विनीत नारायण । आप जानते ही हैं कि भौतिक संसार को त्याग कर अध्यात्म का केसरिया चोला पहनने वाला कोई व्यक्ति तभी संततत्व को प्राप्त होता है जब वो राग-द्वेष, मान-अपमान, शत्रु-मित्र, यश-अपयश, सुख-दुख व हानि- लाभ आदि के बंधनों से मुक्त होकर केवल प्रभु की आराधना में लीन रहे।
मुझे बरसाना ( मथुरा) के अपने सूत्रों से पता चला है कि जब से ब्रज की विभूति, विरक्त संत श्री विनोद बाबा ( पीली पोखर) पिछले वर्ष नवद्वीप ( बंगाल) की तीर्थ यात्रा पर अपने दर्जनों परिकरों के साथ मुझे भी लेकर गये थे तब से आपने उनको नियमित फ़ोन करना ही बंद कर दिया ।
जबकि सुना है कि पहले आप बाबा महाराज को हर महीने फ़ोन करके उनका हाल पूछते थे और अपने अफ़सरों को नियमित रूप से उनके सेवा में भेजते थे । ये बात बाबा के परिकरों ने मुझसे आजतक छिपायी इसलिए सीधे आपसे पूछ रहा हूँ कि क्या ये सही है ?
वैसे बाबा जैसे संत को इस सबसे कोई अंतर नहीं पड़ता । आप जानते हैं कि भक्ति युग के अष्टछाप के संत कुम्भन दास जी ने बादशाह अकबर के द्वारा ससम्मान अपने दरबार में बुलाये जाने के बावजूद उसके मुँह पर उसे मनहूस कहा था ;
“ संतन को कहां सीकरी सो काम,
आवत जात पनहिया टूटी,
बिसरिय गयो हरि नाम”
अर्थात् संतों को किसी शासक से क्या काम ? उनका तो मुँह देखकर हरि स्मरण भी भूल जाता है।
बरसाना के संत श्री रमेश बाबा के साथ हुआ मेरा यही अनुभव सुनकर आपको ये संदर्भ और स्पष्ट होगा। ब्रज सेवा के लिए प्रेरणा दिलवाने के उद्देश्य से 2003-2005 के बीच मैं प्रायः केंद्रीय केबिनेट मंत्रियों व राष्ट्रीय नेताओं को बाबा के दर्शन करवाने मान मंदिर ले जाता था। तब मैं नीतीश कुमार, सुषमा स्वराज, लालू यादव, अर्जुन सिंह आदि अनेक अन्य बड़े नेताओं को लेकर वहाँ गया ।क्योंकि तब मैं बाबा के अनुगत्य में मान मंदिर पर ही रहता था और श्री बाँके बिहारी मंदिर व गोवर्धन के दानघाटी मंदिर की व्यवस्था भी देखता था ।क्योंकि अदालत ने मुझे उनका रिसीवर नियुक्त किया था।
जानते हैं एक दिन श्री रमेश बाबा ने मुझसे क्या कहा, “विनीत नारायण तुम इन सब भिकमंगों को ही यहाँ क्यों लाते हो ? इनका मुँह देखकर भजन भंग होता है। ये कोई ब्रज की सेवा नहीं करेंगे। ठाकुर जी से केवल अपने राजनैतिक उत्थान की भीख माँगेंगे”
आपसे पुनः पूछता हूँ कि क्या ये सही है कि आपने विनोद बाबा के दर्शन और सत्संग का लाभ लेना किसी अफ़सर की सलाह पर बंद कर दिया है ?
उत्तर अगर हाँ है, तो मैं शास्त्रों पर आधारित अपने अल्प आध्यात्मिक ज्ञान के आधार पर आपको बिन माँगी सलाह देना चाहता हूँ कि आप ऐसा करके अनजाने ही संत और वैष्णव अपराध के भागी बन रहे हैं । भगवान स्वयं कहते हैं कि “ मैं अपना अपमान सह सकता हूँ पर अपने भक्त का अपमान कभी नहीं सह सकता”
मेरा मानना है कि संत वेश धारण करने वाली किसी भी पुण्यात्मा की ऐसी छोटी सोच हो ही नहीं सकती। निश्चित रूप से आपको ये सलाह किसी ऐसे अफ़सर या सलाहकार ने दी है जिसकी सोच निकृष्ट है, जो अपनी अयोग्यता के कारण स्वयं को सदा असुरक्षित अनुभव करता है, जो आध्यात्मिक चेतना विहीन है और जो नैतिक रूप से गिरा हुआ इंसान है।
ऐसा व्यक्ति आपका परम हितैषी होने का चाहे कितना भी नाटक करे, वो कदापि आपका हितैषी हो ही नहीं सकता।वो केवल अपना अस्तित्व बचाने के लिए ये सब करता है। क्योंकि ऐसे लोग परजीवी होते हैं। वे अपनी अयोग्यता को छिपाने के लिए चाटुकारिता का सहारा लेते हैं। चाहे वे आपकी कृपा पर आश्रित ही क्यों न हो।
अन्यथा तो आप भी जानते हैं कि परम रामभक्त गोस्वामी तुलसीदास जी कह गये हैं :
एक घड़ी , आधी घड़ी, आधी में पुनि आध।
तुलसी संगत साधु की, हरै कोटि अपराध।।
सारा ब्रज मण्डल ही नहीं , विश्व भर के वैष्णव जानते हैं कि बरसाना में विराजने वाले प्रातः स्मरणीय विरक्त संत श्री विनोद बाबा व ब्रज धाम की सेवा के लिए मेरे प्रेरणा स्रोत परम रसिकाचार्य संत श्री रमेश बाबा के सानिध्य में बैठ कर एक क्षण में ही दिव्य अनुभूति प्राप्त होती है।
निम्न वीडियो में आप श्री विनोद बाबा से, उनके आश्रम में बैठकर, स्वयं यही बात कह रहे हैं ;
मैंने आपके हित में अपना निवेदन कर दिया । अब आगे आपकी इच्छा कि आप क्या करें । ये सलाह अगर आपके केसरिया भेष के अनुकूल न लगे तो मुझे क्षमा कर दें !
श्रीब्रज धाम की सेवा के लिए समर्पित
व सभी संतों व भक्तों का अधम दास