दीपक कुमार द्विवेदी भारतभूमि महान भूमि है यहां कण कण में शंकर है यह पर 20 कोस में भाषा और पानी बदल जाता है भारत संस्कृति सभ्यता करोड़ों वर्षों चलीं आ रही है समय काल खंड बदलाव के कारण हमारे समाज कुछ विकृतियां आई है और वह विकृति समाज दूर करता गया 7 वी सदी से भारत भूमि पर इस्लामिक आक्रांताओं ने भारत पर हमले करने शुरू कर दिए जिसके कारण भारत का उतरी और पूर्वी भाग उसके चपेट आ गया औ जो भाग उनके चपेट नहीं आया उस भाग को वैचारिक माध्यमो तबाह करने का प्रयास किया गया है। उसके कारण उस भाग संस्कृति सभ्यता को नहीं बदला गया है उस भाग में रहने वाले जन मानस की पूरी विचारधारा को बदल दिया है इस कार्य में उन शक्तियों सहयोग कुछ जयचंद दिए कुछ लोगों ने मजबूरियों कारण भी उनका साथ दिए जिसके कारण हिंदू समाज के मन से शत्रुबोध समाप्त हो गया ।
एक गांव में एक व्यक्ति रहता था उसके घर के सामने से एक व्यक्ति निकलता था वह उस व्यक्ति कहता था आप अस्वस्थ दिख रहे आप अपने सेहत पर ध्यान दिजिए यही सिलसिला प्रतिदिन चलता है प्रतिदिन वो व्यक्ति उस घर का सामने निकलता उस व्यक्ति यही कहता है कुछ माह जब बीत गए धीरे धीरे उस व्यक्ति को लागने लगा क्या वह सच में बीमार है वह व्यक्ति अपने को बीमार समझने लग गया यही स्थिति हिंदू समाज की हजार वर्ष गुलामी कालखंड में हिंदूओ की यह स्थिति हो गई अपने विदेशी आक्रांताओं गुलाम समझने लग गया है उसके मन से लड़ने क्षमता समाप्त हो गई जो उनके पक्ष लड़ता है उनके खिलाफ खड़ा होने लग गया और समाज गुलामों की भांति व्यवहार करने लग गया है वहीं विचारधारा आज के समय हर हिन्दू मन में मिल जाएगी ।
बंगाल में हिंसा संस्कृति का हिस्सा कैसे बनती चली गई इसका ऐतिहासिक समाजिक पृष्ठभूमि क्या है बंगाल ने कभी खुद को टूटते देखा. कभी यहां के रणबांकुरों को आजादी-अस्मिता और स्वाभिमान के लिए लड़ते देखा. बंगाल ने दस हिंदू वंशों का शासन देखा तो कभी मुगलों के राज का गवाह बना. बंगाल ने बंटवारे का दंश भी सहा और फिर राजनीति की उथल-पुथल भी देखी. आइए- जानें बंगाल के इतिहास के ऐसे ही कुछ पहलू.
