सोनाली मिश्रा । मुम्बई में जब हमला हुआ था, तो गृहमंत्री शिवराज पाटिल के कपड़े अधिक चर्चा का कारण बने थे। हर बार प्रेस कांफ्रेंस में उनके चमचमाते कपड़े और जूते ही चर्चा का विषय बने थे और जैसे उनकी असफलता की कहानी बता रहे थे। शोर मचा और मुम्बई हमले के बाद उन्होंने “नैतिक आधार” पर इस्तीफ़ा दे दिया था। परन्तु शुक्रवार अर्थात 10 जून 2022 को पूरे देश में हुए कथित विरोध प्रदर्शन, जिसमें लगभग हर राज्य जल रहा था और वह भी उस कथन पर जिस पर पुलिस द्वारा नुपुर शर्मा पर एफआईआर दर्ज हो चुकी है और पुलिस अपना कार्य कर रही है।
यह देश शरिया से नहीं संविधान से चलता है, यह स्पष्ट निर्देश जिहादी तत्वों तक जिन्हें पहुंचाना चाहिए था, शाम होते होते एक ऐसा समाचार आया, जो कहीं न कहीं पूरी सरकार की पिछली आठ वर्षों की विफलता को बताने के लिए पर्याप्त था।
जिनपर इस हिंसा को रोकने का उत्तरदायित्व था, वह उसी दिन शाम को प्रभात प्रकाशन में महाराणा प्रताप पर लिखी गयी पुस्तक का विमोचन कर रहे थे। और उन्होंने एक वाक्य बोला, वह पिछले आठ वर्षों में सबसे बड़ी असफलता की कहानी कह रहा है, और वह है पाठ्यपुस्तकों में परिवर्तन! उन्होंने कहा कि इतिहासकारों ने पल्लवों, पांड्य, चोल, गुप्त और मौर्य वंश जिन्होनें सैकड़ों वर्ष तक शासन किया, उनके विषय में नहीं लिखा है, और मात्र मुगलों को ही प्राथमिकता दी है।
यह वक्तव्य यद्यपि पुस्तक विमोचन के समय का था, परन्तु उसी दिन पूरा देश एक ऐसे खतरे से दो चार हो रहा था, जिसकी सीमा में हिन्दू ही थे। भारतीय जनता पार्टी की ही निलंबित प्रवक्ता नुपुर शर्मा के पुतले को टांगकर हिन्दुओं के दिल में डर भरा जा रहा था, उसकी जान लेने की बात कही जा रही थी, और वह भी किसलिए? मात्र इसलिए क्योंकि जब महादेव का अपमान करने वाले पर कोई कार्यवाही नहीं हुई, तो उसने भी एक डिबेट में आपा खो दिया?
परन्तु गृहमंत्री उस दिन एक पुस्तक के विमोचन में वामपंथी इतिहासकारों को कोस रहे थे, जबकि सत्य यह है कि पिछले आठ वर्षों में एनसीईआरटी की एकतरफा पाठ्यक्रम पुस्तकों में तनिक भी परिवर्तन नहीं किया गया है, जिनमें हिन्दुओं को ही लगभग हर समस्या का दोषी ठहराया गया है, जिनमें हिन्दू इतिहास भी तोड़मरोड़ कर दिखाया है, और गाम-इस्लामी एजेंडा के अनुसार ही लिखा गया है!
