कांग्रेस चाहती थी उत्तर प्रदेश में सपा बसपा गठबंधन में हिस्सेदारी पा कर किसी तरह से मोदी भय के कारण सामने आ रहे भयावह चुनावी बैतरनी पार कर ली जाए। लेकिन बसपा सुप्रीम मायावती ने कांग्रेस के सपनो पर पानी फेरते हुए साफ संदेश दे दिया कि बसपा कांग्रेस संग उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश में कहीं गठबंधन नहीं करेगी। वो मायावती का ही दवाब था कि सपा मुखिया अखिलेश यादव को कांग्रेस से किनारा करना पड़ा। यह कांग्रेस के लिए अपमान का घूंट पीने जैसा था। कांग्रेस महागठबंधन की सवारी कर राहुल को देश का प्रधानमंत्री बनाने का सपना देख रही थी। उसे उम्मीद थी कि प्रियंका के सक्रिय राजनीति में आने से महागठबंधन में उसकी कीमत बढ़ेगी। लेकिन माया ने कांग्रेस को दूध की मख्खी की तरह बाहर कर दिया। इसका बदला लेने के लिए कांग्रेस ने यकायक एक फैसला किया पश्चिमी उत्तर प्रदेश मे उभरते दलित नेता चंद्रशेखर आजाद को सहलाने का।
प्रियंका तुरंत आनन फानन में भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर से मिलने आगरा पहुंच गई। प्रियंका और चंद्रशेखर के मिलने की खबर जैसे ही जंगल की आग की तरह फैली मायावती ने अखिलेश को संदेश भेजा अमेठी और रायबरेली में गठबंधन ताकतवर उम्मीदवार उतारेगी। संदेश साफ था। मायवती अब सोनिया और राहुल का पत्ता भी उत्तर प्रदेश से काटने का ठान ली है।
अमेठी और रायबरेली में कांग्रेस की आत्मा बसती है। कांग्रेस ने 16 लोकसभा चुनाव में से सिर्फ दो बार यहां से हार को झेला है। लगभग तीन दशक से सपा यहां कांग्रेस संग अघोषित समझौता करती है। या तो यहां से उम्मीदवार नहीं उतारती यदि उतारती है तो बस खानापूर्ती के लिए। पिछली लोक सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में 80 में से मात्र दो लोकसभा चुनाव कांग्रेस ने जीता था जिसमें सोनिया की रायबरेली और राहुल की अमेठी सीट थी। राहुल गांधी ने किसी तरह से भाजपा उम्मीदवार स्मृति ईरानी को हराया था। उसका कारण सपा का वहां से अपना उम्मीदवार नहीं उतारना था। यह सपा क्या बसपा भी अंदरखाने करती रही है। इसका ईनाम केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनने पर माया और मुलायम को मिलता रहा है। दोनो के खिलाफ भ्रष्टाचार के दो से तीन दशक पुराने मामले इसीलिए लंबित हैं।
सच है राजनीति में कोई किसी का स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता। कांग्रेसे की परिस्थिति फिलहाल अलग है तो सपा और बसपा दोनो उससे आखें तरेर रहे हैं। लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती का मिजाज तो कांग्रस से कोई पुराना बदला लेने जैसा है। दरअसल माया कतई नहीं चाहती की देश में दलितों का कोई दुसरा नेता पैदा ले। इसीलिए मायावती बिहार में रामविलास पासवान को भी चुनौती देने पहुंच रही है। माया ने ठाना है कि बसपा बिहार में भी अपना उम्मीदवार खड़ा करेगी। ताकि पासवान को देश का दलित चेहरा होने का कोई गुमान न रहे। ऐसे में कोई मायावती को सीढी बनाकर दलित चेहरा बने उन्हें कैसे स्वीकार हो सकता है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलित चेहरा बनकर उभरे भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद एकाएक सुर्खियों में आए। पिछले साल यूपी सरकार ने चंद्रशेखर पर रासुका लगा कर जेल भेज दिया था। हाल ही में वो जमानत पर बाहर आए तो