मंदिरों की सरकारी लूट (Temple Loot) बंद हो, तथा केन्द्रीय स्तर पर SGPC शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी) जैसी (लेकिन गैर-राजनैतिक) संस्था बने जो देश के सभी प्रमुख मंदिरों के प्रबंधन एवं व्यवस्थापन की जिम्मेदारी संभाले इस उद्देश्य से पिछले कई वर्षों से विभिन्न संगठन मिलकर सरकारों के समक्ष अपना प्रतिवेदन देते आए हैं.
आए दिन देखने में आता है कि आस्था के केन्द्रों पर सरकारी ट्रस्टियों (Mandir Trusts in India) की मनमानी और आर्थिक अनियमितताएँ सिर उठाती रहती हैं. मंदिरों की सरकारी लूट किस प्रकार चल रही है और सरकारी अधिकारियों, नेताओं के अदूरदर्शी रवैये तथा भ्रष्टाचार के कारण मंदिरों की कैसी दुर्दशा हो रही है, इस बारे में इसी वैबसाइट पर इससे पहले चार भागों में श्रृंखला प्रकाशित की जा चुकी है, इन्हें पढने के लिए लिंक इस प्रकार है (मंदिरों को शासकीय नियंत्रण से मुक्त किया जाए…. भाग-१, भाग-२, भाग-३, भाग-४.. इन चारों लिंक्स पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं).
मुम्बई स्थित प्रभादेवी का श्री सिद्धिविनायक मंदिर (Siddhivinayak Temple, Mumbai) समस्त गणेश भक्तों की आस्था का केंद्र है. केवल महाराष्ट्र से ही नहीं, अपितु देश-विदेश से गणेशभक्त इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। वर्ष 2016 में श्री सिद्धिविनायक मंदिर न्यास के किए गए परीक्षण से कुछ चौंकानेवाली बातें सामने आयी हैं। इसमें 1 जनवरी 2015 से 31 अगस्त 2016 की अवधि में इस न्यास के ट्रस्टियों ने जलयुक्त शिवार योजना (महाराष्ट्र सरकार की एक शासकीय योजना) तथा चिकित्सा उपकरण उपलब्ध करा देने के संदर्भ में सहायता, अध्ययन करने के नाम पर 8,11,259/- रूपए, साथ ही वाहक के अतिरिक्त भत्ते के रूप में 4,80,000/- रूपए… इस प्रकार से कुल मिला कर 12,91,000/- रूपए का व्यय किया गया है। इसमें लॉजिंग, खानपान आदि के लिए किए गए व्यय भी शामिल हैं. आश्चर्य की बात यह है कि, श्री सिद्धिविनायक मंदिर का कानून न्यासियों को इस तरह के यात्रा व्यय की अनुमति ही नहीं देता, उसके लिए शासन से अनुमति लेनी पडती है.
अतः बिना शासन की अनुमति से मंदिर न्यासियोंद्वारा अभ्यास भ्रमण के लिए किया गया व्यय सरासर मनमानी है. इसके अतिरिक्त जलयुक्त शिवार के लिए सहायता राशि राज्य शासन को ही दे दी गई है, तो उसके लिए अलग से अभ्यास यात्रा करने की क्या आवश्यकता थी? सीधी सी बात है कि ट्रस्टियों की मनमानी और शासन को चूना लगाने की प्रवृत्ति के कारण यह प्रकरण गंभीर है. श्री सिद्धिविनायक मंदिर न्यास भ्रष्टाचार विरोधी समिति के क़ानूनी सलाहकार तथा हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता श्री. वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने यह मांग की है कि, इस प्रकरण में संबंधित न्यासियों के खिलाफ धोखाधडी तथा अनियमितताओं के अपराध दर्ज किया जाना चाहिए.
