विपुल रेगे। किसी एक हिट फिल्म के ब्रांड बनने के बाद उस पर बने अन्य भागों को हिट कराना बड़ा मुश्किल होता है। भले ही हिट फिल्म का ब्रांड आपके सिर पर चिपका हो, कंटेंट पर मेहनत करनी ही पड़ती है। निर्देशक मृगदीप सिंह लांबा की ‘फुकरे 3’ पहले दिन ही टिकट खिड़की पर डगमगाती दिखाई दे रही है। इस बार वह ‘मैजिक’ नदारद है, जिसके लिए ‘फुकरे’ ब्रांड जाना जाता है। इन दिनों बॉक्स ऑफिस पर बॉलीवुड के बूढ़ों का राज़ चल रहा है। ऐसे में ‘फुकरे 3’ का कंटेंट उसे सफलता दिला पाएगा, इसमें संदेह है।
भोली पंजाबन नामक अपराधी महिला एक पार्टी का टिकट लेकर चुनाव में उतर गई है। वह जिसके पैसों से चुनाव लड़ रही है, वह दिल्ली का बहुत बड़ा टैंकर माफिया है। इस टैंकर माफिया का प्लान बड़ा ही भयावह है। वह भोली पंजाबन के सहारे देश में कृत्रिम जल संकट पैदा करना चाहता है। इधर चूचा गैंग की हालत फिर से पतली है। उनका स्टोर चल नहीं रहा है। चूचा और उसकी गैंग छोटे-मोटे काम कर दिन काट रहे हैं।
भोली पंजाबन के चुनाव प्रचार में चूचा और उसके साथियों को बुलाया जाता है लेकिन यहाँ पब्लिक चूचा को पसंद करने लगती है। इस बात पर दोनों ओर से मतभेद हो जाते हैं। ऐसे ही फिल्म की कहानी आगे बढ़ती है। हमेशा की तरह निर्देशक ने विषय बढ़िया चुना है। यहाँ गलती प्रस्तुतिकरण में हो गई है। कॉमेडी का स्तर इतना गिरा दिया गया है कि दर्शकों की हंसी मुश्किल से निकलती है। फिल्म में कुछ मूमेंट अवश्य हंसी दिलाते हैं लेकिन समग्र प्रभाव में कॉमेडी में बड़ी चूक हुई है। यदि कॉमेडी मल-मूत्र तक पहुँच जाए तो समझा जा सकता है कि स्तर क्या होगा। पहली फिल्म के बाद ‘फुकरे’ एक ब्रांड बनकर उभरा था।
दूसरे भाग में भी कहानी को मनोरंजक ढंग से आगे बढ़ाया गया था लेकिन इस बार स्क्रीनप्ले के क्रेक्स दिखाई देते हैं। कॉमेडी के अवसर नहीं ढूंढा जाना निर्देशक का सबसे बड़ा फाल्ट है। ‘फुकरे’ की ताकत उसकी अचूक कॉमेडी रही है, जो इस बार नदारद है। ऋचा चढ्ढा इस बार अपने किरदार में कमज़ोर हो गई हैं। पंकज त्रिपाठी जैसे होनहार अभिनेता को लेकर भी उनसे मनमाना काम निर्देशक नहीं निकलवा सके हैं। आज के दौर के सर्वश्रेष्ठ चरित्र अभिनेता पंकज त्रिपाठी से ऐसे हलके किरदारों की अपेक्षा उनके प्रशंसक नहीं करते हैं।
पुलकित सम्राट और वरुण शर्मा ने बेहतर अभिनय किया है लेकिन मनजोत सिंह को अधिक फुटेज नहीं मिला और न उनका किरदार स्ट्रांग बनाया गया है। पहले दिन फिल्म को औसत से भी कम ओपनिंग लगी है। पहले दिन का अनुमान मात्र आठ से दस करोड़ का है। शुरुआती शोज में अधिकांश सिनेमाघर खाली देखे गए। ये इस फिल्म के लिए खतरे की घंटी है। इसके साथ प्रदर्शित हुई ‘द वैक्सीन वॉर’ का हाल तो और भी बुरा रहा है। विवेक अग्निहोत्री की ये फिल्म पहले दिन पांच करोड़ का कलेक्शन भी नहीं कर सकेगी। कुल मिलाकर ये सप्ताह फिल्म उद्योग के लिए फायदेमंद नहीं रहा है।