मैंने बिखेरी हैं,
सांसें हवाओं में
थोड़ी-थोड़ी!
एक उम्मीद के साथ,
कि कोई तो बटोर लेगा!
अंजुरी भर
फिर बिखेर देगा
अपने बाद फिजाओं में!
ताकि जीवन चलता रहे,
इस लेन-देन के मध्य
आखिर!
किसी को तो
होना ही होगा सांकल,
उस द्वार का,खुलता है जो,
जीवन-मरण के मध्य! #SanjeevJoshi
फोटो: साभार गूगल
Key Words: hindi poetry, kavitakosh, Hindi poem, हिंदी कविता, कविता कोष,