श्री सिद्धिविनायक मंदिर के पूर्व ट्रस्टियों द्वारा मंदिर संपत्ति में की गई लूट के विरोध में आवाज उठाने के लिए गणेशभक्तों की ओर से समिति की स्थापना की गई। इस समिति की ओर से 20 फरवरी को एक पत्रकार परिषद में श्री सिद्धिविनायक मंदिर न्यास भ्रष्टाचारविरोधी कृति समिति के समन्वयक श्री अजय संभूस, समिति के सदस्य तथा देवस्थान भ्रष्टाचार के अभ्यासी डॉ. अमित थडानी, बजरंग दल के श्री शिवकुमार पांडे, सनातन संस्था के प्रवक्ता के श्री. शंभू गवारे उपस्थित थे। अधिवक्ता श्री. वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने खुलासा करते हुए संक्षेप में कुछ बिंदु और बताए हैं… जैसे कि –
१. वर्ष 2015 में न्यास के तत्कालीन ट्रस्टी प्रवीण नाईक ने मिरज (जिला सांगली) के सिद्धिविनायक कैंसर चिकित्सालय के अवलोकन हेतु 27 से 29 जनवरी की अवधि में तीन दिनों का भ्रमण किया; परंतु उनके द्वारा इस टूर का दिया गया बिल गोवा राज्य के एक होटल का है, तो क्या मुंबई से मिरज तक की यात्रा के बीच में गोवा भी आता है? ऐसे में यह प्रश्न उपस्थित होता है, कि क्या वे इस अभ्यास भ्रमण के नाम पर गोवा में मौज-मस्ती करने के लिए गए थे?
२. नाईक की ही भांति और एक ट्रस्टी हरिश सणस ने भी “इसी अवधि में”, शासन की बिना अनुमति से ही किराए का वाहन लेकर मुंबई से मिरज का भ्रमण किया। इन दोनों ने एक ही अवधि में एक ही मार्ग से यात्रा की, तो सणस द्वारा लिए गए किराए के वाहन से ही, इन दोनों ने एकत्रित यात्रा क्यों नहीं की? मंदिर में भक्तों द्वारा समर्पित किए गए अर्पित धन का अपव्यय करना तो मंदिर की लूट और शासन से की गई धोखाधडी है, साथ ही आस्थापूर्वक धन अर्पण करनेवाले श्रद्धालुओं से किया गया विश्वाशसघात है!
३. 2 से 4 डिसेंबर 2013 की अवधि में तत्कालीन न्यासियों ने तिरुपति देवस्थान का अवलोकन करने के लिए विमान से यात्रा की। इन न्यासियों ने विमान की महंगी यात्रा कर मंदिर का अर्पित धन क्यों उडाया? इस हवाई यात्रा के लिए न्यास ने शासन से अनुमति क्यों नहीं ली? परीक्षण ब्यौरा तो अत्यंत हास्यास्पद है! इसके लिए इतना व्यय करने की आवश्यकता ही नहीं थी, यह स्पष्ट होता है! ज़ाहिर है कि मंदिर संपत्ति की लूट करनेवाले पूर्व न्यासियों से इस धन की आपूर्ति की जानी चाहिए!
४. इस प्रकरण में शासन सजग नहीं था; परंतु अगस्त 2016 में मंदिर न्यास के निरीक्षण ब्यौरे में न्यास को दी गई सूचनाएं न्यासियों द्वारा की गई अनियमितिताओं को उजागर करनेवाली हैं! इसमें स्पष्टता के साथ यह टिप्पणी की गई है कि, “शासन द्वारा दिए गए विशेष आदेश के बिना, न्यास की धनराशि से किसी भी प्रकार की यात्राओं का आयोजन नहीं किया जाना चाहिए! किसी अपवाद स्वरूप स्थिति में यात्रा की आवश्यकता अनिवार्य होने पर भी, संबंधित विभाग की ओर से स्वीकृति लेनी चाहिए, वाहनों का उपयोग तथा वाहनचालक के अतिरिक्त भत्ते पर नियंत्रण रखा जाना चाहिए!” अतः मुख्यमंत्री इस कार्योत्तर व्यय के लिए स्वीकृति न दें साथ ही भ्रष्टाचार को सहमति न दें तथा शासन की अनुमति के बिना की गई इस मंदिर संपत्ति की लूट के प्रकरण में संबंधित न्यासियों के विरोध में अपराध प्रविष्ट कर इस धन की उनसे वसूली की जाए।
