‘तीसरी बार ‘बागी’ हुए टाइगर श्रॉफ, फिल्म को मिला जबरदस्त रिस्पांस।’ टाइगर श्रॉफ की बागी: 3 प्रदर्शित होने के कुछ घंटे बाद मेरी निगाहें एक चैनल की इस हेडलाइन पर अटक गई। फिर मैं सोचने लगा कि जिस थियेटर में मैंने फिल्म देखी, वहां का दर्शक बागी तो नहीं हुआ जा रहा था बल्कि मोबाइल पर तफरी करता सोच रहा था कि आखिरकार ये फिल्म कब ख़त्म होगी। 70 करोड़ की भारी लागत से बनी अहमद खान की ये फिल्म भरपूर एक्शन होने के बावजूद दर्शकों पर ग्रिप बनाने में नाकाम होती दिखाई दे रही है। हमेशा की तरह एक कमज़ोर फिल्म को प्रमोशनल ख़बरों से जीवित बनाए रखने का खेल अधिक नहीं चल सकेगा क्योंकि फ़िल्में प्रमोशन से नहीं बल्कि कंटेंट से चलती हैं।
भारत में किसी फिल्म का सीक्वल बनाकर उसे सफल कराना एक दुष्कर कार्य है। सीक्वल में हिन्दी फिल्मों के निर्देशक वह विविधता नहीं ला पाते, जो हॉलीवुड के निर्देशक ले आते हैं। राजामौली और राकेश रोशन ही ऐसे फ़िल्मकार हैं जो सीक्वल हिट कराने में सफल रहे हैं। बागी: 3 की कहानी पहली फिल्म की कहानी से कनेक्टेड नहीं है। इसका कोई सिरा पिछली फिल्म से नहीं मिलता। ये दो भाइयों रॉनी और विक्रम की कहानी है। बड़ा भाई विक्रम सीधा है और रॉनी तेज़तर्रार है। विक्रम को उसके पिता की जगह पुलिस में नौकरी मिल जाती है। विक्रम एक ऐसे गैंग से टकरा जाता है, जो सीरिया में एक आतंकवादी गुट को सुसाइड मिशन के लिए भारत से आदमी उपलब्ध करवा रहा है। विक्रम गैंग का पता लगाने सीरिया जाता है और किडनैप हो जाता है। रॉनी अपने भाई को बचाने के लिए सीरिया जा पहुँचता है।
अहमद खान की बागी:2 बॉक्स ऑफिस पर बेहद सफल रही थी। एक दक्षिण भारतीय फिल्म का बेहतरीन हिन्दी रीमेक दर्शकों को बहुत पसंद आया था। बागी: 3 के साथ ऐसा नहीं है। इसकी कहानी में भयंकर गलतियां की गई हैं। ये बात कैसे गले उतरेगी कि सीरिया का आतंकी अपने आत्मघाती हमलों के लिए भारतीय लोगों को किडनैप करवाता है। विक्रम एक भोला इंसान है, जिसे पुलिस इंस्पेक्टर बना दिया गया। उनका किरदार पुलिस की वर्दी पहने ज़रा भी नहीं जंचता। टाइगर श्रॉफ और श्रद्धा कपूर के बीच एक स्वाभाविक केमेस्ट्री है लेकिन वह यहाँ नदारद है। उनकी केमेस्ट्री और लव एंगल को उभारने के बजाय दोनों भाइयों का इमोशन फिल्म में ज़्यादा हावी रहता है। इस लव एंगल को प्रदूषित कर निर्देशक ने युवा दर्शकों पर अत्याचार कर दिया है।
टाइगर श्रॉफ के एक्शन सीन कमाल के होते यदि उनमे थोड़ी भी विविधता होती लेकिन यहाँ फिर निर्देशक एक बड़ी गलती कर गए हैं। शुरू से आखिर तक एक ही पैटर्न के एक्शन बोर करने लगते हैं। ऐसी फिल्मों के निर्देशक जानते हैं कि यदि फिल्म एक्शन से भरपूर हो तो सभी सीक्वेंस में पैटर्न भिन्न होना चाहिए। फिल्म में सीरिया वाला प्लाट डालने की आवश्यकता ही नहीं थी। सीरिया की लोकेशन आते ही हमें बजरंगी भाईजान, टाइगर ज़िंदा है और बेबी फिल्म की याद आने लगती है। काश कि अहमद खान एकरसता से बच पाते। श्रद्धा कपूर जैसी होनहार कलाकार को वेस्ट कर दिया गया है। उनको कॉमिक कैरेक्टर देने से फिल्म का बैलेंस ख़त्म हो जाता है।
टाइगर श्रॉफ उभरते हुए सितारे हैं और ये फिल्म उनको कैसे भी लाभ नहीं पहुंचा सकेगी। हड्डियां दुखा देने वाले एक्शन और शानदार अभिनय करने के बावजूद टाइगर फिल्म को न बचा सके तो ये उनकी गलती नहीं है। ज़हाज़ का कप्तान ही दिग्भ्र्मित हो तो टाइगर जैसा सिपाही ज़हाज़ कैसे बचा सकेगा। सिचुएशन एक बहुत बड़ी चीज है। निर्देशक अहमद खान तो ख्यात कोरियोग्राफर रह चुके हैं तो सिचेशन की अहमियत नहीं समझ सके। इस फिल्म में ये ज़रूरी चीज गायब है। उनके एक्शन सीक्वेंस हो या गीत, बिना सिचुएशन के डाल दिए गए हैं। सत्तर करोड़ की भव्य लागत से बनी बागी : 3 के लिए बॉक्स ऑफिस का सफर मुश्किलों से भरा रहेगा। अव्वल तो फिल्म की लागत वसूल करना मुख्य चुनौती है। इसके बाद लाभ की स्थिति में आना और भी ज़्यादा मुश्किल होगा। इस सप्ताह टाइगर श्रॉफ की बागी : 3 का सफल हो पाना मुश्किल लग रहा है।