आदित्य जैन। हॉलीवुड की मैट्रिक्स मूवी देखी है? अभी 2021 में फोर्थ सीक्वल आने वाला है? INCEPTION देखी है? नहीं देखी? ब्रह्माण्ड के रहस्यों को, डार्क मैटर, ब्लैक होल आदि अवधारणाओं को दूसरे शब्दों से इंगित करने वाली महान पुस्तक ” योग वाशिष्ठ ” को कभी मौका मिले तो पढ़िएगा। ये मूवीज इस पुस्तक की सबसे कठिन बौद्धिक विवेचित सिद्धांतों पर ही आधारित है ।
मन करे तो लाइफ ऑफ़ पाई या शिप ऑफ थीसिस मूवी देख लीजिएगा। भारतीय ग्रंथों की कथा लेखन की विधि को अपनाकर ही ये मूवीज बनाई गई हैं। लेकिन हमें न तो इन मूवीज का नाम पता है और न ही भारतीय ग्रंथ योग वाशिष्ठ का! बड़ी गंभीर व्यंग्यात्मक त्रासदी है अपने सनातनी भाइयों और बहनों के साथ! खैर रहने दीजिए।
जीवन एक रहस्य है। जो व्यक्ति, घटना, वस्तु वर्तमान में हमें दुख देती है, आगे चलकर वही व्यक्ति, घटना, वस्तु हमारे लिए सुख भी उत्पन्न कर सकती है। जीवन एक ऐसी पहेली है, जिसके रहस्यों को वैज्ञानिक, दार्शनिक, समाजशास्त्री, राजनीतिशास्त्री, अर्थशास्त्री, संत, डाकू, विद्यार्थी, शिक्षक सब अपनी अपनी तरह से सुलझाने में लगे हैं।
हॉलीवुड की National Treasure मूवी देखी है आपने? उसमे कुछ mystery सुलझाई जाती है। कलाम ने जब इसे सुलझाया तो मिसाइल मैन बन गए। सिद्धार्थ बुद्ध बन गए। गरीब बालक स्वामी रामदेव बन गया। चाय वाला प्रधानमंत्री बन गए। एक मठ के महंत सबसे बड़े प्रदेश के मुखिया बन गए। मूर्ख व्यक्ति कालिदास बन गया। महाकामी राजा महायोगी भर्तृहरि बन गया।आपके जीवन की भी एक mystery है। इसे सुलझाइए। आपको भी कुछ होना है, कुछ बनना है। भविष्य और काल चक्र आपका इंतजार कर रहा है।
सनातन आर्य वैदिक हिन्दू धर्म की परंपरा, रीति – रिवाज, दर्शन, कर्मकाण्ड समझ में नहीं आते? कन्फ्यूजन बना रहता है? धर्म, रिलीजन, मजहब, पंथ, संप्रदाय आदि में अंतर नहीं पता है? आप जानना चाहते हैं कि भविष्य के 20 वर्षों में विश्व में क्या क्या बदलाव होने की संभावना है? भारतीय संस्कृति, मूल्य, दर्शन, साहित्य, कला , कौशल तथा योग व अध्यात्म की क्या भूमिका होने वाली है? अपने प्रश्नों का सटीक उत्तर भी चाहिए और उस उत्तर में गहराई भी चाहिए? आपको जानना है कि महान मस्तिष्क से कैसे चिंतन फूटता है? तर्कों का प्रयोग कैसे किया जाता है? उदाहरण कहां दिया जाता है? और सिद्धांत कहां बताए जाते हैं? तो आप प्रारम्भ कर सकते हैं.
यूरोपियों के स्वप्न में आकर अपने निबंधात्मक लेखों से उन्हें भयभीत करने वाले श्री अरविन्द की पुस्तकों से ! या फिर कुछ ना समझ आए तो फिर योग वशिष्ठ ही पढ़ लीजिए। क्या आपको पता है कि योग वसिष्ठ पढ़ने के बाद आप का परिचय भारत के पंद्रह दर्शनों से हो जाएगा। क्या कहा ! आपको पता ही नहीं है कि भारत में पंद्रह दर्शन हैं और चिंतन की पंद्रह विधियां हैं । चार्वाक, बौद्ध , जैन , न्याय , वैशेषिक , सांख्य , योग , मीमांसा , वेदांत , पूर्ण प्रज्ञ , नकुलीश पाशुपत , शैव , प्रत्यभिज्ञा , रसेश्वर , पाणिनि दर्शन जैसे पंद्रह दर्शनों का उल्लेख दार्शनिक माध्वाचार्य अपनी पुस्तक सर्व दर्शन संग्रह में करते हैं। परंतु अफसोस ! हमें इस विषय में ज्यादा कुछ पढ़ाया नहीं जाता है । घबराइए मत , अधिकांश लोगों को नहीं पता है क्योंकि हम पढ़ते नहीं है । आस – पास के मठ – मंदिरों में जाते नहीं हैं । प्रश्न करते नहीं हैं और न ही नया सीखने को लालायित रहते हैं । क्या आपको पता है कि भारत की केंद्रीय विशेषता क्या है ?
