विकास प्रीतम। जब वो कहते हैं मुझे लोकसभा में बोलने नहीं दिया जा रहा है तो ये सुनने में कुछ वैसा ही लगता है जब केजरीवाल कहते हैं -मोदी जी मुझे काम करने नहीं दे रहे हैं। ये जनता द्वारा दी गयी अपनी ज़िम्मेदारीयों से बचने की एक प्रक्रिया है। ये अपने काम को यथोचित रूप से नहीं कर पाने वाले लोगों की परम्परा है।
संसद की कार्यवाही कौन नहीं चलने दे रहा है? प्रश्नकाल के आरम्भ होते ही आसन के सामने कौन संसद की कार्यवाही कौन नहीं चलने दे रहा है ? प्रश्नकाल के आरम्भ होते ही आसन के सामने कौन हंगामा करता है ? आज सारा देश इस बात को जानता है । यद्यपि सरकार की भावना किसी भी प्रकार से विपक्ष और संसद को उसके बोलने के अधिकारों से वंचित करने की नहीं है फिर भी अगर राहुल गांधी सरीखे नेता ये कहते हैं कि उनको बोलने नहीं दिया जा रहा है तो उनके इस दावे की पड़ताल जरूर होना चाहिए ।अपने बोलने की ताकत पर इतना नाज करने वाले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के विषय में यह अवश्य ज्ञात होना चाहिए कि वे अब तक संसद में कब-कब और कितना बोले हैं और साथ में यह भी कि बिना कागज़ का सहारा लिए कितना बोले हैं?
अपने बोलने और नेतृत्व की क्षमताओं को लेकर उम्मीदों से भरे इस नेता के बारे में कांग्रेस पार्टी को भी यह बताना चाहिए कि कांग्रेस पार्टी के एकमात्र और स्वाभाविक लीडर होने के बाद भी राहुल गांधी संसद में अग्रिम पंक्ति में क्यों नहीं बैठते हैं? जबकि कांग्रेस और स्वयं राहुल गांधी के तमाम दावों के विपरीत सच्चाई यह है कि “मुझे बोलने नहीं दिया जाता” यही एकमात्र वक्तव्य और भाषण है जिसे राहुल गांधी बिना पढ़े और ईमानदारी से बोल सकते हैं हालांकि इसके लिए भी उन्हें पार्टी प्रबंधकों द्वारा ब्रीफ किया जाता होगा।
ये वही पार्टी प्रबन्धक हैं जो अपने नेता को खबरों और सुर्ख़ियों में लाने के लिए उसे हंसी का पात्र और विदूषक बनाने को भी अपनी रणनीतिक जीत करार देते हैं । दुर्भाग्यवश ही सही फिलहाल कांग्रेस में यही ‘मॉडल ऑफ़ पॉलिटिक्स’ चल रहा है।