Sandeep Deo. कल भगवान श्रीजगन्नाथ यात्रा का आरंभ हुआ। इससे जुड़ी एक कथा मैंने कही, जो सिर्फ भक्त हृदय ही समझ सकता है, शुष्क ‘एक किताबी’ मजहब या पंथ के बूते की बात नहीं है भक्ति को समझना। इसी कलयुग में मीरा और रामकृष्ण परमहंस जैसे परम भक्त ईश्वर का साक्षात्कार करते रहे हैं, परंतु ‘एक किताबी’ शुष्क पंथ भक्ति क्या जानें?
कबीर ने ऐसों के लिए ही शायद कहा था,
‘पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होइ॥
प्रेम और भक्ति से ये कोसों दूर हैं! इनके लिए तो सबकुछ सिर्फ एक किताब- ‘सत्यार्थाप्रकाश’ है। इससे बाहर इनकी कोई दुनिया ही नहीं है। जो लिखते हैं, जो बोलते हैं, बस इसी पुस्तक को आधार बना कर। हम स्वामी दयानंदजी और स्वामी ऋद्धानंद जी का सम्मान करते हैं, परंतु ये तो हमारे ईश्वर तक का अपमान जब-तब करते रहते हैं!
कल भगवान जगन्नाथ की कथा के लिंक पर कुछ आर्य समाजियों की मूढ़ टिप्पणी इस बात का परिचायक है कि ये कूपमंडुकता से बाहर निकलने को किसी भी हाल में तैयार ही नहीं हैं!
स्वामी नारायण संप्रदाय और इस्कॉन विदेशों में कितने मंदिर बनवा रहे हैं, कितने इसाईयों को सनातन धर्म में ला रहे हैं, परंतु आर्य समाजियों को देखिए? बार-बार सनातनियों का मूर्ति पूजा के लिए उपहास उड़ाने के कारण आर्य समाजी हिंदू धर्म से अधिक अब्राहमिकों के नजदीक खड़े जान पड़ते हैं। और आश्चर्य कैसा, जब अब्राहमिक भी इन्हीं का कुतर्क हिंदुओं पर थोपने का प्रयास करते रहते हैं!
कांची कामकोठि पीठ के शंकराचार्य जयंत सरस्वती जी को धर्मांतरण रोकने के कारण ही दिवाली की रात हत्या के झूठे षड्यंत्र में गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। असीमानंद शबरी आश्रम के जरिए 25 हजार से अधिक अब्राहमिकों को हिंदू बनने में सफल रहे थे, षड्यंत्र के कारण उन्हें ‘भगवा आतंकी’ कह जेल में सड़ा दिया गया। स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती जी की हत्या धर्मांतरण रोकने और वनवासियों की घर वापसी कराने के कारण ही हुई।
परंतु इनमें से किसी ने आर्य समाजिकों की तरह अहंकार का नाद नहीं किया कि आर्य समाजियों के अलावा कोई घर वापसी नहीं करा सकता। यह अहंकार ही इनको विलीन कर रहा है। वस्तुस्थिति नहीं देख रहे कि आजादी के समय का इतना बड़ा आर्य समाज आंदोलन आज कहां और किस मुहाने पर खड़ा है? आज न जाने कितने जमीन विवाद आर्यमाजियों से जुड़े हैं!
अरे तुम लोग भक्ति क्या जानो? तुम अब्राहमिकों की भांति केवल ‘एक किताबी’ बने रहो, इससे अधिक समझने की तुम्हारे बूते की बात ही नहीं है।
असभ्य शब्द और असभ्य आचरण वाले मूढ़मतियों के साथ संवाद की सारी संभावनाएं क्षीण हैं। इन दुराग्रहियों के साथ समय नष्ट करने से अच्छा है कि इन्हें अपने वॉल से विदा किया जाए।
तो हे मूढ़मतियों तुम गोविंद के विरोधी हो और मैं गोविंद का भक्त। तुम गोविंद को भज सकते नहीं और मैं गोविंद को भजे बिना रह सकता नहीं। अत: तुम्हारा हमारे वॉल पर कोई काम नहीं। तुम अपनी ही दुनिया में कैद रहने के लिए अभिशप्त हो। विदा होओ!
जय जगन्नाथ!
Thanks a lot for very good description