अनुज अग्रवाल। यह बात प्रधनमंत्री मोदी और सरकार तो क्या देश के बच्चे बच्चे को पता है कि देश के हर राजनेताओ और नोकरशाहों के पास अरबों खरबो का कालाधन है चाहे वो विपक्षी सिंडीकेट में हो या सत्तारुढ़ दल के सिंडीकेट में। मोदी की प्रधानमंत्री बनने तक की यात्रा और अब पिछले ढाई साल भी कालेधन के अनेक गुणा भाग करते गुजरे। इस काल में भी कम से कम एक दर्जन सरकारी मंत्रियो ने खासा माल बनाया है। मोदी की नोटबंदी की अचानक घोषणा से विपक्ष इसलिए रुष्ट है क्योकि मोदी ने एक दूसरे के पापों से आँख बंदकर लेने की स्थापित परंपरा को एक झटके से तोड़ दिया।
सत्तारुढ़ और विपक्षी सबका अपना अपना जनाधार है और अगर सरकारें कोई भी कार्यवाही विपक्षी नेता पर करती हें तो उसे जनता की सहानुभूति और समर्थन बढ़ जाता है। यही मोदी की परेशानी है, इसीलिए खासे जनदबाब और सबूतों के बाद भी वे नेताओ, नोकरशाहों और बड़े लोगो के खिलाफ सीधी कार्यवाही से बच रहे हें। कालेधन के अंबार के बीच राजनीति करते करते जबसे उन्होंने देश की कमान संभाली और देश की अर्थव्यवस्था की सच्चाई से वो दो चार हुए तो कहीँ न कहीँ वे सन्न रह गए।
जब उन्होंने सत्ता संभाली ,देश के बैंक डूबने जा रहे थे, कांग्रेस के समय जो 14 लाख करोड़ का ऋण बड़े औधोगिक घरानों को बांटा गया था वो डूब चूका था और बैंक दिवालिया होने की कगार पर थे। देश में निर्यात और आयात के सभी आंकड़े फर्जी थे। निर्यात के नाम पर कालाधन सफ़ेद हो रहा था या देश के खनिज सस्ते दामो या चोर रास्ते से बेचे जा रहे थे और आयात घोषित आंकडो से दुगना था। देश में रिजर्व बैंक द्वारा जारी वैध मुद्रा से दो गुने जाली अथवा एक नंबर के दो या तीन नोटों का जाल फेला हुआ था। नोटों को डॉलर में बदल देशद्रोहियों ने रूपये का अन्तर्राष्ट्रीय मूल्य गिरा दिया था और पूरा देश विभिन्न नशे, घटिया और मिलावटी सामन के साथ ही सट्टे, लॉटरी, जुए, पॉर्न और पाश्चात्य जीवन शैली की और धकेल दिया गया था।
यू पी ए पुरे देश को घोर अंधकार में धकेल चूका था। कांटे को निकालने के लिए कांटे की जरूरत होती है, इसलिए मोदी ने पिछले दो सालो में पूरी तैयारी कर नोटबंदी का दांव खेला। उनको समझ में आ चूका था कि देश में मोजुदा असली नकली करेंसी के कारण कालाधन 6% नहीँ 25 से 30% तक है और नकदी के खेल से और 25 % कालाधन पैदा हो रहा है। एक वार में सौ शिकार के इस खेल में उन्होंने हाल ही में तुर्की में हुई तख्तापलट की कोशिश को वहाँ के राष्ट्रपति द्वारा जन सहयोग से विफल करने के प्रयोग को सफल मान अपनाया और पूरे देश को सड़को पर खड़ा कर दिया और जनता को हर कदम पर अपने साथ रखा है ताकि ब्लैकमनी सिंडीकेट उन्हें दबाब में न ले पाए।
मोदी जानते थे कि कालेधन के घाघ खिलाडी बेंको में नयी मुद्रा आते ही अपने खेल शुरू कर देंगे इसीलिए पहले एक माह में नई करेंसी की धीमी आपूर्ति की गयी और यह 30 दिसंबर तक तेज भी नहीं होने वाली। मोदी कालेधन के बड़े खिलाडियों की रीढ़ तोड़ने पर उतारू हें और चाहते हें कि इनकी अधिकतम नकदी 30 दिसंबर तक गलत सही रास्तों से बेंको तक न पहुंचे और रद्दी हो जाए। अगर करेंसी की आपूर्ति तेज होगी तो यह सिंडीकेट घपलेवाजी कर बड़ी मात्रा में नयी करेंसी पर कब्जा कर सकता है। अभी भी अनुमान है कि देश का राजनीतिक और नोकरशाही माफिया 1.5 लाख करोड़ की नई करेंसी पर कब्जा कर चूका है।
अब सरकार ने उनके सारे रास्ते बंद कर दिए हें और करेंसी आपूर्ति भी धीमी की हुई है जिसके कारण यह गैंग बौखलाया हुआ है। कैशलेस इकॉनमी की बात करना भी मोदी की मजबूरी है, वो जानते हें कि देश की जनता औपचारिक रूप से घोषित करेंसी के तीन गुना का आदि हो चूकी है, ऐसे में कैशलेस लेनदेन बढ़ाकर बाज़ार में मुद्रा की होने वाली कमी को पूरा कराया जाना जरूरी है। वैसे आतंक, नक्सल,ड्रग्स, सट्टे, जॉली नोट, जुए, शराब, आयत- निर्यात में कमी आने से भी नकदी की जरूरत कम होती जा रही है। मोदी ने नेताओ के करीबियों पर छापे पड़वाने शुरू कर दिए हें। सोनिया, करुणानिधि और स्व जयललिता के करीबियों पर शिकंजे कस चुके हें और अगला नंबर माया, ममता, मुलायम,लालू और केजरीवाल के करीबियों का आ सकता है। इन लोगो पर सीधी कार्यवाही 30 दिसंबर के बाद हो सकती है।
एक ही नम्बर के दो नोटों के खेल में कांग्रेस पार्टी सीधे फंस सकती है इसलिए अब दबाब में है, अगस्ता वेस्टलैंड में पूर्व वायुसेनाध्यक्ष एस के त्यागी की गिरफ्तारी के बाद सोनिया खासे दबाब में हें। उम्मीद है अब विपक्ष के विरोध के सुर मंदे हो जायेंगे और मंगलवार से संसद चलने लग सकती है। अगर इस पर भी विपक्ष नही माना तो मोदी अंतिम हथियार के रूप में सीधे जनता में बड़े खुलासे कर विरोधियो को निबटा सकते हें और एक छोटी मोटी जनक्रांति का आगाज कर सकते हें। बंटा और निस्तेज विपक्ष, सेना और अर्धसैनिक बलों पर पूरा नियंत्रण, विदेशो में अच्छी साख, बेरोजगार युवाओ, नोकरीपेशा लोगो, किसानो और गरीबो का समर्थन मोदी की बड़ी ताकत है और पार्टी के अंदर कोई चुनोती भी नहीं दूर दूर तक। इसलिए आप मोदी के समर्थक हो या विरोधी, इतना याद रखें अभी मोदी युग जारी है और कड़वी दवाई होते हुए भी नोटबंदी को झेलना ही पड़ेगा।
साभार: अनुज अग्रवाल संपादक,डायलॉग इंडिया