कमलेश कमल। इन दिनों अपने गाँव ‘सरसी’ (पूर्णियाँ) में हूँ। खेती-किसानी का परिवार है, तो वह भी देख रहा हूँ।
रेणु की यह धरती आज ख़ूब शस्य-श्यामला है, अत्यंत उर्वरा है। इन दिनों गेहूँ, मक्का और हरी सब्जियों के दिन हैं। यह जो बंद गोभी का पौधा आप मेरे हाथ में देख रहे हैं, इसके फूल का भार 1 kg से कुछ कम ही होगा कि इसे उखाड़ लिया।
फूल अधिक बड़ा होने पर व्यापारी खरीदना नहीं चाहता। ऐसे लगभग 1500 बंदगोभी बिकने पर 2500 रु की आय हमें होती है। फूल-गोभी की स्थिति इससे थोड़ी ठीक है।
किसान निराश नहीं है। अब कुछ दिनों में इन फूलों के अगल-बगल लगे बैंगन तैयार हो जाएँगे। उससे ही आय की आस है।
ध्यातव्य है कि यहाँ कोई कांट्रेक्ट फार्मिंग या अनुबंध कृषि नहीं है। बाज़ार की व्यवस्था ही अब तक ऐसी रही है कि किसानों को सही लाभ नहीं मिल पाता। तब भी ग़रीब किसान सुबह-शाम खेतों में श्रम करता है, कभी हमारे भी दिन बहुरेंगे, इस आस में जीता है।