बिना पुलिस को सूचना दिए सहारणपुर में रैली करना चाहते थे। वे मोदी को बनारस से हराने की बात करते हुए कह चुके हैं कि यदि कांग्रेस ने उनके खिलाफ ठोस उम्मीदवार खड़ा नहीं किया तो बनारस से मोदी के खिलाफ लड़ जाएंगे। मायावती की तरह वे बहुजन समाज के हीत की बात करते हैं। जातिगत भाषण बाजी कर जहर उगलते हैं। मुसलमान और दलित समीकरण की तैयारी करते हैं। यह सब मायावती को खटकता है क्योंकि यही उनका वोट बैंक है। चंद्रशेखर जानते हैं उत्तर प्रदेश के दलितों में मायवती का कद बड़ा है इसीलिए उन्हें बुआजी कह कर पुकारते हैं। मायावती को यह नहीं सुहाता। क्योंकि राजनीतिक दांव की माहिर माया इसमें चंद्रशेखर की साजिश को भांप रही हैं। जो खुद को मायावती के विकल्प के रुप में दलित चेहरा बनना चाहते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी को गाली देकर सुर्खियों में आए सहारणपुर से कांग्रेस उम्मीदवार इमरान मसूद की सलाह पर प्रियंका घंटे भर के अंदर एक अहम फैसला लेती हैं। मेरठ के एक अस्पतान में इलाज करा रहे चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण से मिलने पहुंच जाती है। यह फैसला कांग्रेस के यूपी महासचिव प्रियंका आनन फानन में तब लेती है जब मायावती मीडिया को संदेश देती है कि वो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस से कोई गठबंधन नहीं होने देंगी। माया सख्त लहजे में कहती है देश में कही कांग्रेस से गठबंधन नहीं होगा। माया का यह फैसला कांग्रेस के लिए अपमानजनक था। इसीलिए पार्टी के रणनीतिकारों ने दलित कार्ड से माया पर सियासी दांव चलते हुए चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण से मिलने मिलाने के लिए प्रियंका और ज्योतिर्यादित्य को तैयार किया। प्रियंका ने चंद्रशेखर से मिलकर उसे भाई कहा। प्रियंका ने मीडिया से बात करते हुए कहा यह मुलाकात राजनीतिक नहीं बस इसलिए था क्योंकि इस लड़के में जोश बड़ा है।
प्रियंका कुछ भी कहे कांग्रेस की इस चाल को मायावती भांप गई। मायवती पहले ही चंद्रशेखर को खारिज करते हुए कह चुकी है कि वो किसी सड़क चलते की बुआ नहीं। चंद्रशेखर ने अपना तेवर दिखाने के लिए खुद को रावण कहलवान शुरु किया था। वो अपना कद बढा कर मायावती को संदेश देना चाहते थे। लेकिन माया ने कहा वो किसी चंद्रशेखर को नहीं जानती। फिर कांग्रेस अपना सहारा देकर किसी चंद्रशेखर के साथ दलित कार्ड खेलकर मायावती के वोट बैंक में सेंध लगाए वो कैसे वर्दास्त कर सकती है।
प्रियंका अभी चंद्रशेखर संग मेरठ अस्पताल में टीवी कैमरे से ओझल भी नहीं हुई थी कि मायावती ने अखिलेश को धमकाते हुए कहा..अमेठी और रायबरेली के लिए बेहतरीन उम्मीदवार ढूंढो। यह पहली बार होना था। संदेश पूरा साफ था। प्रिंयका रावण से मिलकर माया वोट बैंक में सेध लगा कर यूपी फतह की योजना बना रही थी। राजनीति की शातिर खिलाड़ी माया ने इसे भांपते हुए कांग्रेस की सोने की नगरी में ही आग लगाने की ठान ली। कांग्रेस जानती है रायबरेली और अमेठी गवाने की कीमत। मायावती समझती की कांग्रेस की नाभी कहां जहां अमृत है। वहां चोट लगने से कांग्रेस तबाह हो सकती है। इसलिए रावण से मिलकर अपनी ताकत बढाने का सपना देखने वाली कांग्रेस को अपनी सोने की लंका तबाह होने का भय सताने लगा।
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सटीक विश्लेषण
मायावती बहन जी देशहित की बात करती है