कोविड संकट बढने के बीच सुप्रीम कोर्ट का मौलिक अधिकारों को लेकर बहुत बड़ा फैसला – ‘वैक्सीन लगवाने के लिए किसी को मजबूर नहीं कर सकते’। विगत दो वर्षों से हम लगातार सरकार को लिखते रहे और लोगों को अवगत कराते रहे कि वैक्सीन लगवाना स्वैच्छिक होना चाहिए, क्योंकि किसी भी वैक्सीन का अभी तक सेफ्टी ट्रायल कम्प्लीट नहीं हुआ है।
दो वर्ष बीत जाने के बावजूद आज भी लोगों को वैक्सीन इमर्जेंसी एप्रूवल के तहत लगाये जा रहे हैं, जिसका तात्पर्य है कि बिना सुरक्षा ट्रायल कम्प्लीट किये लोगों को वैक्सीन लगवाने के के लिये बाध्य किया जा रहा है। हर बात पर साइंटिफिकली प्रूवेन की दुहाई देने वाला मॉडर्न मेडिसिन सिस्टम आज पूरे विश्व को साइंटिकली अनप्रूवेन वैक्सीन लगाये जा रहा है और इस पर किसी का ध्यान नहीं है।
अधिक से अधिक वैक्सीन लगवाने की वाहवाही लूटने पर लगी सरकारों को लोगों की सुरक्षा से कोई लेना-देना नहीं है। वैक्सीन लेने वाले लोगों की संख्या बढाने के लिये प्रत्येक रजिस्टर्ड मोबाइल पर 5-6 अलग-अगल लोगों के नामों के एस एम एस (SMS) आ रहें हैं। कोरोना महामारी को नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट के अंतर्गत शामिल कर सरकार ने मनमानी करने का सुगम रास्ता बनाया और महामारी मैनेजमेंट राज्य सरकारों को सौंप कर अपनी जिम्मेदारियों से भी मुक्ति पा ली।
ऐसे मौके पर सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला लोगों को वैक्सीन तथा बूस्टर डोज लगवाने की बाध्यता से मुक्त करने के साथ-साथ राज्य सरकारों को वैक्सीन से जुड़े सभी प्रतिबंधों को हटाने के लिए निर्देशित करता है। सुप्रीम कोर्ट ने कोविड टीकाकरण की अनिवार्यता को असंवैधानिक घोषित करने वाली याचिका पर फैसला सुनाते हुए ये बातें कहीं। कोर्ट ने कहा कि नीति निर्माण पर कुछ कहना उचित नहीं है, लेकिन किसी को भी टीका लगवाने को मजबूर नहीं किया जा सकता।
पिछले एक वर्ष में टीका लेने से कई लोगों की आकस्मिक मृत्यु तथा विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं की खबरें आई हैं। यह तो शार्ट टर्म साइड इफेक्ट हैं, अभी आगे लॉंगटर्म में क्या-क्या होगा उसका अंदाजा लगाना संभव नहीं है। सावधानी बरतें और सूझ-बूझ से काम लें।
कमांडर नरेश मिश्रा
फाउन्डर ऑफ ज़ायरोपैथी
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