पूर्व न्यायाधीश टिपणीस समिति के ब्यौरे में निहित उदाहरणों को प्रस्तुत करते हुए मंदिर सरकारीकरण दुष्परिणामों के अभ्यासी डॉ. अमित थडानी ने कहा, ‘‘श्री सिद्धिविनायक न्यास की ओर से जो चंदा दिया जाता था, उसके लिए शासन का विधि तथा न्याय विभाग स्वीकृति देता था। उस समय गोविंदराव आदिक राज्य के विधि एवं न्याय मंत्री, जबकि दिलीपराव सोपल इसी विभाग के राज्यमंत्री थे। उनके न्यास को क्रमशः 50 लाख और 20 लाख रुपए का चंदा दिया गया है. आपातकालीन धनराशि की सहायता का कारण देकर, राजनीतिक स्वार्थ के लिए ऐसी अनेक संस्थाओं को “आर्थिक सहायता”(??) दी गई है। इसी कारण पूर्व न्यायाधीश टिपणीस समिति ने न्यास की कार्यपद्धति पर फटकार लगाई है; परंतु इस बारे में अभी तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है, जो कि अत्यंत गंभीर मामला है!’’
मंदिर के पूर्व न्यासियों द्वारा किये गए भ्रष्टाचार को देखते हुए “बागड़ ही खाए खेत”, यह मुहावरा सिद्ध होता है. भक्तों द्वारा समर्पित धन की लूट कर इन ट्रस्टियों ने श्रद्धालुओं की आस्था पर ही आघात किया है। घर के स्वामी द्वारा ही, घर को लूटने की यह घटना किसी चोर के द्वारा की गई चोरी से भी अधिक भयंकर है!’’ मंदिर संपत्ति की लूट करना महापाप है! वक्रतुंड श्री गणेश वाममार्गी महापापियों को दंडित तो अवश्य करेंगे ही; परंतु मंदिरों का सरकारीकरण किए जाने से हो रही लूट को रोकना शासन का भी दायित्व बनता है! महाराष्ट्र सरकार और केंद्र सरकार से यह मांग की जाती है कि इन भ्रष्टाचारियों के विरोध में कार्रवाई करें! सनातन संस्था के बैनर तले कहा गया है कि यदि शासन द्वारा इन भ्रष्टाचारियों के विरोध में कार्रवाई नहीं की गई, और लूटे गए धन की वसूली नहीं की गई, तो जनता को साथ लेकर तीव्र आंदोलन चलाया जाएगा.
कहने का तात्पर्य यह है कि देश के विभिन्न बड़े और धनी मंदिरों में इस प्रकार की सैकड़ों अनियमितताएँ, अधार्मिक कृत्य एवं भ्रष्टाचार सरेआम जारी है. स्वाभाविक है कि सभी राजनैतिक दलों की निगाह इन शक्तिशाली और धन-संपन्न मंदिरों के ट्रस्टों पर होती है. इन ट्रस्टों में अपने चहेते अधिकारी और चमचों को रखा जाता है ताकि उनके माध्यम से नेताओं और अफसरों की बीवियों और रिश्तेदारों के NGOs को भी उपकृत किया जा सके. प्रसाद के लिए दिए जाने वाले ठेके अपने चहेते और मोटा चन्दा देने वाले व्यापारियों को दिलवाए जा सकें… इत्यादि-इत्यादि. केंद्र सरकार के समक्ष यह मामला पिछले तीन वर्ष से विचाराधीन है. मंदिरों की सरकारी लूट को कैसे रोका जाए तथा SGPC की ही तरह एक केन्द्रीय संस्था बनाकर इन मंदिर ट्रस्टों से अफसरों-नेताओं को बाहर किया जाए, इस सम्बन्ध में एक ड्राफ्ट संस्कृति मंत्रालय को काफी समय पहले भेजा जा चुका है. लेकिन दुर्भाग्य से इस बारे में रत्ती भर भी प्रगति नहीं हुई है और मंदिरों का शासकीय कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार अबाध गति से जारी है