ऐसे में जब गृहमंत्री ने कहा कि जिन्होनें इतिहास लिखा केवल उन्होंने मुग़ल साम्राज्य की ही बात की तो ऐसे में यह प्रश्न पूछना स्वाभाविक है कि आखिर इसका क्या कारण है कि पिछले आठ वर्षों में भी उन पुस्तकों को मुख्यधारा में नहीं लाया जा सका है, जिन्हें राष्ट्रवादी दृष्टिकोण से लिखा गया था।
जिन पुस्तकों में मुगलों द्वारा किये गए अत्याचार और साथ ही टूटे हुए मंदिरों की कहानियां थीं? उन्हें क्यों नहीं सत्यता बताने के लिए जनता के प्रचारित किया गया? क्या कारण है कि अभी तक एनसीईआरटी में वही पुस्तके पढ़ाई जा रही हैं, जिन्हें अचानक से ही यूपीए की उस सरकार ने लागू कर दिया था, जिसे मुरली मनोहर jजोशी द्वारा बनाई गयी उन पुस्तकों से समस्या थी, जिनमें हिन्दू दृष्टिकोण था, जिनमें प्राचीन हिन्दू इतिहास था, ज्ञान था और प्राचीन हिन्दू परम्परा थी।
प्रश्न यह उठता है कि यदि नई पुस्तकें नहीं भी बनाई जा सकती थीं, तो क्या मुरली मनोहर जोशी द्वारा एनसीईआरटी की पुस्तकों में जो संशोधन किए गए थे, उन पर काम नहीं किया जा सकता था? इस बात को लेकर उस समय भी बहुत हंगामा मचा था और फिर उन पर भगवाकरण का आरोप लगा था एवं साथ ही उनकी कुछ गठबंधन की विवशताएँ भी थीं, जिसके कारण वह आगे नहीं बढ़ पाए थे। फिर भी उन्होंने इतिहास की पुस्तकों में कुछ परिवर्तन किये थे। जैसे यह उल्लेख था कि वैदिक काल में स्त्रियों का स्थान सम्मानजनक था, आदि, तो उनपर भगवाकरण के आरोप लगे थे। और जैसे ही सोनिया गांधी की सरकार आई थी, वैसे ही उन सभी अनुशंसाओं को हटा दिया गया था, और चूंकि उस वर्ष बीच में बच्चे नई किताब कैसे पढ़ते तो अगले सत्र से अर्थात वर्ष 2006 के बाद पुस्तकों का सम्पूर्ण रूप ही परिवर्तित कर दिया गया।
यूपीए ने डेढ़ वर्ष में नई पुस्तकें चलवा दी थीं, और मुरली मनोहर जोशी जी ने भी गठबंधन की राजनीति होने के बाद भी भरसक प्रयास किये थे, परन्तु आज आठ वर्ष उपरान्त भी इस सरकार में एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों में से एक भी शब्द नहीं बदले गए हैं।
यहाँ तक कि प्रकाश जावड़ेकर ने भी कहा था कि मोदी सरकार में इतिहास का एक भी पन्ना नहीं बदला गया है। परन्तु यहाँ पर यही प्रश्न उठता है कि क्यों नहीं बदला गया? एक ओर प्रकाश जावड़ेकर यह सगर्व कहते हैं कि एक भी पन्ना नहीं बदला गया और एक ओर गृहमंत्री, जिनका कार्य उस दिन देश में लगी आग को बुझाने या न लगने देने पर होना चाहिए था, वह कह रहे हैं कि “पहले के इतिहासकार मुगलों के बारे में लिखते रहे!, अब हम दोबारा लिखेंगे!”
जो अभी तक संघ द्वारा लिखा गया, उसका क्या होगा फिर? और उसका प्रयोग क्यों नहीं किया गया?
मुझे ऐसा लगता है कि जिसने भी भाषण लिखा, उसका अध्ययन संभवतया संघ द्वारा किये जा रहे कार्यों के प्रति भी अल्प है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ही एक योजना है: अखिल भारतीय इतिहास-संकलन योजना। जिसके विषय में https://www.abisy.org/ पर पढ़ा जा सकता है। इसके परिचय में कहा गया है कि “अखिल भारतीय इतिहास-संकलन योजना, इतिहास के क्षेत्र में कार्यरत विद्वज्जनों का एक राष्ट्रव्यापी संगठन है जो इतिहास, संस्कृति, परम्परा आदि के क्षेत्र में प्रामाणिक, तथ्यपरक तथा सर्वांगपूर्ण इतिहास-लेखन तथा प्रकाशन आदि की दिशा में कार्यरत है। देश एवं विदेशों में रह रहे इतिहास एवं पुरातत्त्व के विद्वान्, विश्वविद्यालयों में कार्यरत प्राध्यापक] अध्यापक, अनुसन्धान-केन्दों के संचालक] भूगोल] खगोल, भौतिशास्त्रादि अनेक क्षेत्रों के विद्वान् तथा वैज्ञानिक एवं इतिहास में रुचि रखनेवाले विद्वान इस कार्य से जुड़े हुए हैं।“
