अजीत दुबे। दिल्ली की राजनीति पिछले एक-डेढ़ दशक में कैसे बदली है, हालिया दिल्ली नगर निगम चुनाव इसकी गवाही दे रहे हैं। दिल्ली की सियासत में पारंपरिक तौर पर पंजाबियों का वर्चस्व रहा है। इस वजह से इनसे जुड़े मुद्दे यहां की राजनीति में हमेशा से हावी रहे हैं, लेकिन अब यह समीकरण बदलने लगा है। पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार यानी पुरबिया लोगों की तादाद बढऩे के साथ ही सियासत में भी इनकी प्रभावी मौजूदगी साफ-साफ दिख रही है। पूर्वांचल कई मायनों में खास है। सियासत से लेकर सामाजिक गठन तक इस इलाके का मिजाज ही अलग है। दिल्ली नगर निगम चुनाव में बीजेपी की प्रचंड जीत के पीछे पूर्वांचल फैक्टर ने भी काम किया। मनोज तिवारी के रूप में पूर्वांचल और बिहार के वोटरों को लुभाने में पार्टी कामयाब रही। 1.75 करोड़ आबादी वाली दिल्ली में करीब 35 से 40 फीसदी पूर्वांचल के लोग हैं, जो चुनावों में निर्णायक साबित हो रहे हैं। आज कई क्षेत्रों में चुनाव परिणाम को प्रभावित करने की स्थिति में है। इस सियासी गणित को ध्यान में रखते हुए सभी पार्टियां इन्हें अपने साथ जोडऩे की हरसंभव कोशिश करने लगी हैं। यही वजह है कि भाजपा और आम आदमी पार्टी समेत सभी पार्टियों की कोशिश पूर्वांचली वोटरों को रिझाने की रही, पर इसमें इस बार बीजेपी बाजी मार गई। 270 सीटों में से भाजपा ने 181 सीटों पर फतह हासिल की। लेकिन आप और कांग्रेस के खाते में महज 45 और 26 सीटें गईं।
एमसीडी चुनाव में पूर्वांचली राजनीति के केंद्र में रहे। भाजपा ने 32 पूर्वांचली प्रत्याशी उतारे थे। इनमें से 70 प्रतिशत यानी कुल 20 प्रत्याशियों ने जीत हासिल की। कांग्रेस और आप दोनों पार्टी, पूर्वांचली वोटरों का विश्वास जीतने में सफल नहीं हो सकी। इतना ही नहीं पूर्वांचलियों को उचित प्रतिनिधित्व दिलाने के नाम पर वोट मांगने वाली जदयू, लोजपा और राजद को जहां एक भी सीट नहीं मिली वहीं बसपा व सपा बस इज्जत बचा सकीं। ज्ञात हो कि एमसीडी चुनाव में बड़े-बड़े दावों के साथ उतरी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के खाते में कुल वोट का एक फीसदी भी नहीं गया। जदयू प्रत्याशियों के समर्थन में पार्टी के अध्यक्ष व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बुराड़ी और बदरपुर इलाके में दो चुनावी जनसभाएं की। बावजूद इसके दिल्ली नगर निगम चुनाव में इनका कोई सिक्का नहीं चल पाया। दीगर रहे कि दिल्ली में पूर्वांचली कभी कांग्रेस पार्टी के वोट बैंक समझे जाते थे। लेकिन विगत विधानसभा चुनाव में पूर्वांचली वोटरों ने आप को अपना समर्थन दिया था। फलत: आज दिल्ली विधानसभा में आप के पास पूर्वांचली पृष्ठभूमि के एक दर्जन से अधिक विधायक हैं।
