फरहाना ताज। अभी तीन तलाक पर फैसला आया। बहुत अच्छी बात है। मैं इसका समर्थन करती हूं। नारी जाति के प्रति तीन तलाक कू्रता ही थी। लेकिन इस पर एक बयान आया कि धर्म से बड़ा संविधान और राष्ट्रीयता है। इससे हम सहमत नहीं। धर्म से बडा किसी देश का संविधान नहीं हो सकता। हमारे ही देश का संविधान धर्म निरपेक्ष है यानी धर्म की कोई वैल्यु नहीं संविधान की दृष्टि से! हमारा संविधान धर्म को नहीं मानता! संविधान तो हर देश में अपना अपना है।
काश ऐसा न हो! 50 साल बाद यहां मुस्लिम आबादी बढ जाये और संविधान एक झटके में बदल दिया जाये तो और देश मुस्लिम कंट्री घोषित कर दिया जाये तो! वैसे पाकिस्तान के नए सैन्य प्रमुख ने भारत को अगले 4 साल तक ही मुस्लिम कंट्री बनाने की घोषणा की है। क्षमा करें मैं ऐसा नहीं सोच सकती, लेकिन हम हिन्दू बंगले बनाते हैं, कार खरीदते हैं, बच्चों को विदेश पढ़ाते हैं और लडकियां ज्यादा पढ़ जाएं तो मुस्लिम लड़कों से शादी के उनके फैसले पर मुहर लगा देते हैं, डाबी या करीना, गौरी या अन्य! लेकिन कितने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए कुछ करते हैं? मुस्लिम संपन्न होते ही हज जाता है, इसाई संपन्न होते ही धर्मांतरण में लग जाता है लेकिन हिन्दू संपन्न होते ही पब-बार में जाता है! विदेश में मजे करता है! स्विस बैंक में धन जमा करता है!
क्षमा करें! हमें हमारे बच्चो को धर्म-कर्म सिखाने का समय ही कहां है? उनका करियर बनाना है हमें तो! मजहब सिखाया तो वे पंक्चर ही लगाएंगे! लेकिन इन पंक्चर वालों की मुंडिया बढ गई तो! लोकतंत्र में मुंडिया ही तो राजा को जनती है। हमारे पूर्वजों का धर्म वैदिक था। सृष्टि के आदिकाल से हम वेदों को अपना धर्मग्रंथ मानते आए हैं,मानते तो आज भी हैं, लेकिन आज हम वेदों को जानते नहीं! 100 हिन्दुओं में से एक दो ही ऐसा मिलेगा, जो कह सके कि वेद हमारे धर्मग्रंथ हैं। एक हजार हिन्दुओं में से एक दो ही ऐसा मिलेगा, जिसके वेद के कुछ मंत्र याद होंगे! लेकिन 100 मुस्लिमों में से 99 ऐसे मिलेंगे जिसे कुरान भले ही न याद हो, लेकिन उसकी अनेक आयतें याद होंगी। नमाज का तरीका जानता होगा।
ऐसे ही इसाई भी मुस्लिमों से कम कट्टरपंथी नहीं, यहां तो समाजसेवा के नाम पर मदर टेरेसा ने इसाइयत का ही प्रचार किया। यदि कल को यह देश इसाई कंट्री या मुस्लिम राष्ट्र बन जाता है तो हमे यह कैसे सहन हो सकता है कि तब का नया संविधान हमारे धर्म से बडा होगा। इसलिए समान नागरिक संहिता की बात करें, धर्म से बडा संविधान होने की नहीं। जब देश धर्मनिरपेक्ष है तो यहां फिर मजहबी आधार पर शरिया कानून क्यों? शरिया कानून को मान्यता देना ही बताता है कि संविधान, पंथ मजहब से बडा नहीं है। फिर धर्म की तो बात ही और है, क्योंकि दुनिया में धर्म तो एक ही है, वैदिक धर्म! बाकी सब तो पंथ मजहब हैं।
वेद ही कहते हैं मनुर्भव यानी मनुष्य बनो, जबकि कुरान कहती है मुस्लिम बनो, बाइबिल कहती है इसाई बनो।.इसलिए वेद धर्म से बडा न तो संविधान है और न ही यह देश। सबसे पहले वेद, फिर देश का संविधान। रिश्ते-नाते, माता-पिता, बच्चों का स्थान मेरी दृष्टि में तीसरे स्थान पर है। मैं देश हित के लिए इन्हें त्याग सकती हूं, बलिदान दे सकती हूं! वेदों का स्थान देश से भी प्रथम हैं।.संतान से बडा बाप होता है और यहां तो राष्ट्र का पिता है गांधी यानी गांधी राष्ट्र से बडा हुआ! फिर जिन ऋषियों ने हमें परमेश्वर की वेदवाणी दी तो वे हमारे पितृ हुए, बडे हुए यानी राष्ट्र से बडा धर्म इस दृष्टि से भी सिद्ध होता है। हे मातृभूमि तू मेरे लिए जननी और स्वर्ग से भी प्रिय है, लेकिन वेदों के बिना न तो तेरा श्रृंगार है न ही मेरा उद्धार!
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