इसके मार्गदर्शकों में से एक हैं सतीश चंद्र मित्तल जी। सतीश चन्द्र मित्तल जी इतिहासकार हैं, और इन्होनें हिंदी और अंग्रेजी दोनों में 51 पुस्तकें ऐसी लिखी हैं, जो अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना की वेबसाईट पर बिक्री के लिए उपलब्ध हैं।
कुछ पुस्तकें हैं:
परन्तु आठ वर्ष में रोमिला थापर का नाम ही और जनता के मस्तिष्क में और मजबूत हुआ, और सतीश मित्तल पर आम जन के लिए कोई परिचर्चा ऐसी आयोजित नहीं हुई, जिन पर जनता के मन में कोई छवि बने।
आज तक आर्य और द्रविड़ सिद्धांत पढ़ाया ही नहीं जा रहा है, बल्कि उसके आधार पर पनपा विमर्श ही इस सरकार में फलफूल रहा है, जबकि जो राष्ट्रवादी इतिहासकार हैं, वह इसका खंडन बार बार करते हैं। एक पुस्तक है भारतीय इतिहासपुनर्लेखन क्यों? एवं पुराणों में इतिहासविवेक, जिसे डॉ कुंवर लाल व्यासशिष्य ने वर्ष 1984 में लिखा था। उसमें उन्होंने मात्र यह ही नहीं लिखा है कि मुगलों ने क्या क्या किया, बल्कि उन्होंने यह भी लिखा कि प्रोफ़ेसर हरिश्चन्द्र सेठ ने सिकंदर और पोरसयुद्ध के सम्बन्ध में यूनानी स्रोतों के आधार पर ही सिद्ध किया है कि इस युद्ध में पोरस की विजय हुई थी, परन्तु आज भारतीय पाठ्यपुस्तकों में सिकंदर को महान विजेता चित्रित किया जाता है। पोरस के उपरान्त उसका सामना क्षुद्रकमालवगण से हुआ, जिस युद्ध में उसे मर्मान्तक प्रहार लगे तू शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हुआ।
अर्थात कोई हरिश्चंद्र सेठ भी हैं, जिन्होनें राष्ट्रवादी तथ्यों के आधार पर इतिहास लेखन किया है, शोध किया है। और इसके साथ ही डॉ कुंवर लाल श्री पुरुषोत्तम नागेश ओक का भी उल्लेख करते हैं जिन्होनें भारतीय इतिहास की भयंकर भूलें नामक पुस्तक लिखी थी।
अर्थात एक ही पुस्तक में हमें तीन नाम सहज उपलब्ध हुए जो यह बताते हैं कि राष्ट्रवादी लेखन हुआ है, इतिहास को तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया है, परन्तु ऐसे लोगों को सामने लाने के लिए पिछले आठ वर्षों में उस सरकार द्वारा कौन से कदम उठाए गए जिसके गृहमंत्री किसी पुस्तक के विमोचन में यह कहते हैं कि इतिहासकारों ने मुगलों के अतिरिक्त कुछ नहीं लिखा?
जिन्होनें सुधारना चाहा, या जिन्होनें लिखा उन्हें पहचान क्यों नहीं मिली?
खैर, यदि कोई यह कहता है कि ऐसी पुस्तकें दुर्लभ हैं, सरकार के पास नहीं हैं तो यह दुविधा भी दूर की जा सकती है क्योंकि यह पुस्तक इतिहासपुनर्लेखन क्यों? एवं पुराणों में इतिहासविवेक, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की वेबसाईट पर ऑनलाइन उपलब्ध है, और सेन्ट्रल आर्कियोलोजिकल लाइब्रेरी दिल्ली में उपलब्ध है।
अब आते हैं कि इतिहासपुनर्लेखन क्यों? एवं पुराणों में इतिहासविवेक में आर्य सिद्धांत के विषय में क्या लिखा है:
वह लिखते हैं कि “आर्य किसी जाति विशेष का बोधक नहीं है। योरोपियन लेखकों ने अब से लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व जब प्राच्य विषयों का अध्ययन आरम्भ किया तो इस शब्द को जाति के अर्थ में माना जाने लगा। परन्तु प्राचीन वांग्मय में आर्य शब्द किसी जातिविशेष के अर्थ में प्रयुक्त नहीं हुआ है। इस कल्पना का मूल कारण था कि जब पाश्चात्यों ने इंडोयूरोपियन भाषा की कल्पना की और इस सम्पूर्ण भाषावर्ग का सम्बन्ध “कल्पित” आर्य जाति से जोड़ा जिससे कि इस जाति को विदेशी सिद्ध किया जा सके। वेदों में आर्य और दस्यु शब्द समाज के दो वर्गों का बोध कराते हैं! (http://ignca।nic।in/Asi_data/71054।pdf)
जबकि आईएएस आदि की कोचिंग में अभी तक आर्य-द्रविड़ सिद्धांत पढ़ाया जा रहा है और ब्राह्मण विरोधी कंटेंट पढ़ाया जा रहा है, जैसा अभी हाल ही में कई लोगों ने वीडियो साझा किये थे!
