विपुल रेगे। अंडमान-निकोबार के द्वीप समूह में एक जानलेवा वायरस धरती फाड़कर बाहर आ गया है। ये वायरस तेज़ी से लोगों का जीवन निगलता जा रहा है। शेष विश्व और भारत से काट दिए गए इन द्वीपों में एक प्राचीन आदिवासी समूह भी रहता है। वायरस बड़ी ही तेज़ी के साथ गरीबी की रेखा से ऊपर उठकर अमीरों के महंगे कालीनों के नीचे पहुँच चुका है। 18 अक्टूबर को नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई वेब सीरीज ‘काला पानी’ दर्शक को एंगेज करने में सफल रही है। दो गुमनाम से निर्देशकों के गुमनाम कॅरियर का उदय बड़े ही प्रखर ढंग से हुआ है। फिल्म का आर्ट और क्राफ्ट क्या होता है, ये ‘काला पानी’ अच्छी तरह दिखाती है।
ओटीटी मंच : नेटफ्लिक्स
‘काला पानी’ की यूएसपी इसकी अनोखी कहानी है। बिस्वापति सरकार द्वारा लिखी कहानी इस वेबसीरीज का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। इस कहानी को निर्देशक जोड़ी समीर सक्सेना और अमित गोलानी ने रुचिकर ढंग से प्रस्तुत किया है। इस वेब सीरीज की समीक्षात्मक विवेचना कई एंगलों से की जा सकती है। अभिनय की दृष्टि से फिल्म बेजोड़ है तो इसकी कहानी और आर्ट डायरेक्शन भी प्रभावी है। निर्देशक जोड़ी ने इस कहानी को पेश करने के लिए एक अलग ही दुनिया बसाई है, जो हमें बहुत वास्तविक लगती है।
कोविड के आने के बाद संसार के साथ विश्व भी बदल गया और इसके साथ वैश्विक फिल्म उद्योग को एक और जॉनर मिल गया, जिस पर वे मनोरंजक फ़िल्में बना सकते हैं। ‘पेंडेमिक’ पर फिल्म बनाना एक जोखिम है। यदि निर्देशक मनोरंजन का ध्यान न रखे तो खेल बिगड़ जाता है। पिछले दो साल में रिलीज हुई ‘वायरस मूवीज’ का हश्र बुरा हुआ। उन्हें दर्शक नहीं मिले। कारण ये भी था कि कोरोना की स्मृतियाँ ताज़ा थी और उन्हें परदे पर देखने का दर्शक का कोई मूड नहीं था।
‘काला पानी’ में वायरस को प्राचीन आदिवासियों के साथ जोड़कर पेश करने से उसमे एक आकर्षण आ जाता है। अंडमान के जंगलों से भरे द्वीप अपने भीतर इस वायरस का निदान छुपाए बैठे हैं लेकिन इतनी आसानी से उस निदान तक नहीं पहुंचा जा सकता है। निर्देशक जोड़ी ने अंडमान-निकोबार के द्वीप समूह जाकर फिल्म शूट की है। उन्होंने एक अलग ही दुनिया का निर्माण किया है, जो वास्तविक लगती है। वायरस के पता लगने और उसके फैलने के सीक्वेंस देखने योग्य है। दिखाया गया है कि वायरस का पता लगते ही निर्मम सरकार इन द्वीपों से हवाई संपर्क तोड़ देती है।
निर्देशक जोड़ी ने यहाँ रहने वालों की व्यथा भी दिखाई है। जैसे एक दृश्य में शिक्षक बोर्ड में भारत का नक्शा बनाता है और क्लास में बच्चों से पूछता है कि इस नक़्शे में क्या कमी है। तब एक बच्चा नक़्शे में अंडमान-निकोबार के द्वीप समूह बनाता है। तब शिक्षक कहता है कि जब तक ये छोटे-छोटे द्वीप नक़्शे में नहीं है, भारत पूरा नहीं होता। निर्देशक जोड़ी ने आदिवासियों द्वारा वायरस का रहस्य जानने वाला तथ्य बड़े ही इंट्रेस्टिंग ढंग से पेश किया है। बात कलाकारों की नहीं हुई तो बात पूरी भी नहीं होगी।
जंगल में सांस लेती इस कहानी के कैरेक्टर्स जुगनू की तरह दिखाई देते हैं। हर कलाकार का व्यक्तित्व विस्तार से दिखाया गया है। हर कलाकार का एक अतीत है, जो सुंदर ढंग से प्रस्तुत हुआ है। सबने इतना बेहतरीन अभिनय दिखाया है कि तय करना मुश्किल है कि कौन बेहतर था। मोना सिंह, आशुतोष गोवारिकर, अमेय वाघ, सुकान्त गोयल, आरुषि शर्मा, राधिका मेहरोत्रा, विकास कुमार, चिन्मय मंडलेकर, पूर्णिमा इंद्रजीत के भावपूर्ण अभिनय के साथ ‘काला-पानी’ ऐसे लगती है, जैसे पीड़ा और मौत की रुदाली गा रहे जंगल अदाकारी के जुगनुओं से दीप्तिमान हो रहे हो।
जल, जंगल और ज़मीन की लड़ाई ‘काला पानी की सतह पर साँसें भरती है। कोरोना की स्मृतियाँ अब भी गई नहीं है। वह मन की कंदराओं में अब भी छुपी बैठी हैं। वे स्मृतियाँ इस वेब सीरीज को देखते हुए नम होने लगती है। इसमें एक परिवार दिखाया गया है। जब वायरस का अटैक होता है, तो परिवार बिखर जाता है। इस परिवार को देखते समय बहुत से दर्शकों को ‘नॉस्टेल्जिया’ का आघात हो सकता है। पुरानी याद कचोट सकती है। कुल मिलाकर नेटफ्लिक्स पर प्रदर्शित हुई ‘काला पानी’ देखने योग्य ड्रामा है।
इसके अंत में एक नई शुरुआत का सूत्र छोड़ा गया है। दर्शक सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि इसका दूसरा सीज़न जल्द ही देखने को मिल सकता है। ये वेब सीरीज पूर्ण रुप से वयस्क दर्शकों के देखने योग्य है। सीरीज में वयस्क दृश्य तो नहीं है लेकिन कथावस्तु और बहुत से दृश्य बच्चों के योग्य नहीं है। यदि आप रहस्य और पेन्डेमिक जॉनर को एकसाथ देखना चाहते हैं तो ये वेब सीरीज आपके लिए हैं। कहानी, अभिनय और प्रस्तुतिकरण आपको निराश नहीं करेगा।