श्वेता पुरोहित। ये कहानी सूर्य देव के जन्म से जुड़ी है। इस जगत्की सृष्टि करके ब्रह्माजी ने पूर्वकल्पों के अनुसार वर्ण, आश्रम, समुद्र, पर्वत और द्वीपों का विभाग किया। देवता, दैत्य तथा सर्प आदि के रूप और स्थान भी पहले की ही भाँति बनाये।
ब्रह्माजी के मरीचि नाम से विख्यात जो पुत्र थे, उनके पुत्र कश्यप हुए। उनकी १३ पत्नियाँ हुईं, वे सब-की-सब प्रजापति दक्षकी कन्याएँ थीं। उनसे देवता, दैत्य और नाग आदि बहुत-से पुत्र उत्पन्न हुए। अदिति ने त्रिभुवन के स्वामी देवताओं को जन्म दिया। दिति ने दैत्यों को तथा दनु ने महापराक्रमी एवं भयानक दानवों को उत्पन्न किया। विनता से गरुड और अरुण-दो पुत्र हुए। खसाके पुत्र यक्ष और राक्षस हुए। कद्रूने नागों को और मुनिने गन्धौँ को जन्म दिया। क्रोधा से कुल्याएँ तथा अरिष्टा से अप्सराएँ उत्पन्न हुईं। इरा ने ऐरावत आदि हाथियों को उत्पन्न किया। ताम्रा के गर्भ से श्येनी आदि कन्याएँ पैदा हुईं। उन्हींके पुत्र श्येन (बाज), भास और शुक आदि पक्षी हुए। इलासे वृक्ष तथा प्रधा से जलजन्तु उत्पन्न हुए।
कश्यप मुनि के अदिति के गर्भ से जो सन्तानें हुईं, उनके पुत्र-पौत्र, दौहित्र तथा उनके भी पुत्रों आदि से यह सारा संसार व्याप्त है। कश्यप के पुत्रोंमें देवता प्रधान हैं। इनमें कुछ तो सात्त्विक हैं, कुछ राजस हैं और कुछ तामस हैं। ब्रह्मवेत्ताओं में श्रेष्ठ परमेष्ठी प्रजापति ब्रह्माजी ने देवताओं को यज्ञभाग का भोक्ता तथा त्रिभुवन का स्वामी बनाया; परन्तु उनके सौतेले भाई दैत्यों, दानवों और राक्षसोंने एक साथ मिलकर उन्हें कष्ट पहुँचाना आरम्भ कर दिया। इस कारण एक हजार दिव्य वर्षोंतक उनमें बड़ा भयङ्कर युद्ध हुआ। अन्तमें देवता पराजित हुए और बलवान् दैत्यों तथा दानवोंको विजय प्राप्त हुई। अपने पुत्रोंको दैत्यों और दानवोंके द्वारा पराजित एवं त्रिभुवनके राज्याधिकार से वञ्चित तथा उनका यज्ञभाग छिन गया देख माता अदिति अत्यन्त शोकसे पीड़ित हो गयीं। उन्होंने भगवान् सूर्यकी आराधनाके लिये महान् यत्न आरम्भ किया। वे नियमित आहार करती हुई कठोर नियमोंका पालन और आकाश में स्थित तेजो राशि भगवान् सूर्य का स्तवन करने लगीं।
इस प्रकार देवी अदिति नियमपूर्वक रहकर दिन- रात सूर्यदेव की स्तुति करने लगीं। उनकी आराधना की इच्छा से वे प्रतिदिन निराहार ही रहती थीं। तदनन्तर बहुत समय व्यतीत होने पर भगवान् सूर्यने दक्षकन्या अदिति को आकाश में प्रत्यक्ष दर्शन दिया ।
