श्वेता पुरोहित-
मंगल देवता की चार भुजाएँ हैं। इनके शरीर के रोयें लाल हैं। इनके हाथों में क्रम से अभय मुद्रा, त्रिशूल, गदा और वरमुद्रा है। इन्होंने लाल मालाएँ और लाल वस्त्र धारण कर रखे हैं। इनके सिर पर स्वर्णमुकुट है तथा ये मेख (भेड़ा) के वाहन पर सवार हैं।
वाराह कल्प की बात है। जब हिरण्यकशिपु का बड़ा भाई हिरण्याक्ष पृथ्वी को चुरा ले गया था और पृथ्वी के उद्धार के लिये भगवान्ने वाराहावतार लिया तथा हिरण्याक्ष को मारकर पृथ्वी देवी का उद्धार किया, उस समय भगवान को देखकर पृथ्वी देवी अत्यन्त प्रसन्न हुईं और उनके मन में भगवान को पतिरूप में वरण करनेकी इच्छा हुई। वाराहावतार के समय भगवान का तेज करोड़ों सूर्यो की तरह असह्य था। पृथ्वी की अधिष्ठात्री देवी की कामना पूर्ण करने के लिये भगवान् अपने मनोरमरूप में आ गये और पृथ्वी देवी के साथ एक दिव्य वर्ष तक एकान्त में रहे। उस समय पृथ्वी देवी और भगवान के संयोग से मंगल ग्रह की उत्पत्ति हुई (ब्रह्मवैवर्तपुराण २।८। २९ से ४३)। इस प्रकार विभिन्न कल्पों में मंगल ग्रहकी उत्पत्ति की विभिन्न कथाएँ हैं। पूजा के प्रयोग में इन्हें भरद्वाज गोत्र कहकर सम्बोधित किया जाता है। यह कथा गणेशपुराण में आयी है।
मंगल ग्रहकी पूजाकी पुराणों में बड़ी महिमा बतायी गयी है। यह प्रसन्न होकर मनुष्य की हर प्रकार की इच्छा पूर्ण करते हैं। भविष्यपुराण के अनुसार मंगलव्रत में ताम्रपत्रपर भौमयन्त्र लिखकर तथा मंगल की सुवर्णमयी प्रतिमा की प्रतिष्ठा कर पूजा करने का विधान है। मंगल देवता के नामों का पाठ करने से ऋण से मुक्ति मिलती है। यह अशुभ ग्रह माने जाते हैं। यदि ये वक्रगति से न चलें तो एक-एक राशि को तीन-तीन पक्ष में भोगते हुए बारह राशियों को डेढ़ वर्ष में पार करते हैं।
मंगल ग्रह की शान्ति के लिये शिव-उपासना तथा प्रवाल रत्न धारण करने का विधान है। दान में ताँबा, सोना, गेहूँ, लाल वस्त्र, गुड़, लाल चन्दन, लाल पुष्प, केशर, कस्तूरी, लाल वृषभ, मसूर की दाल तथा भूमि देना चाहिये। मंगलवार को व्रत करना चाहिये तथा हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिये। इनकी महादशा सात वर्षों तक रहती है। यह मेष तथा वृश्चिक राशि के स्वामी हैं।
इनकी शान्ति के लिये वैदिक मन्त्र – ‘ॐ अग्निर्मूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम् अपार रेता सि जिन्वति ॥’
पौराणिक मन्त्र –
‘धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम् ।
कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणमाम्यहम् ॥’
बीज मन्त्र ‘ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः’, तथा सामान्य मन्त्र – ‘ॐ अं अंगारकाय नमः’ है।
इनमें से किसी का श्रद्धानुसार नित्य एक निश्चित संख्या में जप करना चाहिये। कुल जप-संख्या १०००० तथा समय प्रातः आठ बजे है।
विशेष परिस्थिति में विद्वान् ब्राह्मण का सहयोग लेना चाहिये।