ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च ।
नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः ) ||