परन्तु इन इतिहासकारों को यदि इस राष्ट्रवादी सरकार में ही प्रचार नहीं मिल रहा है तो दोषी कौन है? और क्या लिखवाना है अब जब अखिल भारतीय इतिहास-संकलन योजना, जिसका मुख्यालय वेबसाईट के अनुसार दिल्ली में संघ का मुख्यालय है, उसमें जो पुस्तकें हैं, उनका उल्लेख क्यों नहीं होता है?
अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना में कुल 78 पुस्तकें हैं। यदि आज तक किसी इतिहासकार ने हिन्दू राजवंशों का नाम नहीं लिया तो संघ के इन इतिहासकारों ने तो लिया है, तो उनका उल्लेख क्यों नहीं होता? उनका प्रचार प्रसार क्यों नहीं होता?
धर्मपाल की ब्यूटीफुल ट्री का प्रचार क्यों नहीं होता? यदि एनसीईआरटी में पुस्तकों को नहीं बदला गया तो भी कई और माध्यम हैं, परन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ। क्यों नहीं हुआ? क्या इसलिए कि सत्ता में रहने के आठ वर्ष उपरान्त भी वामपंथी इतिहासकारों को कोसा जा सके?
कुछ अन्य पुस्तकें इस योजना के अंतर्गत उपलब्ध हैं:
परन्तु अपने ही संगठन की इस योजना में कार्य करने वाले इतिहासकारों पर भी बात नहीं हुई है? क्या इसके लिए भी वामपंथी इतिहासकार उत्तरदायी हैं?
एनसीईआरटी पुस्तकों में हिन्दू-विरोधी तत्वों की भरमार, सरकार विरोधी भी
यह देखना बहुत ही हास्यास्पद है कि जहाँ जावड़ेकर जी यह कहते हुए गर्व का अनुभव करते हैं कि एक भी पन्ना नहीं बदला है इतिहास में, तो क्या वह उस झूठ को भी नहीं बदलेंगे, जो इतने वर्षों से हमारे बच्चों को पढ़ाया जा रहा है? हमारे बच्चों को इतिहास आदि के माध्यम से कैसे हिन्दू-विरोधी बनाया जा रहा है, वह हम सभी ने देखा है। उसके दिल में आर्य-द्रविड़, पिछड़ा-अगड़ा आदि के माध्यम से जहाँ हिन्दू धर्म के प्रति आत्महीनता भरी जा रही है, वहीं मुस्लिमों को भला और हिन्दुओं को बुरा बताया जा रहा है। मुस्लिमों को गरीब और हिन्दुओं को अमीर दिखाया जा रहा है!
इतना ही नहीं जो सरकार धारा 370 हटाने को अपना सबसे बड़ा राजनीतिक निर्णय बताती है, वह सरकार इस वर्ष भी संभवतया पाठ्यक्रम में यह नहीं सम्मिलित करा सकी है कि कश्मीर की राजनीतिक स्थिति में यह परिवर्तन भी एनसीईआरटी की पुस्तकों के माध्यम से बच्चों को बता सके, क्योंकि कक्षा बारह की राजनीति विज्ञान की पुस्तक में अंतिम अध्याय भारतीय राजनीति नए बदलाव: 1990 का दशक, अध्याय में यह दिखता नहीं है और वही अध्याय अंतिम अध्याय है!
खैर, यह नहीं भूलना चाहिए कि जब अमित शाह वामपंथी इतिहासकारों को कोस रहे थे, उस समय अपनी उस असफलता को बढ़ाचढ़ा कर बता रहे थे, जिसमें उनके ही गुजरात के विषय में वह झूठ आज तक बच्चो को पढ़ाया जा रहा है, जिसे स्वयं न्यायालय अपने निर्णय से काट चुका है। और वह है गोधरा काण्ड और गुजरात दंगे!
