विपुल रेगे। ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अश्लीलता और गाली-गलौज रोकने में नाकाम रही मोदी सरकार को आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। नौ वर्ष से मोदी सरकार मनोरंजन के क्षेत्र में सुधार की बात करती रही लेकिन सुधार नहीं हुआ। फिल्मों, ओटीटी और समाचार चैनलों के लिए एक अदद कड़े कानून की प्रतीक्षा जनता आज भी कर रही है। फेक न्यूज़ पर लगाम कसने के लिए इस सरकार को दो बार का बहुमत भी कम पड़ गया है। ऐसे माहौल में सूचना व प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने फिर डिजिटल मनोरंजन पर लगाम कसने की बात कही है। हालाँकि इस ‘भेड़िया धसान’ से अब पब्लिक इम्प्रेस नहीं होती।
फिल्मों और मीडिया पर परोसी जा रही सामग्री को नियंत्रित करने के लिए मांग आज से नहीं उठाई जा रही है। ये मांग उस दिन से उठाई जा रही है, जब माननीय नरेंद्र मोदी जी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। सूचना व प्रसारण मंत्रालय भारत जैसे देश के लिए एक अति महत्वपूर्ण मंत्रालय है, क्योंकि यहाँ फिल्म उद्योग के माध्यम से बड़ी गंदगी फैलाई जाती है और पिछले कई वर्षों से ये विभाग गंदगी पर नियंत्रण नहीं पा सका है। मोदी सरकार ने पिछली सरकारों की तरह इस विभाग को गंभीरता से नहीं लिया।
26 मई 2014 को प्रकाश जावड़ेकर ने सूचना व प्रसारण मंत्री के रुप में शपथ ली। 9 नवंबर 2014 तक वे इस पद पर रहे । उन्होंने इस्तीफा दिया तो उनकी जगह एक वर्ष के लिए अरुण जेटली को बैठाया गया, जो कि इस पद के लिए नितांत अयोग्य थे। इसके बाद इस पद पर सुषमा स्वराज, स्मृति ईरानी, वेंकटेश नायडू, राज्यवर्धन सिंह राठौड़ कुछ-कुछ समय के लिए सूचना व प्रसारण मंत्री का दायित्व निभाते रहे। इतने मंत्री बदले गए लेकिन समस्या हल नहीं हो सकी। एक अदद कानून लाने के अलावा ये सरकार सारे काम कर रही थी।
सन 2019 में प्रकाश जावड़ेकर को एक बार फिर से सूचना व प्रसारण मंत्री बनाया गया। उस समय फिल्मों और ओटीटी के लिए एक कड़े कानून की मांग जनता द्वारा की जा रही थी। जनता को भरोसा था कि देश में एक हिंदूवादी सरकार है, जो हिन्दू संस्कृति पर हो रहे इस सांस्कृतिक आघात को रोक सकती है। सरकार पर पड़ते दबाव के बाद कानून न लाकर ‘गाइडलाइंस’ लाने की घोषणा जावड़ेकर द्वारा की गई। ये ‘दिशा-निर्देश’ विदेश से आयातित किये गए थे और कतई शक्तिशाली नहीं थे। इन दिशा निर्देशों में इतना दम नहीं था कि फिल्मों और ओटीटी के विष को रोक पाते।
इसी बीच देश के तत्कालीन राष्ट्रपति ने एक अच्छा ताकतवर कानून बनाने के लिए मंत्री जी को आवश्यक ‘शक्तियां’ सौंपी थी। उन शक्तियों का प्रयोग कर कानून नहीं बनाया गया। सरकार द्वारा बनाए गए दिशा-निर्देश ओटीटी को स्वयं खुद पर लागू करने थे। ‘सेल्फ रेगुलेशन’ का ये खेल ओटीटी की गंदगी पर एक प्रतिशत नियंत्रण नहीं कर सका। जनता का विरोध और गुस्सा जावड़ेकर पर फूट पड़ा। बेचारे जावड़ेकर तो ‘केंद्र’ के निर्देश पर ही काम कर रहे थे। सन 2021 में एकता कपूर को पद्मश्री जैसा प्रतिष्ठित पुरस्कार दिया गया। जिनके प्रोडक्शन की फिल्मों ने समाज में सबसे अधिक अश्लीलता और गंदगी फैलाई, उन्हें भारत सरकार ने प्रतिष्ठा प्रदान की। बहुत विरोध बढ़ने के बाद जावड़ेकर को एक बार फिर जाना पड़ा। अब उनकी जगह अनुराग ठाकुर ने ली।
अनुराग ठाकुर भी इस पद के लिए आवश्यक योग्यताओं का निर्वाह नहीं करते थे। 2021 से अब तक ठाकुर सूचना व प्रसारण मंत्री की भूमिका में हैं। उनके इस पद पर रहते हुए समाज पर सांस्कृतिक आक्रमण जारी रहे। उनके कार्यकाल में बहुत सी विवादित फ़िल्में रिलीज हुई। ब्रम्हास्त्र, सम्राट पृथ्वीराज, आदिपुरुष जैसी फिल्मों पर विवाद बढ़े लेकिन अनुराग ठाकुर की ओर से कोई सक्रियता देखने को नहीं मिली। हाल ही में ‘ओएमजी 2’ को लेकर इतना बवाल हो रहा है लेकिन सरकार खामोश है।
मंगलवार को श्री अनुराग ठाकुर ने ओटीटी के प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक की। बैठक में मंत्री जी ने ‘ज़ोर’ दिया कि अपने मंचों को दुष्प्रचार और वैचारिक पूर्वाग्रह के इस्तेमाल के लिए ना होने दें। मंत्री जी ने इस मामले में ओटीटी प्लेयर्स से ही सुझाव मांग लिए हैं। एक ‘कानून’ न बनाना पड़े इसके लिए मोदी सरकार ने दो कार्यकाल में सात बार मंत्री बदल दिए और आज भी सरकार कानून न बनाने के सारे रास्ते तलाश रही है। अनुराग ठाकुर जी के इस नए ‘भेड़िया धसान’ पर अब किसी को भरोसा नहीं है। पिछले नौ साल में ये इतनी बार हो चुका है कि जनता ने अब इस विभाग को गंभीरता से लेना बंद कर दिया है।