बॉलीवुड और अंडरवर्ल्ड का कनेक्शन आज से नहीं बल्कि चालीस के दशक से चला आ रहा है। आज हम अपराध जगत का जो दखल फिल्म उद्योग में देख रहे हैं, इसकी नींव अफगानी पठान करीम लाला ने रखी थी। अपराध का फिल्म जगत में प्रवेश एक अभिनेत्री के कारण हुआ था और देखते ही देखते अपराध से कमाया जाने वाला धन फिल्मों में लगाया जाने लगा। दुबई के अवैध पैसों से फिल्म जगत में एक समानांतर सत्ता का जन्म हुआ जिसने अघोषित ढंग से फिल्म उद्योग को हथिया लिया। आज से इंडिया स्पीक्स डेली पर बॉलीवुड व अपराध जगत के रिश्तों पर एक श्रंखला शुरू की जा रही है। इसे पढ़कर आप जानेंगे कि अंडरवर्ल्ड किस तरह फिल्म उद्योग में घुसपैठ कर काला पैसा सफ़ेद कर रहा है।
चालीस के दशक में अफगानिस्तान से अब्दुल करीम शेर खान मुंबई आया। करीम का सपना भारत में एक मुकाम हासिल करना था और इसके लिए वह कोई भी रास्ता अख्तियार करने के लिए तैयार था। ऐसा नहीं था कि करीम लाला गरीबी के कारण अपराध की ओर मुड़ा था। वह पश्तून समुदाय का आखिरी राजा था और उसका परिवार बहुत संपन्न माना जाता था। इसके बावजूद उसके भारत आकर शराफत का काम करने की जगह अपराध का रास्ता अपनाया। साफ़ था कि करीम लाला एक अपराधी मानसिकता का व्यक्ति था।
पाकिस्तान के पेशावर से होता हुआ वह चालीस के दशक में मुंबई आया और कारोबार शुरू कर दिया। उसका कारोबार दिखाने के लिए था। असल में उसने बंदरगाह से हीरों की तस्करी शुरू कर दी थी और बहुत तेज़ी से मुंबई में पैर पसारना शुरू कर दिए थे। यही वह दौर था जब फिल्म उद्योग और अपराध जगत की गलबहियां बढ़ने लगी थी। करीम लाला ने कई कलाकारों की मुसीबत में मदद की थी जिसके चलते कलाकार लॉबी में उसकी पूछ-परख बढ़ने लगी थी। हेलन एक बार मदद के लिए करीम लाला के पास आई। उनका परिचित पीएन अरोड़ा सारी कमाई लेकर फरार हो गया था। वो पैसे वापस देने से मना कर रहा था।
यही वह दौर था जब फिल्मों में अपराध जगत का पैसा लगाने की शुरुआत हो चुकी थी। सुपरस्टार दिलीप कुमार खुद करीम लाला के करीबी थे। करीम लाला के दौर में काला धन फिल्मों में लगाने का खेल बस शुरू ही हुआ था लेकिन ये असंगठित था। उस समय करीम लाला के पास इतनी समझ नहीं थी कि फिल्मों के जरिये वह अपना पैसा वैध कर सकता है लेकिन उसके बाद वाले डॉन इस मामले में बहुत शातिर निकले। करीम लाला ही वह शख्स था जिसके कारण फिल्म उद्योग और मुंबई अंडरवर्ल्ड का ऐसा नेक्सस बना जो आज तक चल रहा है।
चालीस का दशक ख़त्म होते-होते फिल्म उद्योग में एक धारणा आम हो चली थी कि करीम लाला मुसीबत में उनके लिए मसीहा बन सकता है। हेलन की मदद तो बस एक शुरुआत थी। ये सिलसिला सालो साल दाऊद इब्राहिम तक निर्बाध चलने वाला था। मुंबई की हवाओं में एक और डॉन की एंट्री होने जा रही थी और फिल्मों में फिरौती का पैसा लगाने का खेल शुरू हो रहा था। अगले भाग में जानेंगे कि हाजी मस्तान की एंट्री के बाद कैसे फिल्मों में काला धन लगाने की विधिवत शुरुआत हो गई। जारी रहेगा…
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