फ़िल्म केदारनाथ में श्री केदारनाथ की त्रासदी को घटिया प्रेम कथा और तीर्थ को हनीमून स्पॉट बनाने में कोई कसर नही छोड़ी गई है! एक काल्पनिक कथा पर फिल्म बनाई जाए तो ये सामान्य बात होती है लेकिन कोई काल्पनिक कहानी किसी वास्तविक घटना के केंद्र में रची जाए तो बात सामान्य नहीं होती। निर्देशक अभिषेक कपूर की फिल्म ‘केदारनाथ’ के साथ ऐसा ही कुछ असामान्य है। सामने आ रही जानकारियों और फिल्म का ताज़ा प्रोमो देखने के बाद पता चला है कि केदारनाथ त्रासदी की पृष्ठभूमि में रची गई इस काल्पनिक प्रेम कहानी का नायक एक मुस्लिम पिट्ठू है और नायिका भगवान के दर्शन को आई एक आधुनिक भक्तन है। क्या निर्देशक ऐसा करके अपनी फिल्म की सफलता को सुनिश्चित करना चाहता है।
सन 2013 में केदारनाथ में प्रकृति ने तांडव मचाया था। दस हज़ार से अधिक लोग मारे गए। हज़ारो लोग लापता हो गए। सैकड़ों ऊँची पहाड़ियों पर ठण्ड से कंपकंपाते जान दे बैठे। केदारनाथ त्रासदी भारत के सीने पर लगा ऐसा जख्म है, जिसके निशान कई दशकों तक हमें सिरहाते रहेंगे। केदारनाथ में उस समय कई लोग मिले होंगे, बिछुड़े होंगे। ऐसी भीषण परिस्थितियों में मदद करने वाले और मदद पाने वाले में एक आत्मीय नाता बनने की सम्भावना होती है। सम्भावना प्रेम में बदल जाए इसकी भी सम्भावना होती है। प्रेम तो युद्ध की भीषण परिस्थितियों में भी पनप सकता है। लेकिन उस प्रेम को ‘हिन्दू-मुस्लिम’ रंग देने का प्रयास निश्चित रूप से विवाद को जन्म देगा।
विवाद केवल मुस्लिम प्रेमी और हिन्दू प्रेमिका से नहीं होगा बल्कि इसमें दिखाए गए प्रणय दृश्यों से भी होगा। फर्ज कीजिये आप केदारनाथ हादसे के बीचोबीच खड़े हैं। चारों ओर मौत पसरी पड़ी है। हर कदम पर किसी की लाश दिखाई देती है। रोते बिलखते लोग अपने परिवार जन को खोज रहे हैं। क्या ऐसे माहौल में कोई किसी को लिप किस कर सकता है। केदारनाथ फिल्म में नायक-नायिका का एक अदद चुम्बन दृश्य भी दिखाया गया है। केदारनाथ हादसा फिल्म बनकर सामने आए तो इससे किसी को एतराज नहीं होगा। सच्ची घटनाओं का समावेश किया जाए। अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों की जान बचाने की सत्य घटनाएं डाली जाए। लेकिन हम देख रहे हैं कि अभिषेक कपूर के लिए केदारनाथ हादसा उनकी वयस्क प्रेम कथा की पृष्ठभूमि भर है।
फिल्म के पोस्टर पर अंग्रेजी में लिखा हुआ है ‘प्रेम एक तीर्थ यात्रा है’। विवाद तो यहाँ भी होगा। निर्देशक एक काल्पनिक कथा को एक सच्चे हादसे के केंद्र में रचता है। भीड़ जुटाने और विवाद पैदा करने के लिए नायक को मुस्लिम बताता है। उनके बीच प्रणय दृश्य फिल्माता है। इतने जख्म देश के एक धर्म के मानने वालों को देने के बाद तीर्थ यात्रा को प्रेम बताकर नमक भी छिड़कता है। फिल्म उद्योग ने इसे ट्रेंड बना लिया है। पहले हिन्दू-मुस्लिम करके विवाद पैदा करना। फिल्म को दूसरे पक्ष द्वारा कोर्ट में ले जाना। कोर्ट ऐसे मामलों ने निर्देशक को बिना जांचे क्लीन चिट दे ही देता है। अब फिल्म सिनेमाघरों में धूम मचाने के लिए पूरी तरह तैयार है।
ये ट्रेंड फिल्म उद्योग के लिए तो बहुत लाभकारी है लेकिन समाज के लिए बहुत ही घातक। विवाद पैदा करके एक समुदाय को भड़काने का खेल समाज में भेद पैदा कर रहा है। क्या इस पर रोक नहीं लगनी चाहिए। अब तक देखा गया है कि देश की सरकार इस मामले में बहुत ‘सॉफ्ट रुख’ अपनाती है। केदारनाथ फिल्म ‘पद्मावत’ की पुनरावृति होगी। वैसा ही द्वेष समाज में फैलेगा। क्या इसे कोई रोकने वाला है।
URL: Kedarnath Movie- Bollywood’s another attempt to distort Hindu pilgrimage sites
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