भारत परंपराओं और आस्था का देश है। यदि मानवता के लिए किसी ने कभी कुछ किया है तो जन सामान्य उसे सम्मान देने से नहीं चूकता। नैनीताल में एक जगह है, घोड़ाखाल। यहां ग्वैल देवता ऊर्फ गोलू देवता का मंदिर है।
ऊंची पहाड़ी पर बसे इस मंदिर में हर तरफ घंटियां ही घंटियां बंधी है। मंदिर के अंदर घंटियों के साथ स्टाम्प पेपर से लेकर कागज तक पर आवेदन पत्र लगा है। लोगों ने अपनी-अपनी मांग या कहिये मनौती लिखकर वहां लगाते हैं और मनौती पूरी होने पर मंदिर के अंदर घंटियां लगाते हैं।
घंटियों की असंख्य संख्या और अपने-अपने नाम वाले छोटे-बड़े अनगिनत घंटियों को देखकर लगता है कि लोगों की कितनी आस्था है इस मंदिर में!
मान्यता है कि राजा ग्वैल चंपावत के महाराज थे। वह बेहद न्यायप्रिय राजा थे। कोई भी उनके यहां से बिना न्याय पाए नहीं लौटता था। अपनी न्यायप्रियता के कारण अपनी मृत्यु के बाद लोगों ने उन्हें गोलू देवता बना दिया और अब भी न्याय पाने के लिए उनसे गुहार लगाते हैं। उन्हें बटुक भैरव का अवतार मान लिया गया, क्योंकि बटुक भैरव भी न्याय के ही देवता हैं।
मैं समाजशास्त्र का विद्यार्थी हूं और धर्म व मान्यताओं की सूक्ष्मता के साथ अध्ययन किया है। समाजशास्त्र में स्थानीय स्तर के देवताओं के वृहत अस्था का रूप लेने को मैकिम मेरियेट ने स्थानीयकरण व सार्वभौमिकरण की अवधारणा देते हुए समझाया है।
आज स्थानीय राजा ग्वैल ऊर्फ गोलू देवता का सार्वभौमिकरण हो गया है और देश के कोने-कोने से लोग घोड़ाखाल के गोलूदेव मंदिर अपनी मनौती मांगने और पूरा होने पर यहां घंटी बांधने आते हैं।
मानवशास्त्रायों ने स्थनीय देवता को टोटम कहा, लेकिन यह असल में आस्था है..और आस्थाओं का देश भारत पूरी मानव सभ्यता को सामंजस्य, सहिष्णुता और अपनी प्रकृति के अनुरूप जीने और मान्यताओं के पालन का संदेश देता है। दूसरी तरफ अब्राहमिक पैगंबरवादी रिलीजन/मजहब व्यक्तियों पर अपनी मान्यताएं थोपता है, उनकी मान्यताएं छीनता है। इसीलिए भारत व सनातन ‘धर्म’ है, और दूसरे अन्य बस विचारधाराएं!