सिकंदर ने जब बंगाल में आक्रमण किया उस समय यहां गंगारिदयी साम्राज्य था. इससे पहले गुप्त या मौर्य सम्राटों का बंगाल पर खास प्रभाव नहीं जम पाया था. इसके बाद यहां पाल वंश ने विशाल साम्राज्य खड़ा किया और चार शताब्दियों तक राज्य किया. पाल राजाओं के बाद बंगाल पर सेन राजवंश का अधिकार हुआ इन्हें ही दिल्ली के मुस्लिम शासकों ने हराया और 16वीं शताब्दी में मुगल शासन की शुरुआत हुई. इन 10 वंशों ने किया शासन
पाल वंश
सेन वंश
इलियास वंश (प्रथम पर्व)
बायाजिद वंश
गणेश वंश
इलियास वंश (द्बितीय पर्व)
हाबसि वंश
हुसेन वंश
शूर वंश
कररानि वंश
बंगाल ने देखा इन नवाबों का शासन
मुर्शिदकुलि जाफर खान 1717-1727
सुजाउद्दिन 1727-1739
सरफराज खान 1739-1740
अलीबर्दी खान 1740-1756
सिराजुद्दौला 1756-1757
ये थे ब्रिटिश काल के नवाब
मीर जाफर 1757-1760
मीर कासिम 1760-1763
मीर जाफर (द्बितीय बार) 1763-1765 (बक्सर का युद्ध)
नाजम उद दौला 1765-1766 (अल्पवयस्क )
सइफ उद दौला 1766-1770
मुगलों के बाद आधुनिक बंगाल का इतिहास यूरोपीय-अंग्रेजी व्यापारिक कंपनियों के आगमन की दास्तां समेटे है. सन् 1757 में प्लासी के युद्ध ने इतिहास की धारा को मोड़कर अंग्रेजों ने पहली बार बंगाल और भारत में अपने पांव जमाए थे. सन् 1905 में राजनीतिक फायदे के लिए अंग्रेजों ने बंगाल को बांट दिया लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व में लोगों के बढ़ते आक्रोश को देखते हुए 1911 में बंगाल को फिर से एक कर दिया गया. इससे स्वतंत्रता आंदोलन की ज्वाला और तेजी से भड़की जिसका पटाक्षेप 1947 में देश की आजादी और विभाजन के साथ हुआ.
1947 के बाद देशी रियासतों के विलय का काम शुरू हुआ और राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 की सिफारिशों के अनुसार पड़ोसी राज्यों के कुछ बांग्लाभाषी क्षेत्रों को भी पश्चिम बंगाल में मिला दिया गया. बता दें 1947 में जब भारत आजाद हुआ, इसके साथ ही बंगाल का जो हिस्सा, मुस्लिम प्रधान था वो अब पूर्व बंगाल से बांग्लादेश बना. इसके अलावा हिंदू प्रधान पश्चिम बंगाल भारत का हिस्सा बना.
मैं बंगाल का संक्षिप्त इतिहास बताने का प्रयास करा हू बंगाल इतिहास इससे अधिक विस्तृत है बंगाल वह पुण्य भूमि है जहां पर बड़े संत ,विचारक, लेखक कवि ,साहित्यकार ,अर्थशास्त्री वैज्ञानिक ,और ,क्रांतिकारी हुए हैं। बंगाल के प्रसिद्ध संत : बंगाल में कई महान क्रांतिकारी संत हुए हैं। चैतन्य महाप्रभु, स्वामी प्रणवानंद, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद, कृतिवास, बाउल संत, प्रभु जगत्बंधु, का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इसके अलावा युक्तेश्वर गिरि, योगी श्यामाचरण लाहिड़ी, स्वामी योगानंद और प्रभात रंजन सरकार ऊर्फ आंनदमूर्ति भी बंगाल में सक्रिय रहे हैं।
आधुनिक काल में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय, मलय रायचौधुरी, देबी राय, सुबिमल बसाक, समीर रायचौधुरी, रविंद्रनाथ टेगोर प्रमुख कविगण रहे हैं। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, जगदीश चन्द्र वसु (बोस), सत्यजित राय, तपन सिन्हा, मृणाल सेन और अपर्णा सेन, बिधान चन्द्र राय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय, रवीन्द्र नाथ ठाकुर (टैगोर), सत्येन्द्र नाथ बोस, महाश्वेता देवी, राजा राममोहन राय, सौरभ गांगुली, शर्मिला टैगोर, अमर्त्य सेन, खुदीराम बोस, भूदेव मुखोपाध्याय आदि अनेक महान लोग हुए हैं।
