श्वेता पुरोहित। राजर्षि नाभिके उदार कर्मोंका आचरण दूसरा कौन पुरुष कर सकता है-जिनके शुद्ध कर्मोंसे सन्तुष्ट होकर साक्षात् श्रीहरि उनके पुत्र हो गये थे। महाराज नाभिके समान ब्राह्मणभक्त भी कौन हो सकता है – जिनकी दक्षिणादिसे सन्तुष्ट हुए ब्राह्मणोंने अपने मन्त्रबलसे उन्हें यज्ञशालामें साक्षात् श्रीविष्णुभगवान् के दर्शन करा दिये।
श्रीविष्णुभगवान् ही स्वयं राजर्षि नाभि के पुत्र हुए और उनका नाम ऋषभ रखा गया जिसका अर्थ है श्रेष्ठ.
भगवान् ऋषभदेव ने अपने देश अजनाभखण्ड को कर्मभूमि मानकर लोकसंग्रह के लिये कुछ काल गुरुकुल में वास किया। गुरुदेवको यथोचित दक्षिण देकर गृहस्थ में प्रवेश करनेके लिये उनकी आज्ञा ली। फिर लोगों को गृहस्थ धर्म की शिक्षा देनेके लिये देवराज इन्द्रकी दी हुई उनकी कन्या जयन्ती से विवाह किया तथा श्रौतस्मार्त्त दोनों प्रकार के शास्त्रोपदिष्ट कर्मों का आचरण करते हुए उसके गर्भ से अपने ही समान गुणवाले सौ पुत्र उत्पन्न किये।
येषां खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठः श्रेष्ठगुण आसीद्येनेदं वर्षं भारतमिति व्यपदिशन्ति ॥
उनमें महायोगी भरतजी सबसे बड़े और सबसे अधिक गुणवान् थे। उन्हीं के नाम से लोग इस अजनाभखण्डको ‘भारतवर्ष’ कहने लगे।
श्रीमद्भा० ५ | ४ |
मेदिनीपति – पृथ्वी के स्वामी श्रीमन नारायण की जय