आईएसडी नेटवर्क। भाजपा नेत्री नूपुर शर्मा के बयान को लेकर जो देश कतर भारत पर हमलावर हो रहा है, उसकी वास्तविकता बड़ी ही घिनौनी है। कतर में रह रहे भारतीयों को पूजा और अंतिम संस्कार के लिए भूमि ही नहीं दी जाती है। हाल ही में भारत से कतर गए प्रतिनिधि मंडल ने वहां की सरकार के समक्ष भारतीयों की इस समस्या को सामने रखा है।
उपराष्ट्रपति के साथ गेबान, सेनेगल एवं कतर की आठ दिवसीय राजकीय यात्रा से लौटने के बाद राज्यसभा सदस्य सुशील मोदी ने बताया कि उपराष्ट्रपति नायडू ने कतर के प्रधानमंत्री से आग्रह किया कि भारतीयों के पूजा स्थल एवं दाह संस्कार के लिए भूमि प्रदान करें। उल्लेखनीय है कि कतर में किसी भारतीय हिन्दू की मृत्यु होने पर शव को अंतिम संस्कार के लिए भारत लाना पड़ता है।
यदि किसी कारणवश व्यक्ति का शव भारत नहीं लाया जा सके तो उसे दफनाने की विवशता हो जाती है। कतर में रहने वाले हिन्दुओं को कई वर्षों से दाह संस्कार की अनुमति नहीं है। हिन्दुओं का ये मुद्दा लंबे समय से लंबित है। चूँकि गेबान और सेनेगल की 1960 में आजादी के बाद पहली बार भारत के उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल का इन देशों का राजकीय दौरा था, इसलिए इस मुद्दे को प्रतिनिधि मंडल की ओर से उठाया गया था।
कतर समेत कई खाड़ी देशों में हिंदू समुदाय के लाखों लोग निवास कर रहे हैं। कतर एक इस्लामिक देश है। यहाँ शरिया कानून लागू है। यहाँ पर सुन्नी, शिया और आठ क्रिस्चियन धार्मिक समूहों को ही कानून से मान्यता मिली हुई है। इनके अलावा बाकी धर्मों को यहाँ गैरकानूनी माना जाता है। धर्म का पालन करने के लिए हिन्दुओं को कतर में प्रशासन से आज्ञा लेनी पड़ती है। उनके लिए कोई सार्वजानिक स्थान नहीं दिया गया है।
उन्हें निजी स्थान पर ही पूजा करनी होती है। पिछले कई वर्षों में कई बार कतर पर धार्मिक अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करने के आरोप लगते रहे हैं। कतर में भारत और नेपाल के हिन्दू निवास करते हैं। कतर की कुल जनसंख्या में ये लोग पंद्रह प्रतिशत हैं। कतर में जब रमजान शुरु होते हैं तो अल्पसंख्यकों को कड़े नियमों का पालन करना पड़ता है। यहाँ गैर मुस्लिम बच्चे सार्वजानिक स्थानों पर कुछ खा भी नहीं सकते हैं।
अल्पसंख्यकों के साथ दोयम दर्जे के व्यवहार के कारण अंतरराष्ट्रीय संस्था USCIRF ने विशेष चिंता वाले देशों की सूची में डाल रखा है। USCIRF संपूर्ण विश्व के देशों की धार्मिक स्वतंत्रता की निगरानी करती है।