बंगाल के शक्तिपीठ : 52 शक्तिपीठों में से बांग्लादेश में 4 और बंगाल में लगभग 12 से 13 शक्तिपीठ विद्यमान हैं। अधिकतर शक्तिपीठ बंगाल में ही विराजमान हैं क्योंकि प्राचीन काल से ही बंगाल शाक्त और तंत्र मार्ग का गढ़ रहा है। नवरात्रि में दुर्गा पूजा बंगाल का प्रमुख त्योहार है। बंगाल की भूमि इतनी पवित्र महान सपूतों की भूमि थी फिर बंगाल में हिंसा संस्कृति कैसे विकसित होती गई।
बंगाल की भूमि बहुत पवित्र महान सपूतों की भूमि है बंगाल में हिंसा पृष्ठभूमि की शुरुआत इस्लामिक आक्रांताओं के बंगाल हमले के साथ शुरू हो गई थी इस हिंसा संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए बंगाली मानुष दोषी है अपनी श्रेष्ठता के अहंकार की पूर्ति के लिए बंगाली भाद्र मानुष बंगाल को हिंसा आग में झोंक दिया है बंगाल का इतिहास जितना गौरवशाली है उतना ही काल है बंगाल में हिंसा की शुरुआत की पृष्ठभूमि हिंदू समाज के एक भूल शुरू होती है बंगाल में एक हिंदू ब्राह्मण रहता था वो एक मुस्लिम नवाब की बेटी से बहुत प्रेम करता था
नवाब ने उसके सामने एक शर्त रखी हमारी बेटी से विवाह करना चाहते हो तो तुम्हें इस्लाम काबुल करना होगा वह इस्लाम स्वीकार कर लिया उसके बाद वह नवाब की बेटी से विवाह कर लिया उसके बाद वह हिंदू ब्राह्मण हिंदू धर्म में वापसी करना चाहता था पुरी के जगन्नाथ मंदिर में गया जगन्नाथ मंदिरों के पुजारियों को पता चल गया उसे मंदिर प्रवेश नहीं होने दिया वह 7 दिन तक भूखा प्यासा मंदिर दरवाजे में बैठा रहा तब भी उसे प्रवेश नहीं करने दिया गया इस अपमान से क्रोधित होकर इस्लाम स्वीकार कर लिया और वहां बंगाल नाबाब बना उसके बाद उसने हजारों मंदिरों को तोड़ा हजारों हिंदुओं का नरसंहार करवाया लाखों हिंदुओं को मुस्लिम बनाया जिसके कारण आज बंगाल इस्लामीकरण करण दिखाई दे रहा है आज भी दे रहा है
बंगाल में हिंसा संस्कृति शुरुआत हिंदूओ एक ग़लती कारण हुई थी उसका भयानक रूप जब मुस्लिम लीग ने 1946 मे डायरेक्ट एक्शन डे का आवाहन किया तो कोलकाता सड़कों दिखाई दिया था मुस्लिम चरमपंथियों ने 15 हजार हिंदूओ को मार दिया इस नरसंहार कि प्रतिक्रिया गोपाल चंद्र पाठा के नेतृत्व भी दी है इस प्रतिक्रिया की उम्मीद मुस्लिम चरमपंथियों को उम्मीद नहीं थी मुस्लिम चरमपंथी गांधी के पास पहुंच गए गांधी अनशन पर बैठ गए और हिन्दू समाज क्रोध को गांधी जी ने सोक लिया इतने बड़े नरसंहार गांधी जी कारण बंगाली समाज भूल गया जिसके कारण बंगाल में हिंसा संस्कृति विकसित होती गई बंगाल में वामपंथ प्रभाव इसलिए बढ़ता गया क्योंकि बंगाली लोग पढ़ने के लिए बाहर जाते हैं
बंगाल में भी उच्च कोटि शिक्षण संस्थान थे जिसके कारण वामपंथी विचारधारा प्रचार प्रसार बढ़ता गया बंगाल स्वतंत्रता के बाद एक औद्योगिक प्रधान राज्य था यहां पर देश भर मजदूर काम करने आते थे वामपंथी मजदूर यूनियनो ने मजदूरों और किसानों को उद्योगपतियों के खिलाफ बहुत भड़काया उन्हें हिंसक बनाते गए बंगाल के छोटे गांव नक्सलबाड़ी में कम्युनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजूमदार और कान्यू सन्याल ने नक्सलवादी जैसे हिंसक आंदोलन में बंगाल में शुरू किया यह आंदोलन जन जंगल जमीन सर्वहारा के नाम पर शुरू किया गया है