भारत संपूर्ण विश्व में जिस एक केंद्रीय विशेषता के लिए जाना जाता है , वह भारत का दर्शन है । भारत की सारी उपलब्धियां दर्शन के कोख से ही पैदा हुई हैं । भारतीय जीवनशैली की वैज्ञानिक सोच हो ; भारतीय संस्कृति की आध्यात्मिक प्रकृति हो ; वसुधैव कुटुंबकम , सर्वे भवंतु सुखिनः का उद्घोष हो ; ज्ञान – विज्ञान का प्रसार करने वाले भास्कराचार्य , पाणिनि , कणाद आदि विद्वान हो – यह सभी दर्शन की छत्रछाया में ही पोषित हुए हैं । उनके मन मस्तिष्क में बहने वाला प्राण तत्व दर्शन ही था ।
आधुनिक काल के महान वैज्ञानिक मिसाइल मैन अब्दुल कलाम जी ने अपनी 35 पुस्तकों में से अधिकांश में कहीं ना कहीं दर्शन और अध्यात्म की चर्चा की है । अपनी पुस्तक “गाइडिंग सोल्स” और “ट्रांससेनडेंस” में वह भारतीय दर्शन और अध्यात्म का जबरदस्त समर्थन करते हैं और राष्ट्र के स्वास्थ्य , समृद्धि तथा शक्तिमत्ता के लिए इसे अनिवार्य बताते है । इस दर्शन और अध्यात्म को समझना है तो योग वशिष्ठ ग्रंथ अवश्य पढ़ लीजिए और उसके बाद मैट्रिक्स मूवी देख लीजिए । बहुत कुछ समझने , जानने , सोचने को मिलेगा ।
क्या आपको कल्पना करना आता है ? क्या आपको तुलना करना आता है ? क्या आपको व्याख्या की विभिन्न शैलियां पता है ? क्या आप वैदिक ऋषियों की रचनाधर्मिता के बारे में जानकारी है ? आज मैं आश्चर्य से भर गया , जब मैंने भारत के मंदिरों में शाम को गूंजने वाले ” ललिता सहस्त्र नाम स्तोत्र ” का संस्कृत में पाठ किया और हिंदी में उसके अर्थ को समझा ।
आप किसी युवक , युवती , प्राकृतिक दृश्य , वस्तु आदि को देखकर उसके कितने पक्षों के बारे में नए – नए तरीके से सोच सकते हैं ? लिख सकते हैं ? उन्हे काव्यात्मक लेकिन तार्किक लहजे में व्यवस्थित रूप से पिरो सकते हैं ? कितने तरीकों से? भारत में कम से कम सहस्त्र अर्थात 1000 तरीकों से यह काम किया जाता है । लेकिन आपको पता तभी चल पाएगा , जब आप सहस्त्रनाम स्तोत्र को पढ़े और उसके शुद्ध अर्थ को समझें।
ललिता सहस्त्र नाम स्तोत्र की तरह ही विष्णु सहस्त्र नाम , जिन सहस्त्र नाम , सरस्वती सहस्त्र नाम , आदित्य सहस्त्र नाम स्तोत्र है । इनकी रचनाओं में , उसके अर्थों में लेखन शैली के रहस्य छिपे हुए हैं । या यूं कहूं तो प्रत्येक नाम में कूट – कूट कर कुछ बातें छुपा कर रख दी गई हैं । अगर आप के अंदर दम है , जीवटता है , खोजने की ललक है या कुछ नया जानने की अभिरुचि है तो भारतीय संस्कृत स्तोत्र परंपरा में आपके लिए बहुत ढेर सारा वैचारिक खाजाना पड़ा हुआ है । आप किसी विषय पर 1000 तरीकों से कैसे सोच सकते हैं , यह इन स्तोत्रों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सिखाया गया है। आप भी पढ़े , सोचे और जानें।
स्तोत्र , अष्टक , आरती , मंत्र , सूक्त , वंदना आदि रचनाओं की वाक्य विन्यास शैली , शब्द चयन , छंद तथा व्याकरण आदि में सूक्ष्म तथा स्थूल अंतर होता है । यदि आप इनके अंतर को समझ गए तो बहुत कुछ समझ जाएंगे । अयोध्या में श्री राम मंदिर के भूमि नींव पूजन में जब शुभ मुहूर्त के आने में कुछ समय शेष था , प्रधानमंत्री जी भी बैठे हुए थे ; पूर्व के मंत्र कहे जा चुके थे । आगे का मंत्र शुभ मुहूर्त पर बोलना था और नींव पूजन करना था । उस समय मुख्य पंडित जी ने जिस सूक्त को गाना प्रारम्भ किया , उससे तो मेरा घर प्रतिदिन गूंजता है । मुझे भी याद ही है । ऋग्वेद का वह सूक्त कम से कम 10 हज़ार वर्षों से भारत में गाया जा रहा है । क्या आप उस सूक्त के बारे में जानते हैं ?
