निर्देशक अनुराग कश्यप धूसर रंगों से अपना सिनेमाई संसार रचते हैं। ‘मनमर्जियां’ उनका रचा गया एक ‘धूसर प्रेम त्रिकोण’ है। बोल्ड पत्नी, दीवाना प्रेमी और अत्यंत परोपकारी पति। हर त्रिकोणीय प्रेमकथा का परिणाम पहले से अनुमानित होता है। एक कोण को कथा से बाहर हो जाना पड़ता है। अनुराग कश्यप की ये त्रिकोणीय प्रेम कथा अपनी बात तो कहती है लेकिन बड़े निर्मम ढंग से। प्रेम की कोमलता वासना के प्रहारों से लहूलुहान हो जाती है। अनुराग कश्यप की इस फिल्म में तनाव और कामुकता इतनी अधिक है कि ‘प्रेम’ कहीं कोने में दुबका बैठा रहता है।
विक्की एक लापरवाह प्रेमी है। रूमी का साथ उसे चाहिए लेकिन वह शादी नहीं करना चाहता। रूमी शादी करती है रॉबी से। रॉबी ऐसा जीव है जो सच्चाई के धरातल पर तो नहीं पाया जाता। इस विषय पर संजय लीला भंसाली की ‘हम दिल दे चुके सनम’ एक श्रेष्ठ फिल्म थी। निर्देशक ने अपने अंदाज़ में ‘दिल दे चुके सनम’ बना डाली है। कहानी को वास्तविकता के साथ पेश करने के लिए अनुराग कश्यप ऑन स्क्रीन गाली-गलौज से भी गुरेज नहीं करते। एक प्रेम कथा को वास्तविकता के साथ प्रस्तुत करने में एक बड़ी समस्या आती है। कहानी झुलस जाती है। ‘मनमर्जियां’ में यही हुआ है। अनुराग कश्यप ने प्रेम कहानी को गुनगुनी आंच पर पकाने के बजाय उसे आग में ही झोंक दिया।
महानगरों में रहने वाले फिल्म निर्देशक और नामचीन फिल्म समीक्षक सोचते हैं कि आज के दौर के इश्क में दैहिक सम्बन्ध बेख़ौफ़ बनते हैं। ऐसा कुछ प्रतिशत युवाओं में होना मुमकिन है लेकिन अनुराग जैसे निर्देशक दुनिया के हर प्रेम को वासना से लिप्त मानते हैं। ये समझ नहीं आता कि प्रेम त्रिकोण दिखाने के लिए पति-पत्नी को साथ बैठकर शराब पीना क्यों जरुरी है। पत्नी को कंडोम के बारे में भद्दा मज़ाक करना जरुरी है। किरदारों को अनावश्यक ढंग से बोल्ड बनाने की कोशिश बॉक्स ऑफिस पर बहुत भारी पड़ रही है। स्क्रीनप्ले में गंभीर खामियां दिखाई देती है। अभिषेक बच्चन का किरदार भ्रामक तरीके से स्थापित किया गया है।
निर्देशक इतना अवसाद में डूबा है कि सहज प्रणय दृश्यों में भी अकारण आक्रमकता दिखा रहा है। अनुराग की शैली के निर्देशकों की फिल्मों में दैहिक सम्बन्ध बनाने से पहले प्रेमी जंगलियों की तरह क्यों लड़ते हैं, ये खोज का विषय है। इसी तरह के अनावश्यक दृश्यों की फिल्म में भरमार है। महानगरीय दर्शकों ने इस फिल्म को स्वीकार किया है लेकिन छोटे शहरों के दर्शकों ने नकार दिया है। फिल्म न तो मनोरंजन दे पाती है और न इसमें से कोई सन्देश निकल कर आ पाता है। दर्शक जब फिल्म देखकरथियेटर से बाहर आता है तो अंतिम निर्णायक दृश्य के अलावा पूरी फिल्म को बेवजह, बेकार पाता है।
तापसी पन्नू का किरदार कन्फ्यूजन से भरा हुआ है। प्रेमी के साथ भागने पर लौट आना, रॉबी के साथ बेमन से शादी करना, उसके बाद फिर तलाक लेकर प्रेमी के पास लौटना। तलाक लेने के बाद फिर पति के पास जाना। ये आवन-जावन कैरेक्टर दर्शकों के दिलों-दिमाग के कई फ़ीट ऊपर से निकल गया। ऐसे कन्फ्यूजिंग किरदार दर्शक की खीज को बढ़ाने का ही काम करते हैं। अनुराग कश्यप को अपनी लाइन का सिनेमा बनाना चाहिए। प्रेम कथा बनाना उनके बस की बात नहीं है। इश्क के नाज़ुक अहसासों को आप इस कदर तार-तार करेंगे तो दर्शक फिल्म को नकारेगा ही।
अनुराग कश्यप को एक सबक मिल गया है कि बॉक्स ऑफिस पर अपनी ‘मन मर्जियां’ नहीं चला करती। यदि आप अपने मन की मर्जी चलाते हो तो ऐसा खामियाजा उठाना पड़ता है। इस फिल्म को देखना यानी समय और मन की शांति खराब करने के बराबर है। अभिषेक बच्चन की वापसी बहुत निस्तेज रही है। अब उन्हें दूसरी ‘कमबैक मूवी’ की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। ये टिकट खर्च कर देखने वाली फिल्म कतई नहीं है।
URL: anurag kashyap’s ‘manmarziyaan’ is not worth spending money.
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