अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी के बाद मचे शोर में एक प्रश्न किसी ने नहीं पूछा। ये प्रश्न किसी राजनीतिक पार्टी को महाराष्ट्र की महाविकास आघाडी सरकार से पूछना चाहिए कि जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री हैं तो भाजपा का निशाना सोनिया सेना पर क्यों लग रहा है।
ये प्रश्न किसी मीडिया हॉउस द्वारा पूछ लिया जाता तो बुधवार की शाम भाजपा के बैनर-पोस्टरों पर सोनिया सेना का नाम नहीं होता। भाजपा के बैनरों पर उद्धव ठाकरे और शरद पवार के फोटो और नाम क्यों नहीं हैं। क्या भाजपा अपने सहयोगी दल के प्रति अब भी नरम रुख अपनाए हुए हैं।
यदि हम अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी के बाद भाजपा नेताओं के बयान देखे तो उनमे एक समानता दिखाई देगी। वे सभी इस गिरफ्तारी के लिए कांग्रेस और सोनिया गाँधी को दोषी ठहरा रहे हैं। ठीक है भाजपा ये तर्क दे सकती है कि मुंबई का प्रशासन संभाल रहे संरक्षक मंत्री असलम रमज़ान अली शेख भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के विधायक है, जो महाराष्ट्र की महाविकास आघाडी सरकार का सहयोगी दल है।
लेकिन क्या सिर्फ इसलिए केवल कांग्रेस दोषी है और उद्धव ठाकरे व शरद पवार सर्वथा निर्दोष हैं, ऐसे मासूम मज़ाक पर अब जनता विश्वास नहीं करती है। सुशांत सिंह राजपूत केस की जाँच में सीबीआई और पटना पुलिस टीम से असहयोग, कंगना रनौत का ऑफिस तोड़ना, रिपब्लिक चैनल के एक हज़ार रिपोर्टर्स पर केस ठोंक देना और अब देश के सबसे बड़े पत्रकार को घसीटते हुए थाने ले जाने जैसा काम क्या रमज़ान अली शेख जैसा मंत्री अकेले कर सकता है?
निश्चित ही इसमें उद्धव ठाकरे और शरद पवार की बराबर की भागीदारी है। मुंबई की प्रशासनिक गलियों में दबे लहज़े में ये कहा जाता है कि वहां का प्रशासन पूरी तरह शरद पवार के कंट्रोल में है। ये बात झुठलाई नहीं जा सकती कि कांग्रेस केंद्र में होती और कोई राज्य सरकार इस तरह अराजकता पर उतर आती तो अब तक वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाता।
राजनीति में औपचारिक मुलाकातें कभी-कभी प्रतीक बन जाया करती है। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और संजय राउत की संदेहास्पद भेंट को लेकर भाजपा समर्थक आक्रामक हो रहे हैं। उस मुलाक़ात के बाद केंद्रीय जाँच एजेंसियों द्वारा मुंबई में की जा रही जाँच रोक क्यों दी गई।
इसका जवाब देश मांग रहा है। बॉलीवुड पर शिकंजा कसने के बाद एकाएक कार्रवाई ठप क्यों पड़ गई। यदि भाजपा इस मामले में अपना रुख स्पष्ट नहीं करती तो ये संदेहास्पद मुलाक़ात एक प्रतीक बनकर पार्टी के दामन से चिपक जाएगी।
सुशांत प्रकरण को लेकर सिर्फ देवेंद्र फडणवीस ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन प्रकाश और सूचना व प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर की भूमिकाएं संदिग्ध रही हैं। बार्क रेटिंग को बिना कारण सस्पेंड करवाने में जावड़ेकर की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका है। इस मंत्री की भूमिका की जाँच होनी आवश्यक है।
डॉक्टर हर्षवर्धन प्रकाश को एम्स के डॉक्टर सुधीर गुप्ता पर कड़ी कार्रवाई करनी थी, जो उन्होंने नहीं की। भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने इस केस को लेकर एक मेडिकल बोर्ड गठित करने की मांग की थी लेकिन आज तक इस मांग को नहीं माना गया है।
अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी के बाद ये स्पष्ट हो चुका है कि जिस काम के लिए पाकिस्तान में बैठे दाऊद ने करोड़ों रुपया दिया था, उसे राष्ट्रवादी सरकार की नाक के नीचे बड़े आराम से अंजाम दिया जा रहा है। ये सब देखकर देश के लोग सदमे में हैं कि पालघर के साधुओं और एक अभिनेता के लिए आवाज़ उठाने वाला पत्रकार उसके घर से घसीट लिया गया।