प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तरह मारने का खुलासा जिस चिट्ठी से हुई है वह चिट्ठी जेएनयू के पूर्व छात्र रहे रोना विल्सन के घर से मिली है। रोना विल्सन अभी भीमा कोरेगांव आंदोलन के दौरान हिंसा भड़काने और पूरे देश में उत्पात मचाने के लिए नक्सली आतंकवादियों से मिलकर साजिश के आरोप में पुलिस हिरासत में है। इसी साजिश में शामिल पांच अन्य अर्बन नक्सल को पुलिस ने अलग अलग स्थानों मों दबिश देकर गिरफ्तार किया है!
नक्सलियों के समर्थकों पर बड़ी कार्रवाई करते हुए पुलिस ने गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज तथा वरवरा राव को गिरफ्तार किया है। पुलिस की इस कार्रवाई से यह उजागर हो गया है कि भीमा कोरेगांव हिंसा के पीछे माओवादियों का हाथ था। सुरक्षा एजेंसियों ने मंगलवार को माओवादी समर्थकों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की है। सुरक्षा एजेंसियों ने देश के पुणे,हैदराबाद, दिल्ली तथा रांची में उनके घरों पर छापेमारी कर इन लोगों को गिरफ्तार किया है। सुरक्षा एजेंसियों ने अभी तक जिन लोगों को गिरफ्तार किया है उनमें मानवाधिकार एक्टिविस्ट सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, तथा वरवरा राव शामिल हैं।
मालूम हो कि पुणे पुलिस की नक्सलियों के खिलाफ यह दूसरी बड़ी कार्रवाई है। वैसे गौतम नवलखा के बारे में कहा जा रहा है कि कोर्ट ने उनकी गिरफ्तारी पर एक दिन की रोक लगा दी है। इसलिए उन्हें अभी हिरासत में रखा गया है। गत अप्रैल महीने में पुलिस को एक चिट्ठी मिली जिसमें नक्सलियों के समर्थकों के बारे में जानकारियों के अलावा इस बात का भी खुलासा हुआ था कि माओवादी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करने की साजिश रच रहे थे। उसी मामले को ध्यान में रखकर जांच एजेंसियों ने माओवादी समर्थकों के खिलाफ यह दूसरी बड़ी कार्रवाई की है। छापे की यह कार्रवाई गोवा और रांची में भी हुई है। पुलिस ने सुबह में अलग-अलग शहरों में छापे की कार्रवाई शुरू की थी।
माओवादी समर्थक सुधा भारद्वाज
ट्रेड यूनियन और सामाजिक कार्यकर्ता बताने वाली सुधा भारद्वाज वर्तमान में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली के विजिटिंग प्रोफेसर हैं। वह आदिवासियों के हित में काम करने के नाम पर छत्तीसगढ मुक्ति मोर्चा जैसे राजनीतिक दल की संस्थापक सदस्य रही हैं और सचिव का दायित्व संभाल चुकी हैं। वह छत्तीसगढ़ में पिपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टिज (पीयूसीएल) की संस्थापक हैं। इसके अलावा वह वकीलों के एक संगठन जनहित की भी संस्थापक हैं। मालूम हो ये सारे संगठन आदिवासियों और गरीबों के हित में काम करने का दावा करते हैं। वह छत्तीसगढ मुक्ति मोर्चा राजनीतिक दल के संस्थापक स्वर्गीय शंकर गुहा निहोगी की भी सहयोगी रही हैं। ये सब काम तो दिखावे का है लेकिन अंदर से सुधा यावद को माओवादी समर्थक माना जाता है।
उनके बारे में हाल ही में रिपब्लिक टीवी ने बड़ा खुलासा किया तो उन्होंने रिपब्लिक टीवी को कानूनी नोटिस भेज दिया। रिपब्लिक टीवी ने सुधा भारद्वाज के बारे में खुलासा करते हुए बताया कि उन्होंने किसी कॉमरेड प्रकाश को पत्र लिखकर छत्तीसगढ़ के हालात को कश्मीर जैसा बनाने को कहा है। इस पत्र के माध्यम से यह भी खुलासा किया गया कि इन्होंने पैसे की भी मांग की थी। इस बारे स्टोरी प्रसारित करने से पहले ही रिपब्लिक टीवी ने सुधा भारद्वाज से संपर्क किया लेकिन उन्होंने इस बारे में बात करने से स्पष्ट रूप से मना कर दिया। और जब उनकी खुलासे की स्टोरी प्रसारित हो गई तो व्यक्तिगत तथा प्रोफेसनली नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाते हुए रिपब्लिक टीवी के खिलाफ कानूनी नोटिस जारी कर दिया। अब जब भीमा कोरेगांव के मामले में जांच एजेंसियों ने शिकंजा कसना शुरू कर दिया है तो एक बार फिर ये लोग मोदी सरकार पर कमजोरों के समर्थन में आवाज उठाने वालों को भयभीत करने का आरोप लगाना शुरू कर दिया है।
गौतम नवलखा को साल 2010 में नहीं घुसने दिया गया था कश्मीर
