नोटबंदी से बेचैन कांग्रेस पार्टी ने इसे रद्द कराने के लिए अपने सभी दिग्गज वकीलों को सुप्रीम कोर्ट में उतार दिया है। सलमान खुर्शीद, कपिल सिब्बल, पी. चिदंबरम, अभिषेक मनु सिंघवी, विवेक तनखा, के.टी.एस. तुलसी जैसे धुरंधर वकील सुप्रीम कोर्ट में नोटबंदी को रद्द कराने की कोशिश में लगातार जुटे हैं! और तो और इनमें ज्यादातर कांग्रेसी वकील, सांसद हैं, लेकिन जनता की दुहाई देने वाली कांग्रेस के इन सांसदों को संसद में बहस करने में कोई रुचि नहीं हैं। संसद में बहस होते ही जनता की नजरों में बेनकाब होने का शायद यह डर है, जिसके कारण कांग्रेस पार्टी एक तरफ जहां संसद को ठप किए है, वहीं अपने धुरंधर वकीलों के जरिए अदालत के रास्ते नोटबंदी के निर्णय को रद्द कराने के प्रयास में लगातार जुटी हुई है! आखिर क्या माजरा है कि नोटबंदी से सबसे अधिक राजनीतिक दल ही परेशान हैं? सुप्रीम कोर्ट में सीधे दायर 24 पीआईएल में एक भी पीआईएल किसान, गरीब या मध्यवर्ग की ओर से दायर नहीं किया गया है। इनमें से 23 पीआईएल राजनतिक पार्टी और जिला सहकारिता बैंक लॉबिस्टों की ओर से दायर किए गए हैं! क्या इसकी वजह यह नहीं माना जाए कि विमुद्रीकरण के कारण सबसे अधिक मार राजनीति दलों व नेताओं पर ही पड़ा है?
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में बहस के दौरान नोटबंदी को रद्द कराने के लिए पहुंचे सभी कांग्रेसी सांसद वकीलों को देखकर भाजपा के नेता व वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने मुख्य न्यायाधीश टी.एस.ठाकुर की अध्यक्षता वाली बेंच से यह मांग कर डाली कि पहले तो न्यायपालिका यह सुनिश्चित करे कि इन राजनेताओं के द्वारा निजी हित में दायर की गई याचिकाएं ‘जनहित याचिका’ की श्रेणी में आती भी हैं या नहीं? उन्होंने दूसरी मांग यह की कि एक तरफ जहां संसद का सत्र चल रहा है और कांग्रेस पार्टी संसद को ठप किए है, वहीं कांग्रेसी सांसद वकील संसद की जगह सुप्रीम कोर्ट में नोटबंदी को रद्द कराने के लिए बहस कर रहे हैं। आखिर क्या कारण है कि इसी बात को संसद में रखने में इनकी रुचि नहीं है? क्यों न ‘नो वर्क, नो पे’ का कानून ऐसे सांसदों पर लागू किया जाए जो पैसे तो जनता की जेब से लेते हैं और अपना व अपनी पार्टी का निजी हित साधने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाते हैं? अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट की बेंच से पूछा कि क्या जनता के पैसे बर्बाद करने वाले इन सांसद वकीलों की जनहित याचिका सुनवाई के योग्य है?
उल्लेखनीय है कि जिस तरह से संसद के अंदर मोदी सरकार और भाजपा के खिलाफ सारी विरोधी पार्टियां नोटबंदी की खिलाफत करते हुए उतरी हुई हैं, उसी तरह सुप्रीम कोर्ट में भी कांग्रेस के साथ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और जिला सहकारिता बैंक लॉबी की ओर से नोटबंदी को रद्द करने के लिए 23 जनहित याचिका दायर कर रखी है! सुप्रीम कोर्ट में भाजपा की ओर से 24 में से केवल एक अश्विनी उपाध्याय द्वारा जनहित याचिका डाली गई है, जो पूरी तरह से नोटबंदी के पक्ष में है। उनकी याचिका में यह मांग की गई है कि भारत के भविष्य को देखते हुए 500, 1000 और 2000 के नोट को पूरी तरह से बंद किया जाए! जबकि गरीबों की बात करने वाली कम्युनिस्ट पार्टी और कांग्रेस नोटबंदी को ही रद्द कराने की मांग पर अड़ी है! भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने बेहद प्रसिद्ध और महंगे वकील संजय हेगड़े को इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में उतारा रखा है।
शुक्रवार को बहस के दौरान कांग्रेसी नेता व वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से यह मांग की कि या तो नोटबंदी को पूरी तरह से रद्द किया जाए, या फिर जिला सहकारिता बैंक को नोट बदलने की इजाजत दी जाए! इस पर सरकार का पक्ष रखते हुए महान्यायवादी मुकुल रोहतगी ने कहा कि जिला सहकारिता बैंक कालेधन को सफेद करने का अड्डा बने हुए हैं। देश में इस समय 92 हजार कॉपरेटिव सोसायटी कार्य कर रही हैं और ये सभी अपारदर्शी तरीके से बैंकिंग करती हैं। विमुद्रीकरण के बाद शुरुआत के दो-तीन दिन इन बैंकों को नोट बदलने की प्रक्रिया में शामिल किया गया था। उन दो-तीन दिनों में ही एक-एक बैंक में 200 से 300 करोड़ रुपये जमा हो गए थे। इन्हें किसी भी हाल में नोट बदलने की इजाजत नहीं दी जा सकती, अन्यथा विमुद्रीकरण की पूरी प्रक्रिया ही पटरी से उतर जाएगी।
महान्यायवादी की बहस के बीच में बोलते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि एक भी पीआईएल गरीबों या किसानों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर नहीं किया गया है। सभी जिला सहकारिता बैंक या राजनेताओं की ओर से डाला गया है, इसलिए यह कहना अनुचित है कि विमुद्रीकरण से गरीबों को परेशानी हो रही है। सारे पीआईएल या तो कांग्रेस के इन वकीलों की ओर से दायर किए गए हैं या फिर इन वकीलों के क्लाइंट कॉपरेटिव बैंकों की लॉबी की ओर से। उपाध्याय ने कहा कि अभी तक इस संसद सत्र में 200 करोड रुपया बर्बाद हो चुका है। यहां उपस्थित चार वरिष्ठ वकील संसद के सदस्य हैं। ये लोग जो बहस यहां कर रहे हैं वो संसद में क्यों नहीं जााकर बहस करते हैं? यदि इसके बाद भी मी-लॉर्ड आप इनको सुनना चाहते हैं तो इस बात पर सुनवाई होनी चाहिए कि निजी स्वार्थों के लिए नेताओं के द्वारा दायर और नेताओं के ही द्वारा अदालत में बहस वाली याचिका जनहित याचिकाओं की श्रेणी में आती भी है या नहीं? सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 14 दिसंबर की तारीख मुकर्रर कर दी है।