
‘आशुतोष महाराज के अनुयायियों को उनके धार्मिक स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता!’
आशुतोष महाराज के मामले में अदालत ने सोमवार 16 जनवरी को तीक्ष्ण टिप्पणी करते हुए आशुतोष महाराज के पुत्र होने का दावा करने वाले दलीप झा को उनके कथित संबंधों के मामले में फटकार लगते हुए कहा कि वह आशुतोष महाराज से अपने संबंधों से सम्बंधित साक्ष्य नहीं जुटा पाए हैं। दलीप झा द्वारा दाखिल अपील को ख़ारिज करते हुए एकल पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि दिलीप झा ने आशुतोष महाराज के साथ अपने रिश्ते से सम्बंधित जो कागजात प्रस्तुत किये थे वह जाली हैं। उसके इस कृत्य को अदालत ने ‘Crude piece of forgery’ की श्रेणी में रखा।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी, जो दिव्य ज्योति संस्थान की ओर से इस मामले की पैरवी कर रहे हैं, ने आशुतोष महाराज के अंतिम संस्कार किये जाने के लिए दिए गए एकल पीठ के फैसले को चुनोती देते हुए Maintainability के कानून को कोर्ट के अन्दर पढ़ा और कहा कि, इस कानून के अनुसार यदि ‘निजी विवाद’ में याचिका कर्ता कोर्ट में Locus Standi (कोर्ट में सुने जाने का अधिकार) सिद्ध न कर पाए तो कानूनी तौर पर कोई भी ‘निजी विवाद’ कोर्ट में नहीं सुना जाता।
आशुतोष महराज के केस में तथाकथित बेटे और ड्राइवर ने जो याचिका डाली थी वे ‘निजी विवाद’ श्रेणी की थी और कोर्ट की एकल बेंच ने दोनों का ही Locus Standi ख़ारिज कर दिया। इसलिये नियम अनुसार याचिकाकर्ताओं के Locus Standi ख़ारिज हो जाने पर हाई कोर्ट के एकल बेंच को आशुतोष महाराज का केस आगे नहीं बढ़ाना चाहिए था। कानूनन इस केस को सुने जाने का कोई आधार नहीं है।
इसी तथ्य की आगे पुष्टि करते हुए राकेश द्विवेदी ने कहा आशुतोष महाराज का केस एकल बेंच मात्र उसे जनहित याचिका बना कर ही सुन सकती थी तथा किसी भी प्रकरण को Suo Moto (स्वप्रेरणा से ) जनहित याचिका बनाने के लिए जो प्रक्रिया स्थापित की गयी है वह एकल बेंच ने नहीं अपनाई। नियम अनुसार तो एकल बेंच को प्रक्रिया अपना कर इस केस को जनहित याचिका सुनने वाली बेंच को भेजना चाहिए था जो नहीं किया गया।
एकल बेंच एक रिट अदालत है और जनहित याचिका सुनना उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं है। राकेश द्विवेदी ने खंड पीठ को यह भी बताया की पंजाब हरयाणा हाई मुख्य न्यायाधीश ने पहले ही आशुतोष महाराज से सम्बंधित एक अन्य जनहित याचिका पर विचार करते हुए निर्णय दिया हुआ था कि आशुतोष महाराज के मामले में आगे किसी भी जनहित याचिका के रूप में विचार नहीं किया जा सकता क्योंकि यह विशुद्ध निजी मामला है जिसमें कोई भी सार्वजनिक हित शामिल नहीं है। उच्च बेंच के इस निर्णय के बाद भी बिना स्थापित प्रक्रिया अपनाए जो एकल बेंच ने इस मामले को जनहित याचिका बना कर सुना वह कानूनन वैध्य नहीं है। यह एक प्रकार से एकल पीठ द्वारा रोस्टर की अवमानना है। नियम पालन के लिय बनाये जाते है तो उनका पालन अदालतों से ही शुरू होना चाहिये।
ज्ञात हो कि आशुतोष महाराज के समाधी लीन होने के बाद उनके ड्राइवर होने का दावा करने वाले व्यक्ति और पुत्र होने का दावा करने वाले दिलीप झा के दावे को कोर्ट पहले ही ख़ारिज कर चुकी है।
राकेश द्विवेदी ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का हवाला देते हुए कहा कि यदि आशुतोष महराज के अनुयायियों का विश्वास है कि उनके गुरु समाधि में है और वे किसी भी कानून और व्यवस्था का उल्लंघन किये बिना उनके शरीर की रक्षा करना चाहते हैं तो कोई भी संवैधानिक या वैधानिक कानून नहीं है, जो उनके दाह संस्कार या दाह संस्कार की किसी भी प्रक्रिया का आदेश दे सकता हो।
राकेश द्विवेदी ने एकल पीठ द्वारा दिए गए तीन निर्णयों (परमानंद कटारा, इलाहाबाद और मद्रास उच्च न्यायालय) सवाल उठाते हुए कहा कि एकल पीठ द्वारा दिए गए निर्णय आशुतोष महाराज के मामले की निर्णायक नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि न्यायालय, अनुच्छेद 21 ( प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का सरंक्षण) के आधार पर अंतिम संस्कार के आदेश नहीं दिये जा सकते है।
हाई कोर्ट ने कहा कि यदि आशुतोष महाराज को समाधी में मान कर उनके शरीर को सुरक्षित रखने दिया जाता है तो हमे ऐसी सम्भावना लगती है कि कल को अन्य लोग भी अपने परिजनों के शरीर को यह कह कर सुरक्षित रखने की प्रक्रिया आरम्भ कर देंगे। द्विवेदी ने तब कानून प्रक्रिया बताते हुए यह तर्क दिया कि अदालतों में फैसले मान्यताओं, संभावनाओं और अटकलों के आधार पर नहीं होते, बल्कि कानूनी आधार और तथ्यों पर आधारित होते हैं । आशुतोष महाराज के मामले में सभी कानूनों और तथ्यों को दरकिनार कर के मात्र अनिश्चित संभावनाओं और अटकलों के आधार पर आशुतोष महाराज के अनुयायियों और शिष्यों को उनके धार्मिक स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है।
गौरतलब है कि आशुतोष महाराज दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक हैं, जिनके अनुयायी और सन्यासी शिष्य लाखो की संख्या में देश -विदेश में है। आशुतोष महाराज ने अपने शिष्यों द्वारा मानव कल्याण, पंजाब में आतंकवाद को समाप्त करने तथा प्रेम और एकता का सन्देश देने अद्वित्य कार्य किया है जो आज भी व्यवस्थित तौर पर चल रहा है।
शिष्यों के अनुसार, 2014 में पंजाब स्थित अपने आश्रम नूर महल में स्वेच्छा से समाधी में लीन हो गए। इन्होंने अपने अनुयायिओं के ध्यान एवं अनुभवों में आकर कहा था कि मेरे शरीर की रक्षा करना में पुनः अपनी देह में लौट कर आऊंगा। वे समाधी में जाने से पहले भी अपने कुछ अनुयायिओं और सन्यासी शिष्यों को समाधी में जाने की बात बता चुके है। आशुतोष महाराज के लाखों अनुयायी आज तक उनकी देह को सुरक्षित कर इस आशा और विश्वास के साथ संभाल और सुरक्षित रखे हुए हैं कि वह एक दिन वह जरूर वापस आएंगे!
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