कुछ प्रभावशाली लोगों ने उस जिन्न को चिराग़ में कैद करने की कोशिश की थी, जो सुशांत सिंह राजपूत की हत्या की काली छाया से जन्मा था। अब जिन्न इतना विशाल हो चुका है कि पूरा भारत उसे देख पा रहा है। मुंबई इस समय संपूर्ण देश में चर्चा का केंद्र बना हुआ है। उस महानगर को, जिसे कुछ लोगों ने अपनी सत्ता समझ लिया है। उन लोगों के मुताबिक मुंबई एक दुर्ग है और शेष देश उस पर आक्रमण कर देना चाहता है।
मातोश्री में एक सिंहासन बाला साहेब ठाकरे का था, जो दबंगई का प्रतीक था। अब मातोश्री में एक सिंहासन और उभर आया है, जो सेवा नहीं शासन की मानसिकता का प्रतीक बन गया है। सुशांत सिंह राजपूत प्रकरण ने उद्धव सरकार के उथलेपन और खोखलेपन को अंडरलाइन कर उजागर किया है। हर एक भारतवासी के मन में एक ही प्रश्न है कि एक अभिनेत्री को बचाने के लिए अपना सिंहासन दांव पर लगा दे, इतने नादान तो उद्धव भी नहीं हैं।
फिर कौन है वह अज्ञात व्यक्ति, जिसे बचाने के लिए सिस्टम को अपने दरबारी समझ कर इस्तेमाल किया जा रहा है।
इस केस में टाइमिंग का खेल बड़ा निराला है। रिया चक्रवर्ती के रास्ते का हर कांटा चुनने के लिए उद्धव सरकार तत्पर दिखाई देती है। उनकी सीबीआई पूछताछ से पहले ही उनकी पीआर एक बड़े चैनल से इंटरव्यू का करार करती है। पीआर एक हार्ड इंटरव्यू के लिए सवाल भी खुद ही चुनकर बड़े पत्रकार को देती है।
जब नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो उनको समन भेजता है तो वे घर में ही एक घंटा रुककर सांताक्रूज़ पुलिस थाना की महिला कॉन्स्टेबल्स को इंतज़ार करवाती है। निश्चित ही उनका फोन लगातार बिज़ी रहा होगा। उनके घर से निकलते ही उनके महंगे वकील ट्वीट करते हैं और बताते हैं कि उनकी मुवक्किल ज़मानत के लिए गुहार नहीं लगाएगी। यही उनकी निराली टाइमिंग है। जुहू के एक फ़्लैट में लाखों का किराया देकर रहने वाले इस परिवार पर उद्धव सरकार इतनी उदार क्यों है।
रिया चक्रवर्ती के पिता डॉक्टर इंद्रजीत चक्रवर्ती ने बेटे शौविक की गिरफ्तारी के बाद भारत को बधाई दी है। ये किस किस्म का व्यंगात्मक बयान है। एक लड़की जो नारकोटिक्स से पूछताछ में स्वीकार कर चुकी हो कि वह भाई से ड्रग्स मंगवाती थी, उसके पिता को तो देश के सामने शर्मिंदा होते हुए क्षमायाचना करनी चाहिए।
सेना के बैकग्राउंड का बेजा फायदा उठाकर डॉक्टर साहब सहानुभूति का कार्ड खेलने की कोशिश में हैं। वे आगे लिखते हैं आपने एक मध्यमवर्गीय परिवार को बर्बाद कर दिया। जुहू क्षेत्र में कोई मध्यमवर्गीय परिवार रहने की हिम्मत नहीं कर सकता। मध्यमवर्गीय आदमी के लिए जुहू में रह पाना एक सपना है।
उनके घर जो महंगी कारों का काफिला खड़ा है, क्या वह मध्यमवर्गीय परिवार की है। भारत पर इस तरह से व्यंग्य कसने वाला डॉक्टर भारतीय सेना से रिटायर हुआ है। मुझे आश्चर्य होता है कि वह भारत देश पर तंज कसता है, इसलिए कि सही क़ानूनी प्रक्रिया के तहत उनके परिवार को आरोपी बनाया गया। क्या भारत का कानून अपना काम भी न करे डॉक्टर साहब।
उद्धव ठाकरे के दंभी सिंहासन के पीछे कौन छुपा बैठा है, जो इस केस को अब भी कंट्रोल कर रहा है। कौन मध्यमवर्गीय रिया और उसके परिवार को बचाने के लिए ऐसी खर्चीली लड़ाई लड़ रहा है। इस कैम्पेन में पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है।
स्वरा भास्कर जैसे पेड आंदोलनकारी को रिया कैसे वहन कर पा रही होगी। कैसे वह मानशिंदे जी की महंगी फीस चुका पा रही होगी। क्या इसी मध्यमवर्गीय परिवार की बात डॉक्टर इंद्रजीत चक्रवर्ती कर रहे हैं।
मुंबई में इस समय कार्यरत तीनो केंद्रीय एजेंसियों को भी यही सवाल मथ रहा है कि एक फ्लॉप हीरोइन को बचाने के लिए ऐसा महंगा दांव कौन खेल रहा है। उद्धव सरकार इस बात का जवाब नहीं देती, तो जनता चुनाव में इनके हलक में हाथ डालकर ये पूछने वाली है।
ये लड़ाई ऐसे मुकाम पर आ पहुंची है, जहाँ से वापसी उद्धव सरकार के लिए संभव नहीं है। आने वाले दिनों में ऐसे खुलासे हो सकते हैं, जो मातोश्री के दूसरे अदृश्य सिंहासन को हिलाकर रख देगा।
जो अफसर इस समय मुंबई में मौजूद हैं, उनके ट्रेक रिकॉर्ड यदि अज्ञात मास्टरमाइंड देख ले, तो उसकी पतलून गीली हो सकती है। शतरंज की इस बिसात पर राजा और वज़ीर ऐसी स्थिति में हैं, कि हिलना भी मुश्किल है। बचने की कोई राह दिखाई नहीं देती।
यदि राजनीतिक गठजोड़ से मास्टरमाइंड बच निकलता है तो भी वह गाँठ कभी न खुल सकेगी, जो महाराष्ट्र की जनता के मन में इस प्रकरण को लेकर बन चुकी है। सच कहूं तो इस समय आप महाराष्ट्र में राजनीति का नग्न नृत्य देख पा रहे हैं। ऐसे नृत्य बहुधा तभी किये जाते हैं जब बात खुद की प्रतिष्ठा पर आ चुकी हो। देखते रहिये महाराष्ट्र में राजनीति का ‘आइटम डांस’।