अदिति ने देखा, आकाश से पृथ्वी तक तेजका एक महान् पुञ्ज स्थित है। उद्दीप्त ज्वालाओं के कारण उसकी ओर देखना कठिन हो रहा है। उन्हें देखकर देवी अदिति को बड़ा भय हुआ। वे बोलीं –गोपते! आप मुझपर प्रसन्न हों। मैं पहले आकाश में चरणोंमें गिर पड़ीं। तब भगवान् सूर्यने कहा- ‘देवि ! तुम्हारी जो इच्छा हो, वह वर मुझसे माँग लो।’ तब देवी अदिति घुटनेके बलसे पृथ्वीपर बैठ गयीं और मस्तक नवाकर प्रणाम करके वरदायक भगवान् सूर्यसे बोलीं – ‘देव! आप प्रसन्न हों। अधिक बलवान् दैत्यों और दानवोंने मेरे पुत्रोंके हाथसे त्रिभुवनका राज्य और यज्ञभाग छीन लिये हैं। गोपते! उन्हें प्राप्त करानेके निमित्त आप मुझपर कृपा करें। आप अपने अंशसे देवताओंके बन्धु होकर उनके शत्रुओंका नाश करें। प्रभो! आप ऐसी कृपा करें, जिससे मेरे पुत्र पुनः यज्ञभागके भोक्ता तथा त्रिभुवनके स्वामी हो जायँ।’
तब भगवान् सूर्य ने अदिति से प्रसन्न होकर कहा – ‘देवि ! मैं अपने सहस्र अंशोंसहित तुम्हारे गर्भसे अवतीर्ण होकर तुम्हारे पुत्रके शत्रुओंका नाश करूँगा।’ इतना कहकर भगवान् सूर्य अन्तर्धान हो गये और अदिति भी सम्पूर्ण मनोरथ सिद्ध हो जानेके कारण तपस्यासे निवृत्त हो गयीं। तदनन्तर सूर्यकी सुषुम्णा नामवाली किरण, जो सहस्र किरणोंका समुदाय थी, देवमाता अदितिके गर्भमें अवतीर्ण हुई। देवमाता अदिति एकाग्रचित्त हो कृच्छ्र और चान्द्रायण आदि व्रतोंका पालन करने लगीं और अत्यन्त पवित्रतापूर्वक उस गर्भको धारण किये रहीं।
यह देख महर्षि कश्यप ने कुछ कुपित होकर कहा- ‘तुम नित्य उपवास करके अपने गर्भ के बच्चे को क्यों मारे डालती हो?’ यह सुनकर उसने कहा – ‘देखिये, यह रहा गर्भका बच्चा; मैंने इसे मारा नहीं है, यह स्वयं ही अपने शत्रुओं को मारनेवाला होगा।’
यों कहकर देवी अदिति ने उस गर्भ को उदर से बाहर कर दिया। वह अपने तेज से प्रज्वलित हो रहा था। उदयकालीन सूर्य के समान तेजस्वी उस गर्भ को देखकर कश्यप ने प्रणाम किया और आदि ऋचाओं के द्वारा आदरपूर्वक उसकी स्तुति की। उनके स्तुति करने पर शिशुरूपधारी सूर्य उस अण्डाकार गर्भ से प्रकट हो गये। उनके शरीर की कान्ति कमलपत्र के समान श्याम थी। वे अपने तेजसे सम्पूर्ण दिशाओं का मुख उज्ज्वल कर रहे थे।
फिर मुनिश्रेष्ठ कश्यप को सम्बोधित करके मेघ के समान गम्भीर वाणी में आकाशवाणी हुई – “मुने ! तुमने अदिति से कहा था कि इस अण्डे को क्यों मार रही है—उस समय तुमने ‘मारितम्-अण्डम्’ का उच्चारण किया था, इसलिये तुम्हारा यह पुत्र ‘मार्तण्ड’ के नाम से विख्यात होगा और शक्तिशाली होकर सूर्य के अधिकार का पालन करेगा; इतना ही नहीं, यह यज्ञभाग का अपहरण करने वाले देवशत्रु असुरोंका संहार भी करेगा।’
सूर्य अपनी ऊर्जाशक्ति से सभी नकारात्मक शक्तियों का नाश करता है। जैसे एक प्रतापी राजा के समक्ष कोई दुरगुणी, दुराचारी एवं पापी शत्रु नहीं टिक सकता उसी प्रकार सूर्य के तेज के समक्ष कोई भी नकारात्मक ऊर्जा का संचार या परिपालन संभव नहीं। सूर्य सभी को समान रूप से प्रकाश प्रदान करता है, जैसे एक राजा समस्त प्रजा के साथ समान रूप से न्याय करता है। इसलिए ज्योतिष में सूर्य को ग्रहों का राजा कहा जाता है।
सूर्य देव को नमस्कार
ॐ घृणि सूर्याय नमः