
Movie Review: लव जिहाद की विकराल सच्चाई बताती है ‘द कन्वर्जन’
विपुल रेगे। लव जिहाद पर बनी फिल्म द कन्वर्जन ने अंततः सिनेमाघरों का मुंह देख ही लिया। सेंसर बोर्ड से लंबी क़ानूनी लड़ाई लड़ने के बाद शुक्रवार को प्रदर्शित हुई ये फिल्म मुस्लिम समाज में व्याप्त कुरीतियों पर कड़ा आघात करती है। लव जिहाद का जाल कैसे बुना जाता है, ये फिल्म वह भी बताती है। देशभर में प्रदर्शित हुई इस फिल्म की शुरुआत धीमी रही है लेकिन पूर्ण संभावना है कि माउथ पब्लिसिटी के बल पर ये धीरे-धीरे बॉक्स ऑफिस पर अपनी पकड़ बना लेगी।
द कन्वर्जन को द कश्मीर फाइल्स की श्रेणी की ही दूसरी फिल्म कहा जा सकता है। ये फिल्म हिन्दू समाज को लव जिहाद के बारे में जागरुक करने के लिए बनाई गई है। इसका उद्देश्य यही है कि हिन्दू समाज की बेटियां इस फिल्म को देखकर जागरुक हो और अपने अधिकारों और धर्म की रक्षा कर सके। ये कहानी बनारस के पंडित परिवार की बेटी साक्षी की है। साक्षी को कॉलेज में एक लड़के बबलू से प्रेम हो जाता है।
साक्षी के पिता इस विवाह के विरुद्ध हैं इसलिए वे दोनों कोर्ट में विवाह करने का निर्णय लेते हैं। कोर्ट में साक्षी को पता चलता है कि बबलू का पूरा नाम बबलू इकबाल खान है। ये जानकर साक्षी विचलित हो जाती है लेकिन प्रेम के हाथों विवश होकर बबलू से विवाह करने का निर्णय लेती है। विवाह के बाद बबलू और उसके परिवार का असली चेहरा सामने आता है। अब साक्षी उस घर में कैदी के समान है।
निर्देशक विनोद तिवारी की ये फिल्म समाज की इस समस्या को ज्वलंत ढंग से प्रस्तुत करती है। फिल्म बताती है कि जो लड़कियां प्रेम में अंधी होकर ऐसे विवाह करती है, उनमे से अधिकांश का परिणाम अत्यंत घातक होता है। फिल्म के समग्र प्रभाव की बात की जाए तो इसकी कथा समाज को एक सार्थक संदेश देने में सफल रहती है। निर्देशक विनोद तिवारी ने उत्तम निर्देशन किया है।
फिल्म के पहले बीस मिनट फिल्म थोड़ी उखड़ी हुई चलती है लेकिन बाद में रफ़्तार पकड़ती है और दर्शक को एंगेज भी कर लेती है। विन्ध्या तिवारी, प्रतीक शुक्ला, मनोज जोशी और रवि भाटिया ने बढ़िया अभिनय दिखाया है। विशेष रुप से विन्ध्या तिवारी बहुत असरदार दिखाई दी है। निर्देशक ने लव जिहाद पर फिल्म बनाने से पूर्व इस समस्या और इसके समाज पर पड़ने वाले प्रभाव का गहन अध्ययन किया है।
उनकी स्टडी और रिसर्स का सकारात्मक असर फिल्म पर दिखाई देता है। जो दर्शक इसमें मनोरंजन खोजने जाएंगे, वे निराश ही होंगे। ये फिल्म मनोरंजन के उद्देश्य से नहीं बनाई गई है। इस फिल्म को सपरिवार देखा जाना चाहिए। विशेष रुप से बेटियों को ये फिल्म अपने पिता के साथ देखनी चाहिए। कई समीक्षाओं में फिल्म को तकनीकी रुप से कमज़ोर बताया जा रहा है।
संभव है कहीं एडिटिंग में कमी रह गई हो या एक दो कलाकारों के चयन में गलती हो गई हो किन्तु उससे फिल्म का समग्र प्रभाव कम नहीं हो जाता। द कन्वर्जन अपने उद्देश्य में सफल रही है। पहले दिन फिल्म को रिस्पॉन्स अच्छा नहीं मिला है लेकिन संभावना है कि अगले एक दो दिन में इसके दर्शक बढ़ सकते हैं। इस सप्ताहांत एक ऐसी फिल्म देखिये, जो आपके परिवार को एक गहन समस्या से रुबरु कराती है और ऐसे धोखे के जाल से बचने का सार्थक संदेश भी देती है।
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पुणे मै सिर्फ एक हि स्क्रीन मिल पाई है
ओ भी ११.१५PM का शो