हमने पहले भी कहा है कि इस पुस्तक को अपडेट किया गया है, परन्तु एक मामले में यह पुस्तक अपडेट नहीं हुई, और वह है गोधरा के विषय में। इसमें चूंकि आधुनिक भारत में राजनीति के विषय में बातें बताई गयी हैं कि राजनीति किस मोड़ से बदली, कैसे बदली, तो स्पष्ट है कि अयोध्या का उल्लेख है, ढाँचे को तोड़ने का उल्लेख है, उसके बाद उपजे हुए दलों का उल्लेख है। परन्तु उसमें तथ्यों को इस प्रकार से परोसा गया है, कि जिसमें हिन्दू ही दोषी लगें।
फिर आता है वर्ष 2002 और उसमें हुए गुजरात के दंगे। इसके सम्बन्ध में एनसीईआरटी की वर्ष 2022-23 की भी पुस्तक क्या पढ़ाती है वह देखिये। लिखा गया है कि
“2002 के फरवरी मार्च में गुजरात में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। गोधरा स्टेशन पर घटी एक घटना इस हिंसा का तात्कालिक उकसावा साबित हुई। अयोध्या से आ रही एक ट्रेन की बोगी कारसेवकों से भरी हुई थी और इसमें आग लग गयी। सत्तावन व्यक्ति इस आग में मर गए। यह संदेह करके कि बोगी में आग मुसलमानों ने लगाई होगी, अगले दिन गुजरात के कई भागों में मुसलमानों के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। हिंसा का यह तांडव लगभग एक महीने तक जारी रहा।”
अर्थात हमारे बच्चों को अभी तक यह पढाया जाता है कि गोधरा में जो आग लगी थी, दरअसल वह किसी ने लगाई नहीं थी, बल्कि अपने आप लग गयी थी। जबकि इस मामले में विशेष अदालत ने वर्ष 2011 में ही निर्णय दे दिया था। यह बात प्रमाणित हो चुकी थी कि इस घटना को जानबूझकर पूरे होशोहवास में किया गया था। अदालत ने 25 फरवरी 2011 को गोधरा काण्ड पर एतिहासिक निर्णय सुनाया था। संदीप देव की पुस्तक साज़िश की कहानी, तथ्यों की जुबानी, इस पूरे षड्यंत्र को और उसके बाद हुए दंगों के षड्यंत्र को परत दर परत उधेड़ते हुए सत्य बताती है। वर्ष 2011 में जो निर्णय आया उसके अनुसार अदालत ने 94 आरोपियों में से 31 लोगों को दोषी पाया था, जबकि 63 को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था। जो दोषी पाए गए थे, वह सभी के सभी मुसलमान हैं। इनमें से 11 को मृत्यु दंड की सजा सुनाई गयी थी एवं शेष 20 को आजीवन कारावास!
यदि अमित शाह जी यह देखते तो पाते कि मुग़ल तो बहुत दूर है, प्राचीन वैभव तो बहुत दूर की बात है, आपने तो एनसीईआरटी में अपनी ही गुजरात सरकार के विषय में बच्चों को झूठ पढ़ाना और उस झूठ के माध्यम से हिन्दुओं को ही दंगाई ठहराना अभी तक बंद नहीं किया है, वह भी तब जब न्यायालय अपराधियों को दोषी ठहरा चुका है।
इसलिए जब आपने माननीय गृहमंत्री जी, यह कहा कि पहले वामपंथियों ने मुगलों के अतिरिक्त किसी और को नहीं लिखा तो क्या आपको एक बार भी यह नहीं लगा कि कम से कम एनसीईआरटी की कक्षा बारह की राजनीतिक विज्ञान की पुस्तक ही देख ली जाए?
जो निर्णय राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण लिए गए हैं, वह कम से कम बच्चों के लिए तो हूबहू प्रस्तुत किये जाएं, या फिर कम से कम गोधरा काण्ड में जिन हिन्दुओं को जलाया था, उन्हें ही यह कहते हुए दोषी न ठहराया जाए कि यह संदेह करके कि बोगी में आग मुसलमानों ने लगाई होगी, अगले दिन गुजरात के कई भागों में मुसलमानों के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। हिंसा का यह तांडव लगभग एक महीने तक जारी रहा।”
जब भी कोई भी मंत्री अब सत्ता के आठ वर्ष उपरान्त यह कहता है कि वामपंथी इतिहासकारों ने यह किया या वह किया तो ऐसा लगता है जैसे हिन्दुओं के मुंह पर तेजी से कोई थप्पड़ मार रहा हो। जिन इतिहासकारों ने वास्तविक इतिहास लिखा, कम से कम उन्हें ही सामने लाइए, “स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव” में हिन्दू इतिहास का उत्सव भी सम्मिलित हो! काश कि यह हो पाता!
पर नहीं आपकी पाठ्यपुस्तकों में अभी तक हिन्दू ही हर चीज के लिए दोषी है, फिर चाहे वह अंग्रेजों का आना हो, मुगलों का आना हो या फिर गोधरा में जल जाना हो!
प्राचीन वैभव जब इतिहास में आए, प्राचीन इतिहास जब आप लिखवाएं तब लिखवाते रहिएगा, अभी तो एनसीईआरटी की हिन्दू-विरोधी पुस्तकों में परिवर्तन कर सकें तो ही हिन्दू कम से कम अपने उन बच्चों से नजर मिला सकें, जो कक्षा बारह में पढ़ रहे हैं या पढ़कर निकले हैं!