कांग्रेस पार्टी के शासनकाल में पूर्वांचल क्षेत्र से केवल एक विधायक था। इसे एमसीडी चुनाव से जोड़कर देखें, तो 272 वार्डों वाले दिल्ली नगर निगम की 100 से ज्यादा सीटें पूर्वांचल बहुल आबादी वाली हैं। मैं विगत 62 वर्षों से राष्ट्रीय राजधानी में रह रहा हूँ। विगत छ: दशकों में यह पहला मौका है जब पूर्वांचलियों ने सिर्फ वोट बैंक ही नहीं बल्कि नेतृत्वकर्ता के रूप में अपनी मौजूदगी दर्ज करायी है। यही वजह है कि सभी पार्टियां प्रत्याशी और स्टार प्रचारक पूर्वांचली वोटरों को ध्यान में रखकर ही तय करती हैं। जब से मनोज तिवारी को बीजेपी ने चेहरा बनाया पूर्वांचली वोटर धीरे-धीरे आप से खिसक कर बीजेपी के करीब जाने लगे। उन्होंने बीते पांच महीने से दिल्ली की सड़कों पर खूब पसीना बहाया और झुग्गी बस्तियों में प्रवास कर गरीबों को अपने साथ जोड़ने की पूरी कोशिश की, जिसमें वे सफल रहे। मनोज तिवारी ने इस चुनाव में 32 पूर्वांचल मूल के प्रत्याशियों को टिकट दिया था जिनमें से 20 विजयी हुए हैं। इनमें से ज्यादातर उनके के संसदीय क्षेत्र उत्तर-पूर्वी दिल्ली में जीते हैं। इस बार एमसीडी चुनाव प्रचार की कमान मूलत: मनोज तिवारी के हाथ में थी। उन्होंने इन चुनावों में पूर्वांचली मतदाताओं को जोड़ने के लिए अभिनेता श्री रवि किशन व भोजपुरी लोकगायक श्री भरत शर्मा को चुनावी प्रचार में लगाया।
एक ओर जहां रवि किशन ने करीब 120 से अधिक चुनावी सभायें की तो वहीं भरत शर्मा जी ने भी सैकड़ों रोड शो किया। इससे पूर्वांचली वोटर बीजेपी से जुड़े। जब मनोज तिवारी को दिल्ली प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया था, तब भाजपा के पंजाबी और वैश्य गुट के नेताओं ने तिवारी के खिलाफ लामबंदी की थी। बावजूद इसके भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के सीधे समर्थन से दिल्ली भाजपा की कमान संभालने वाले मनोज तिवारी ने जिस तरह के परिणाम दिए, उससे तिवारी का कद और ऊंचा हो गया है। भाजपा के विराट विजय हासिल करने पर दिल्ली बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष श्री मनोज तिवारी को मैं अपने अनुज अरविंद दुबे जी के साथ बधाई देने उनके आवास पर गया था। और बहुत ही गौरव का क्षण साथ कि माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का टेलीफोन उसी समय मनोज जी को आया। बातचीत के क्रम में मनोज जी ने बड़ी विनम्रता के साथ प्रधानमंत्री जी से कहा कि ये जीत आपके नाम व काम पर मिली है।
दिल्ली में बीते दो विधानसभा चुनावों में अपनी करारी हार से परेशान भाजपा को पूर्वांचली वोटर्स को रिझाने हेतु एक बड़े और लोकप्रिय चेहरे की जरूरत थी और उनकी यह खोज मनोज तिवारी पर आकर समाप्त हुई। अपने उपनाम ‘मृदुल’ के अनुरूप स्वभाव से मधुर मनोज तिवारी राजनीति का ककहरा भली भांति जानते हैं। शायद तभी भाजपा में दूसरे पूर्वांचली नेताओं के ऊपर उन्हें तवज्जो दी गई है। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने एमसीडी चुनाव में बीजेपी को मिल रही जीत के लिए प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी को धन्यवाद दिया है। भोजपुरी सुपरस्टार से राजनेता बने मनोज तिवारी ने इस विराट विजय से स्वयं को जोड़ा है। ऐसे में दिल्ली की राजनीतिक गलियारे में ऐसी चर्चाएँ आज नहीं तो कल उठेंगी कि क्या मनोज तिवारी 2020 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के सीएम पद उम्मीदवार होंगे और पूर्वांचली वोटरों के सहारे जिताकर दिल्ली के मुख्यमंत्री बनेंगे?