सारा कुमारी। ( ब्लैकमेल )अब तो लगभग सभी बीजेपी और RSS के बडे़ बडे़ नेता और पदाधिकारियों के इस्लाम के फेवर में बयान या फिर दरगाह पर जा कर चादर चढ़ाते हुए, तस्वीरे और विडियोज वायरल हो रहें है।
बीजेपी के बड़े नेताओं से तो अब मोहपाश बिल्कुल ही टूट चुका है, की वो अब हिंदू हित के लिए कुछ करेंगे। परन्तु कल गौतम गंभीर को निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर चादर चढ़ाते हुए देख कर मन पर एक आघात सा लगा। ज़ी नहीं ना ही मैं क्रिकेट फॉलो करती हूं ना ही गंभीर की फैन हूं, परन्तु कहीं ना कहीं शुरु से उसको देखा है, उसके वक्तित्व में ईमानदारी, और एक ओज था, बहुत ही शांत अपने नाम की तरह ही गंभीर, क्रिकेट में भी क्रेडिट लेने की भूख नहीं दिखी, हां अपना खेल मन लगा कर खेला, अपने कर्तव्य का बखूबी निर्वहन किया।
कल की पूरी वीडियो में एक बार भी उनके चेहरे पर मुस्कान नहीं थीं, और यहीं बात पूरे हिंदू समाज की मुस्कान उड़ाने के लिए काफ़ी है। क्या वजह है जब हर आम मुस्लिम इस्लाम की सच्चाई जान कर उससे दूर हट रहा हैं। ईरान में हिजाब के खिलाफ इतने protest हों रहे है, लोग इस्लाम से पीछा छुड़ाने के लिए अपनी जान तक दे रहे है।
यूएई ने इस्लाम से ज्यादा तरजीह बड़ी आसानी से इकोनॉमी को देते हुए, live in couple allow कर दिए, सऊदी अरब में भी तरह तरह की ढील दी जा रही, हदीस को भी इंकार कर दिया। और अभी रोनाल्डो के साथ फुटबॉल का करार sign करने के बाद, उसको अपनी live in partner के साथ रहने की अनुमति भी से दी। जब वहां कुछ कट्टर इस्लामियों ने इसका विरोध किया, तो उसकी सुरक्षा और कड़ी कर दी।
फिर क्या हमारे बडे़ बडे़ नेता, आस पास हो रहे इन डेवलपमेंट से बिल्कुल अंजान है ? नहीं information warfare के जमाने में ये सम्भव ही नहीं?? क्या वो असली इस्लाम क्या है? और किस तरह फैला उनको नही पता?? या क्या उनको इस्लाम का ज्ञान , सनातन से ऊपर लगता हैं?? आख़िर क्या वजह हैं, जो स्वयं सनातन में जन्म लिए हुए, इतनी प्राचीन , उच्च परंपरा, संस्कृती, और साहित्य को छोड़ कर सभी बड़े हिंदू नेता, इस्लाम की ओर आकर्षित हो रहें हैं,उस इस्लाम से , जिससे खुद मुस्लिमो का मोहभंग हो रहा हैं।
आज भारत की 80 करोड़ हिंदू आबादी को इन सवालों के तह तक जाना बहुत जरूरी है, नही तो आगे अंधेरी सुरंग हैं, फिर तो, atleast लोकतन्त्र के माध्यम से भारतीय मूल संस्कृति का पुनरुद्धार संभव नहीं है।फिर तो किसी भी चुनाव का कोई महत्व नहीं रह जाता हैं। कौन सी मजबूरी इन नेताओं को विवश कर रहीं है, किसी तरह से इन्हे ब्लैकमेल तो नही किया जा रहा हैं।
ऐसे तो हिंदू एक भ्रम में चुनावो में भाग लेते रहेंगे, नेता चुनते रहेंगे, और नतीजा वही धाक के पात, हिंदू या तो मरते रहेंगे, या देश छोड़ कर भागते रहेंगे। और ये ब्लैकमेलिंग की टेक्निक इन जेहादियों के लिए कोई नई नहीं है, वो पहले भी ऐसा करते रहे हैं, नेपाल में MQM के नेताओं ने जब चुनाव लड़ कर, कराची की जनता की ईमानदारी से सेवा करनी चाही तो उनके साथ भी इसी तरह का व्यवहार किया गया था। और भी ऐसे कई उदाहरण हैं। इसकी तह तक जाना, और समस्या का उपचार अब बहुत जरुरी है।
अब हिंदुओं को गंभीरता से सोचना होगा, क्योंकी लोकसभा के चुनाव एक साल में होने वाले हैं, इसमें इतना खर्चा करना, इसमें भागीदारी करने का क्या औचित्य रह जाता हैं, जब अंत में देश के संसाधनों पर पहला हक उन्ही का रहेगा। और हिंदू फिर खाली हाथ ही रह जायेगा।
ऐसा ही भ्रम जाल 1947 में बुना गया था, जब ये कहां गया, की मुस्लिम हिंदुओं के साथ नहीं रह सकते, तो उन्हें तो दो देश मिल गए, परन्तु हिंदुओं को कत्लेआम, रिफ्यूजी स्टेटस और एक ऐसा देश मिला , जहां आज भी हिंदू 3rd ग्रेड citizen बन कर रह रहे है।
अब चुनाव का इंतजार करने का, उसमे जीत हासिल करने का, अपने कैंडिडेट चुनने का, ये सब नौटंकी का कोई फायदा नही है। यदि अपने हक़, जी हां वाजिब हक की मांग उठानी हैं, तो अभी ही उठाए, यदि अभी नहीं मिल रहा, तो आगे की भी कोई गारंटी नहीं है, भले ही पीएम की कुर्सी पर कोई भी बैठा हों।
जय हिन्द जय भारत।