गोपाल मिश्र। क्या कमाल है! सही कहते हैं कि घोटाला करने के लिए दिमाग चाहिए। वर्ना जिंदगी बीत जाएगी सिर्फ गधों की तरह खटते हुए। तो 2014 से एक घोटाला चल रहा था बैंकों को लूटने का तो बैंको ने पहुंच वाले अमीरों के साथ एलओयू पर दस्तखत किए। इसके तहत क्रेडिट गारंटी दी। इस गारंटी की कहीं एंट्री भी नहीं हुई कागज पर और तीन-चार साल तक आडिट भी नहीं हुआ। और विदेशी शाखाओं से हजारों करोड़ का भुगतान करवा लिया गया। एंट्री ही नहीं, आडिट ही नहीं तो घोटाला सामने कैसे आए? फिर इलाहाबाद बैंक के जिस स्वतंत्र निदेशक ने सवाल उठाया, उससे इस्तीफा मांग लिया गया।
रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर ने उनसे कहा कि ये सब चलता रहता है। ये सब रेनकोट वाले प्रधानमंत्री जी और महान विद्वान राजन जी के कार्यकाल में होता रहा। सुनते हैं कि एलओयू घोटाला तो महज छोटी बात है, बहुत छोटी। बैंकों के नियामकों, कांग्रेस नेताओं और उनके वफादारों की सांठगांठ से बैंकों की लूट का घोटाला लाखों करोड़ में जा सकता है। अहमद पटेल के गगन धवन का मामला तो बहुत छोटा है। पर चतुरसुजान इस बार बहुत बुरे फंसेंगे। नीरव मोदी की पार्टियों को गुलजार करने के बाद जो रंगारंग ट्वीट कर रहे हैं, इस बार वो भी घेरे में आने चाहिए।
सुनते हैं कि एक बड़े वकील और कांग्रेस के बहुत बड़े नेता और वित्त मंत्री रहे किसी सज्जन ने बहुत बड़ी कृपा की। अब उस गरीब नीरव मोदी के पास मुंबई में रहने को घर नहीं था तो उन्होंने अपना दो बेडरूम का फ्लैट किराए पर उठा दिया सिर्फ 35 लाख रुपए महीने पर। वैसे भी भारत में कोई ऐसा घोटाला नहीं है जिसमें उस वित्त मंत्री के बेटे का नाम ना आता हो। वो कितने अच्छे दिन थे जब सब मिल बांट के खाते थे। आप तो प्रतिस्पर्धी राष्ट्रवाद और प्रतिस्पर्धी हिंदुत्व में उलझे रहें। अगली बार उन्हें लाएं और चंद्रशेखर सरकार वाले अच्छे दिन लाएं। अब क्या बेचने को रह गया है? हमारी संप्रभुता?
साभार: मूषक के वाल से