रमाशंकर कटारे।डीप फेक विडिओ अचानक आजकल बहुत चर्चा में हैं। इसकी चर्चा शुरू हुई मोदीजी के किसी गरबा के वीडियो को लेकर। फेक/डीप फेक वीडियो का उपयोग/दुरुपयोग भाजपा बहुत ज्यादा करती आई है, चाहे राहुल का आलू से सोना बनाने वाला, या गहलोत का बांध के पानी से बिजली बनाने पर पानी की शक्ति खत्म होने का हो।
मध्यप्रदेश में 2018 में और अभी के चुनाव में भी कमलनाथ के ऐसे वीडियो सामने आए हैं। भाजपा नेता और मोदीजी अभी तक अपनी हिंदूवादी छवि के कारण बचे थे, पर पिछले दो-ढाई वर्ष में उनकी इस छवि पर धब्बा लगने लगा है और उनके वे कार्टून, मेमे, वीडियो जो अभी तक सीमित (मुस्लिम/वामपन्थी) प्रसारण में थे, अब बाहर मोदी समर्थकों तक आने लगे हैं। न सिर्फ बाहर आने लगे हैं बल्कि किसी समय मोदी के समर्थक रहे लोग उनकी तृप्तिकरण नीतियों से रूष्ट होकर इनका प्रसारण करने लगे हैं।
राज्यों के चुनाव तो जैसे तैसे निपट गए लेकिन लोकसभा चुनावों में इस पद्धति का मोदीजी को नुकसान उठाना पड़ सकता है, यह आशंका उन्हें भी है। इसलिए उन्होंने ही अपना डीपफेक वीडियो बनवाकर इस मुद्दे को न केवल गर्म किया है, बल्कि सरकार इन पर कार्यवाई करने के नियम भी बना रही है।
अभी व्हाट्सएप ने दो बार पूरे पृष्ठ के विज्ञापन इसी पर दिये हैं। डीप फेक का वातावरण बना कर लोकसभा चुनावों के समय मोदी सरकार विपक्षियों को उनके विरुद्ध किसी तरह के कार्टूनों, मेमे आदि के प्रसारण पर रोक भी लगाएगी और कानूनी कार्यवाई भी करेगी, जैसे अभी मोदी द्वारा मूर्खो का सरदार कहने, या शाह द्वारा सांढ़ जैसे दौड़ते हैं जैसे वक्तव्य पर तो कोई कार्यवाई नहीं हुई पर मोदी को पनौती कहने से ही राहुल पर चुनाव आयोग ने केस दर्ज कर लिया।
लोकसभा चुनावों के समय बड़े दल तो किसी प्रकार भाजपा की इन शिकायतों से निपट लेंगे, जिनकी राज्यों में सरकारें हैं वे भाजपाइयों पर वहां कार्यवाई कर हिसाब बराबर करेंगे। पर इसका दुरुपयोग सबसे ज्यादा एकम के विरुद्ध होगा। अतः समस्त एकम सनातन भारत के सदस्य इस तरह के मेमे, वीडियो, आदि को प्रसारित करने या इनके आधार पर टिप्पणी करने में अत्यंत सावधानी रखें।