यह हिंसक आंदोलन पूरे देश में फैलता गया जिसमें देश के लाखों निर्दोष नागरिको को जान गंवाना पड़ा जितने सेना और अर्धसैनिक बलों जवान कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित इस्लामिक आंतकवादी हमलों में नहीं वीरगति को प्राप्त नहीं हुए उससे कई गुना सेना अर्धसैनिक बलों के जवान कम्युनिस्ट नक्सली हमलो में वीरगति को प्राप्त हुए । खूनी नक्सलवादी आंदोलन की पृष्ठभूमि में बंगाली मानुष की श्रेष्ठता का अंहकार कारण शुरू हुई थी जब हिंसा को समाज संस्कृति मानने लगता है उसका खामियाजा समाज को भुगतना पड़ता है बंगाल सबसे बड़ा उदाहरण है बंगाल कभी भारत की औद्योगिक आर्थिक राजधानी हुआ करता था ।
वह बंगाल की कुंठित श्रेष्ठता अंहकार में ग्रसित समाज ने अपने हाथों से बंगाल को तबाह और बर्बाद कर दिया। जब व्यक्ति का श्रेष्ठता अहंकार सीमा से अधिक पार कर जाता है तब वामपंथी विचारधारा का प्रभाव बढ़ता जाता है बंगाल में हिंसा का सिलसिला नबाब से शुरू हुआ था वह सिलसिला आज तक जारी है बंगाली मानुष जो श्रेष्ठता अहंकार ग्रस्त हैं वह समाज उन हिंसक तत्वों के सामने पूर्ण रूप से आत्मसमर्पण कर दिया है । बंगाल हिंसा सांस्कृतिक को समाप्त करके नई शुरुआत कैसे की जा सकती हैं
बंगाली मानुष के पास अब ज्यादा वक्त नहीं रह गया है क्योंकि बंगाली मानुष ने अपने श्रेष्ठता के अहंकार अराजक हिंसक तत्वों प्रश्रय दिया है जिसके कारण बंगाल में हिंसा एक संस्कृति रूप में विकसित हो गई इस संस्कृति को समाप्त करना है तो खासकर बंगाली भद्र मानुष को झूठी श्रेष्ठता अहंकार को छोड़ना पड़ेगा और सच को स्वीकार करना होगा उनकी गलतियों के कारण बंगाल यह स्थिति हुईं हैं यह गलती हमे स्वयं सुधारनी होगी तभी बंगाल में कुछ परिवर्तन हो सकता है जब तक लोगों गलती एहसास नहीं होगा बंगाल में हिंसा इस्लामिक चरमपंथ का प्रभाव समाप्त नहीं हो सकता है ।
क्योंकि गलतियों स्वीकार करने बाद बंगालियों का शत्रु बोध जागृति हो सकता है जब समाज का शत्रु बोध जागृति होता है तो एक बड़े बड़े सामाजिक सांस्कृतिक धार्मिक आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार होती है वह कुछ वर्षों में विस्फोटक रूप दिखाई देती है जिसके बाद समाज में बड़ा परिवर्तन दिखाई देने लगता है बंगाल आज की जो स्थिति है इसमें बड़े स्तर परिवर्तन की संभावना बहुत कम है संभावना भी है तो राजनीतिक परिवर्तन की है ।
सांस्कृतिक समाजिक धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से परिवर्तन की संभावना नहीं है क्योंकि बंगाल का 60% हिंदू कुंठा ग्रस्त हैं वह कुंठा कई सदियों से निर्मित की जा रही है मै ने उपर एक कहानी सुनाई थी किसी व्यक्ति को बार बार यह कहा जाए आप स्वस्थ नहीं है तो वह एक दिन अपने को बीमार समझने लग जाता है वही काम बंगाल और केरल हिंदू समाज के साथ हुआ है यही काम हिंदू समाज के साथ इस्लामी वामपंथी ईसाई मिशनरियों ने किया था उन्हें यह बताया आप श्रेष्ठ है हिंदू संस्कृति अवैज्ञानिक है हिंदूओ में सती प्रथा और जाति प्रथा जैसी कुप्रथाएं है उतर भारतीय नीच होते हैं
