विपुल रेगे। 73 वर्ष की उम्र में जब भीतर का ज़हर नहीं मरा तो नसीरुद्दीन शाह को मान लेना चाहिए कि वे घृणा संबंधी किसी गंभीर मानसिक रोग से पीड़ित हैं और इस बात का उनको अब तक पता नहीं चला है। बीते कुछ वर्षों में वे नसीर से ‘कंट्रोवर्सी शाह’ बन गए, इसका उन्हें ज़रा भी इल्म नहीं है। ‘ग़दर 2’ और ‘द कश्मीर फाइल्स’ का ब्लॉकबस्टर होना नसीर के लिए चिंता का विषय बन गया है। नसीर ने एक शार्ट फिल्म बनाई है, जिसके प्रमोशन के लिए वे मीडिया से बात कर रहे हैं।
नसीरुद्दीन शाह के दिए गए विवादित बयान मीडिया के लिए बिकाऊ खबर बनते हैं, साथ ही स्वयं उनके लिए मुश्किल खड़ी कर देते हैं। नसीर ने एक शार्ट फिल्म बनाई है। इसे प्रमोट करने के लिए वे मीडिया से बात कर रहे थे। बात-बात में नसीर के भीतर का बगावती इंसान जाग उठा और उन्होंने ‘ग़दर 2’ व ‘द कश्मीर फाइल्स’ को लेकर विषैले प्रहार करना शुरु कर दिए। दूसरे दिन जब मीडिया में खबर आई तो उनकी शार्ट फिल्म का ज़िक्र दब गया और सामने आ गए उनके ताज़ा बयान। मुफ्त में प्रचार बटोरना कभी-कभी महंगा पड़ जाता है।
‘फ्री प्रेस जर्नल’ को दिए गए लंबे दार्शनिक नुमा इंटरव्यू में नसीरुद्दीन ने कहा कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ जैसी फिल्मों की लोकप्रियता उन्हें परेशान करती है। वे कहते हैं ‘फिल्म निर्माताओं को ऐसी फिल्में बनाने में शामिल किया जा रहा है जो सभी गलत चीजों की प्रशंसा करते हैं और बिना किसी कारण के अन्य समुदायों को नीचा दिखाते हैं। यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है।’ ये बात नसीर ने इन फिल्मों को देखे बिना कही है। उन्होंने ‘ग़दर 2’ भी नहीं देखी है लेकिन अकारण उसे भी लपेट लिया है। नसीर भारत के बड़े प्रतिभाशाली अभिनेताओं में गिने जाते हैं। वे एक फिल्मकार भी हैं। इस नाते उन्हें किसी भी फिल्म पर बोलने से पूर्व उसे देखना चाहिए।
नसीर को ‘द केरल स्टोरी’ पर बोलने से पहले फिल्म देखनी चाहिए और उन हालातों को भी जानना चाहिए, जो केरल में बने हुए हैं। आप सेलेब्रेटी हैं, इसका मतलब ये तो नहीं कि दूसरे फिल्मकारों के सार्थक प्रयासों पर कुछ भी बक देंगे। नसीर की ताज़ा तकलीफ ये है कि सुधीर मिश्रा, अनुभव सिन्हा और हंसल मेहता की अच्छी फ़िल्में पब्लिक नहीं देख रही। नसीर कहना चाहते हैं कि दर्शकों को ये समझ नहीं है कि वे क्या देखें और किसे छोड़ दे। वे अपनी टिप्पणियों में ताज़ा फिल्म ‘जवान’ को शामिल करना भूल गए।
‘जवान’ में मुख्य नायक सिस्टम से बगावत करता है और जनता को न्याय दिलाता है। ऐसा ही ‘ग़दर 2’ में दिखाया गया है। एक भारतीय का बेटा पाकिस्तान में पकड़ लिया जाता है और उसका पिता अपना कर्तव्य निभाते हुए बेटे को वापस लाने के लिए हर संभव तरीका अपनाता है। दोनों ही फिल्मों में निर्देशकों ने तर्कसंगत ढंग से कहानी को सामने रखा है। इसमें आपत्ति लेने वाली कौनसी बात है नसीर महोदय ? वे कहते हैं अपने देश से प्यार करना ही काफी नहीं है बल्कि इसके बारे में ढोल पीटना और काल्पनिक दुश्मन भी पैदा करना होगा। नसीरुद्दीन का इशारा पाक़िस्तान या शायद चीन की ओर था। जो देश भारत को अस्थिर करने के प्रयास कई साल से कर रहे हैं, वे नसीर को ‘काल्पनिक दुश्मन’ दिखाई देते हैं।
आपने दशकों फिल्म उद्योग में निकाल दिए। बहुत सी ब्लॉकबस्टर फिल्मों से आपका नाम जुड़ा हुआ है, फिर भी दर्शकों की नब्ज़ आप आज तक नहीं पकड़ सके हैं नसीर जी। आप भारत के जनमानस को जानते ही नहीं। यदि समाज फिल्मों से ही ज़हरीला बन जाता तो आज शाहरुख़ की फिल्म ‘जवान’ करोड़ों का कलेक्शन नहीं कर रही होती। यही दर्शक हैं जो ‘जवान’ और ‘पठान’ के साथ ‘द केरल स्टोरी’ और ‘द कश्मीर फाइल्स’ भी देखते हैं। यही दर्शक ‘कार्तिकेय’ को सराहते हैं तो यही दर्शक ‘सम्राट पृथ्वीराज’ को नकार देते हैं। वास्तव में भारतीय दर्शक के मन की थाह पाना बड़ा कठिन है। वह फिल्म धर्म या संप्रदाय की दृष्टि से नहीं देखता।
सन 1999 में नसीर ने ‘सरफ़रोश’ में गुलफाम हसन नामक कैरेक्टर निभाया था। ये किरदार बड़ा लोकप्रिय हुआ था। ये ऐसा किरदार था जो खुद को ‘मुजाहिद’ कहता था। ये कैरेक्टर पाकिस्तान के लिए कार्य करता था। क्या नसीर मानेंगे कि ‘सरफ़रोश’ भी एक ऐसी ही फिल्म थी, जो किसी अन्य समुदाय को नीचा दिखा रही थी। यदि दिखा रही थी तो आप उसमे क्या कर रहे थे ? ऐसे लार्जर देन लाइफ कैरेक्टर आपने भी अपनी कई फिल्मों में किये हैं लेकिन आप पर टिप्पणी करने वाला कोई और ‘नसीर’ उस समय नहीं था। हालाँकि भारत में एक ही ‘अल्बर्ट पिंटो’ है, जिसे अनर्गल बातों पर बहुत गुस्सा आता है।