किसी युवती के यौवन के सौंदर्य पर कई कवियों ने अपनी कविताएं लिखी हैं । किसी युवक के पौरुष पर भी छंद रचे गए हैं । साहस गाथाओं को पद्य रूप में प्रस्तुत किया गया है । लेकिन मैं आपसे कहूं कि भारत के एक दार्शनिक ने युवती के यौवन के सौंदर्य पर , बौद्धिक सौंदर्य पर , बल के सौंदर्य पर ऐसी रचना की है , जिसके सामने हिंदी साहित्य के विभिन्न युगों के कवि भी फींके – फींके से लगने लगेंगे , जैसे ढेर सारी मिठाई के खाने के बाद चीनी वाली चाय भी फींकी लगती है तो क्या आप विश्वास करेंगे ? मैं भर्तृहरि के श्रृंगार शतक की बात नहीं कर रहा हूं और ना ही कामसूत्र की । इन दोनों को लिखने वाले भी दार्शनिक ही हैं । खैर खोजकर मुझे बताइएगा कि वह दार्शनिक कौन हैं ? और उसकी रचना का क्या नाम है ?
चाहे मूवीज हो , भारतीय ग्रंथ हो , स्तोत्र हो ; इनमें बहुत सारा ज्ञान , दृष्टिकोण और मौलिक चिंतन के उत्प्रेरक तत्त्व छुपे हुए हैं , अब यह मनुष्य की जिज्ञासा की तीव्रता पर निर्भर करता है कि वह इन सबसे कितना सीख पाता है । जिज्ञासा की तीव्रता कैसे आएगी ? वह आएगी – प्रश्न करने से । प्रश्न , प्रश्न और प्रश्न !! प्रश्नों के उत्तर खोजने का प्रयास ! या तो आप पहले ही स्वयं से प्रश्न पूछ लें या तो जिंदगी आपसे प्रश्न पूछेगी ।
प्रश्न पूछें कि अब तक के जीवन में मैंने क्या कोई सार्थक कार्य किया ? यदि कल मेरी मृत्यु हो जाए तो क्या मैं तृप्त होकर जा सकूंगा ? क्या मैं अपना जीवन ऐसे जी रहा हूं कि मुझे स्वयं पर गर्व हो सके ? क्या आज के दिन मैंने कोई अच्छा कार्य किया ? आज के दिन मैंने ऐसा कौन सा कार्य किया , जो मुझे नहीं करना चाहिए था ? क्या मैं अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपनी संपूर्ण क्षमता को लगा रहा हूं ? मैं क्या – क्या ग़लती कर रहा हूं ??
हे ! सनातन के भाइयों – बहनों , हमारी संपूर्ण सभ्यता और संस्कृति का विकास ही प्रश्न और प्रश्न की परिधि में बने संवाद के कारण हुआ है । इसलिए आप सभी प्रश्न करें । प्रश्न किससे करना है ? इसका निर्णय आप खुद ही करें ।
।।जयतु जय जय भारतीय कला सौंदर्य बोध परंपरा ।।
(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के गोल्ड मेडलिस्ट छात्र हैं । कई राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में अपने शोध पत्रों का वाचन भी कर चुके हैं। विश्व विख्यात संस्था आर्ट ऑफ लिविंग के युवा आचार्य हैं। भारत सरकार द्वारा इन्हे योग शिक्षक के रूप में भी मान्यता मिली है। भारतीय दर्शन , इतिहास , संस्कृति , साहित्य , कविता , कहानियों तथा विभिन्न पुस्तकों को पढ़ने में इनकी विशेष रुचि है और यूट्यूब में पुस्तकों की समीक्षा भी करते हैं ।)
लेखक आदित्य जैन
सीनियर रिसर्च फेलो
यूजीसी प्रयागराज
adianu1627@gmail.com