
27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़ कर कुतुब मीनार परिसर में बनी कुव्वत-उल-इस्लाम मस्ज़िद को लेकर दायर याचिका पर टली सुनवाई!
Archana Kumari. हिंदुओं के साथ शुरू से भेदभाव होता आया है। मुस्लिम आक्रमणकारियों ने तो एक -एक मंदिर को ध्वस्त कर मस्जिद बना दी लेकिन अब हिंदुओं ने भी अपनी मंदिर दोबारा वापस लेने की पहल शुरू कर दी है।
अयोध्या और काशी के बाद कुतुब मीनार परिसर में बनी मस्जिद भी इसी की देन है और सनातन धर्म को मानने वाले अपनी मंदिर को वापस पाने के लिए अदालत से गुहार लगाई है।
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वैसे इस मामले में सुनवाई करने वाले जज साहब छुट्टी पर है ,जिसके चलते फिलहाल सुनवाई टल गई है। साकेत कोर्ट अब 27 अप्रैल को इस मामले को लेकर सुनवाई करेगा।
याचिका में कुतुब मीनार को ध्रुव स्तंभ बताते हुए मांग की गई है कि हिंदू रीति-रिवाज से पूजा करने की इजाजत दी जाए। यह याचिका पहले जैन तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव, भगवान विष्णु की ओर से हरिशंकर जैन, रंजना अग्निहोत्री और जीतेंद्र सिंह बिसेन ने दायर की है।
याचिका में कहा गया है कि मुगल बादशाह कुतुबद्दीन ऐबक ने 27 हिंदू और जैन मंदिरों को ध्वस्त कर मस्जिद बनाई थी। कुतुब मीनार परिसर में स्थित कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद हिंदुओं और जैनों के 27 मंदिरों को तोड़कर बनाए जाने का आरोप लगाते हुए कोर्ट से देवताओं की पुनर्स्थापना के साथ ही पूजा-अर्चना का अधिकार मांगा गया है।
दावा किया गया है कि कुतुब मीनार परिसर में बनी कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद को 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़कर बनाया गया था। इस दावे के आधार पर मस्जिद में मौजूद टूटे मंदिरों हिस्सों में पूजा करने का अधिकार दिए जाने को लेकर दायर याचिका पर कोर्ट में सुनवाई 6 मार्च को होनी थी ।
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से मामले को स्पष्ट करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से पूछा है कि क्या इस स्थल पर इस्लामिक पद्धति से प्रार्थनाएं की गई ।
याचिका में रंजना अग्निहोत्री और हरिशंकर जैन ने मांग की है कि कोर्ट केंद्र सरकार को एक ऐसा ट्रस्ट बनाने का निर्देश दे, जो मंदिर परिसर का प्रबंधन देखे। यह भी निर्देश देने की मांग की गई है कि परिसर में पुजारी तैनात किया जाए, जो नियमित पूजा-अर्चना का करवाए।
साथ ही संबंधित धर्मावलंबियों को यहां पर नियमित पूजा-अर्चना का अधिकार दिया जाए। न्यायाधीश ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि कोर्ट किस प्रकार से इस मामले में हस्तक्षेप कर सकता है।
इस पर याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश तथा एएसआई की रिपोर्ट का हवाला देते हुए पूजा के अधिकार को बहाल करने की मांग की। पहले चली सुनवाई में कोर्ट ने यह भी कहा कि एक अन्य हलफनामा देकर स्पष्ट किया जाए कि इस मामले में याचिकाकर्ता भक्त हैं या भगवान हैं।
सनद रहे कि कुतुब मीनार परिसर में स्थित कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद हिंदुओं और जैनों के 27 मंदिरों को तोड़कर बनाए जाने का आरोप लगाते हुए, देवताओं की पुनर्स्थापना और पूजा-अर्चना का अधिकार मांगा गया है।
इस मुकदमे में कुल पांच याची हैं। पहले याचिकाकर्ता तीर्थकर भगवान ऋषभदेव हैं, जिनकी तरफ से हरिशंकर जैन ने निकट मित्र बनकर मुकदमा किया है। दूसरे याचिकाकर्ता भगवान विष्णु हैं, जिनकी ओर से रंजना अग्निहोत्री ने मुकदमा किया है।
मामले में भारत सरकार और भारत पुरातत्व सर्वेक्षण को प्रतिवादी बनाया गया है। दावा है कि आक्रमणकारी मुहम्मद गोरी के कमांडर कुतुबुद्दीन ऐबक ने कुतुब मीनार का निर्माण कराया था।
यह भी कहा जाता है कि मंदिरों को तोड़ा गया था इसलिए देवी-देवताओं की सैकड़ों खंडित मूर्तियां आज भी यहां पर मौजूद हैं।कहा गया है कि इमारत के बारे में पूरी जानकारी होते हुए भी तब की सरकार ने हिंदू और जैन समुदाय को अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया जबकि मुस्लिम समुदाय ने जगह का कभी धार्मिक इस्तेमाल किया नहीं।
गौरतलब हो कि दिल्ली के पहले मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक की तरफ से 1192 में क़ुव्वत उल इस्लाम मस्जिद बनवाई गई, लेकिन इस मस्जिद में मुसलमानों ने कभी नमाज नहीं पढ़ी।
इसकी वजह यह थी कि ये मस्जिद मंदिरों की सामग्री से बनी इमारत के खंभों, मेहराबों, दीवार और छत पर जगह-जगह हिंदू-देवी देवताओं की मूर्तियां थीं जबकि कुतुब मीनार परिसर में बनी इस मस्जिद में उन मूर्तियों और धार्मिक प्रतीकों को आज भी देखा जा सकता है।
आज जिसे हम महरौली के नाम से जानते हैं वो दरअसल मिहरावली थी, जिसको चौथी सदी के शासक चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक वराहमिहिर ने बसाया ।
प्रसिद्ध गणितज्ञ वराहमिहिर ने ग्रहों की गति के अध्ययन के लिए विशाल स्तंभ का निर्माण करवाया जहां फिलहाल कुतुब मीनार परिसर है और इस स्तम्भ को ध्रुव स्तंभ या मेरु स्तंभ कहा जाता था लेकिन मुस्लिम शासकों के दौर में इसे कुतुब मीनार नाम दे दिया गया
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