आप श्रेष्ठ है आप शक्ति पूजा करते हैं उत्तर भारत में लिंग की पूजा होती है दुनिया के किसी धर्म में लिंग पूजा नहीं होती है यह बात बार बार कहकर बंगाली हिंदूओ ब्रेनवाश किया गया जाता है बंगाली हिंदू इन बातों को सही मानने लगा गया मदर टेरेसा के वक्त बंगाल में बड़े पैमाने पर ईसाई मिशनरियों ने हिंदूओ का मतांतरण किया बंगाल में वर्तमान में कागज में 65% हिंदू आबादी है 65% हिंदू आबादी में अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति की आबादी जो 40% है उनको छोड़ दिया उसके बाद जो बाकी 25% बचते हैं हिंदू उसमें हिंदू नास्तिक वामपंथी और ईसाई या मुस्लिम बन चुके है उन्हें अब सनातन धर्म संस्कृति सभ्यता से कोई मतलब नहीं है मतलब भी है तो वह शक्ति उपासना तक सीमित रह गए है
जब समाज की यह स्थिति हो जाती है तो समाज प्रतिकार करने स्थिति में रह नहीं जाता है इसलिए बंगाल समास्या समाधान भक्ति आंदोलन जैसा एक आंदोलन कर सकता है जो पूर्ण रूप आध्यात्मिक आंदोलन हो समाज में सनातन धर्म को वैज्ञानिक रूप में प्रस्तुत करे बंगाली हिंदू को स्वयं अस्तित्व को जानने के लिए प्रेरित करे ऐसा हो गया तो बंगाल मे 10 से 15 साल में बड़ा परिवर्तन दिखाई दे सकता है नहीं तो बंगाल आज जो स्थिति है उसमें स्पष्ट है 15 से 20 साल बंगाल भारत से अलग हो जाएगा इसलिए आज की स्थिति बंगाल को भक्ति आंदोलन 2.O बचा सकता है। उसके आलावा बंगाल को बचाने का कोई विकल्प नहीं है ।
क्योंकि बंगाली हिंदू लड़ने की स्थिति में नहीं है मुस्लिम संख्या 35% आसपास है वह जनसंख्या लगातार बढ़ती जा रही है कुछ वर्षों में 40% को पार कर जाएगी उसके बाद इन्हें रोकने हिन्दूओ बस की बात नहीं है क्योंकि ये समुदाय अपने लक्ष्य विचारधारा के विस्तार के लिए अडिग है इसके लिए कुछ भी करने को तैयार हैं हिंदू समाज दिग्भ्रमित है उसे यह पता नहीं है उसे करना क्या है इसलिए आज बंगाल की स्थिति बहुत ख़तरनाक और भयानक है बंगाल को अब भगवान ही बचा सकते हैं क्योंकि भक्ति आंदोलन 2.O शुरू होने की संभावना दूर तक नहीं दिखाई दे रही है
अब कुछ चमत्कार हो जाए तभी बंगाल बच सकता है इसलिए बंगाल हिंदू समाज को चाहिए एक आध्यात्मिक नेतृत्व खड़ा करने प्रयास करे तभी कुछ परिवर्तन हो सकता है राजनैतिक नेतृत्व से कुछ परिवर्तन नहीं हो सकता है सत्ता बदल जाएगी तंत्र में तो कोई बदलाव नहीं आएगा तंत्र में तो वामी इस्लामी क्रिश्चियन गिरोह भरा हुआ है जो प्रायः हिंदू विरोधी मानसिकता ग्रस्त हैं इसलिए राजनैतिक सत्ता के बदलने के बाद कुछ नहीं बदलने वाला है स्थिति जस तस बनी रहेगी जो आमने सामने लड़ाई हिन्दू लड़ने का प्रयास करेगा वह खुद मारा जाएगा बंगाल को इस ख़तरनाक भयानक स्थिति निकलने एक मात्र तरीका है हिंदू समाज राजनैतिक वैचारिक रूप से काम करे वह तभी हो सकता है बंगाली हिंदू समाज का नेतृत्व एक संत समाज जुड़ा व्यक्ति करें समाज को इस परिस्थिति निकालने के लिए प्रेरित करे तभी बंगाल में कुछ बड़ा परिवर्तन संभव है ।
जय श्री कृष्ण
दीपक कुमार द्विवेदी