जिस गौतम नवलखा को जांच एजेंसियों ने हिरासत में लिया है उसी उसे साल 2011 में कश्मीर में घुसने नहीं दिया गया था। उस समय जम्मू-कश्मीर सरकार को आशंका थी कि ये लोग अलगाववादियों से मिलकर राज्य में अशांति फैलाएंगे। वैसे गौतम नवलखा का पेशा देखा जाए तो ऊपर से बड़े पत्रकार के साथ अव्वल दर्जे के मानवाधिकार तथा लोक अधिकार के कार्यकर्ता हैं लेकिन इसी वेश में ये लोग देश और अपने वैचारिक विरोधी सरकार के खिलाफ षड्यंत्र रचते हैं। इकोनॉमिक एंड पोलिटिकल विकली के सलाहकार संपादक नवलखा बहरहाल पिपुल्स युनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट के सचिव के रूप में काम कर रहे हैं। नवलगा इंटरनेशनल पिपुल्स ट्रिब्यूनल ऑन ह्यूमन राइट्स एंड जस्टिस इन कश्मीर के संयोजक रहे हैं। कश्मीर में रहने के दौरान अलगाववादियों के संपर्क में आकर वहां की शांति भंग करने का आरोप लगा था। तभी तो जम्मू एवं कश्मीर सरकार ने साल 2010 में उन्हें कश्मीर में घुसने पर पाबंदी लगा दी थी।
प्रतिबंध लगने के बावजूद नवलखा ने 2011 के दिसंबर में नवलखा ने इंटरनेशनल पिपुल्स ट्रिब्यूनल ऑन ह्यूमन राइट्स एंड जस्टिस इन कश्मीर के एक कार्यक्रम में भाग लेने श्रीनगर गया था। बहरहाल नवलखा छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में काम कर रहे हैं। मालूम हो कि छत्तीसगढ़ काफी पहले से ही माओवाद से प्रभावित है। माओवादी के समर्थक रहे नवलखा शुरू से कश्मीर में जनमत संग्रह कराने का पक्षधर रहा है। तभी तो प्रशांत भूषण ने उनके खिलाफ हुई कार्रवाई पर सरकार को फांसीवादी बताया है। नवलखा का कहना है कश्मीर मसले का एकमात्र समाधान जनमत संग्रह तथा वहां से मिलिट्री को हटाना है।
कार्रवाई माओवादी समर्थकों पर हुई लेकिन मिर्ची सारे लिबरल ब्रिगेड को लगी
भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा के मामले में मंगलवार को पुलिस की हुई कार्रवाई से लिबरल ब्रिगेड लाल हो गए हैं। पुलिस ने इस मामले में दूसरी बार बड़ी कार्रवाई करते हुए कई माओवादी समर्थकों के घर छापेमारी कर उन्हें गिरफ्तार किया है। पुलिस की इस छापेमारी की सोशल मीडिया पर काफी चर्चा हो रही है। मालूम हो कि तथाकथित इन सामाजिक कार्यकर्ताओं के कारण ही भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़की थी। जब माओवादी सैकड़ो पुलिसवालों को मौत के घाट उतार देते हैं तब मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल को मानवाधिकार याद नहीं रहता लेकिन जब पुलिस कार्रवाई करती है तो उसे मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी याद आ जाती है तभी तो उसने पुलिस की कार्रवाई की आलोचना करते हुए यह ट्वीट किया है।
News reports are coming in of a police crackdown on advocates and rights activists across the country. pic.twitter.com/n3MZ4gIVLH
— Amnesty India (@AIIndia) August 28, 2018
वामी रामचंद्र गुहा ने इस मामले में ट्वीट करते हुए लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट को शीघ्र ही इस मामले में दखल देना चाहिए
This is absolutely chilling. The Supreme Court must intervene to stop this persecution and harassment of independent voices. Sudha Bharadwaj is as far from violence and illegality as Amit Shah is close to those things. https://t.co/GTD2V0Tlk7
— Ramachandra Guha (@Ram_Guha) August 28, 2018
जो हमेशा ही सुप्रीम कोर्ट में कोर्ट फिक्स करने में लगा हो उसे भी मानवाधिकार की याद आने लगा है। वैसे भी प्रशांतभूषण पर तो पहले से ही देश और मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की साख को भी दावं पर लगाने का आरोप है।
जो व्यक्ति आतंकवादी की फांसी की सजा रुकवाने के लिए 12 बजे रात को सुप्रीम कोर्ट के जज को जगा सकता है वह माओवादी के खिलाफ हुई कार्रवावाई के लिए सरकार को फासीवादी नहीं कहेगा तो और क्या कहेगा ?
Getting news that Pune police have raided/arrested among the finest Human rights activists&dissenting voices, such as Sudha Bharadwaj (a human rights lawyer), Gautam Navlakha (Former Pres of PUDR), Fr Stan Swamy (a human rights activist) & Ors. Fascist fangs are now openly bared
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) August 28, 2018
वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने अपने ट्वीट में लिखा है कि नए भारत में मानवाधिकार कार्यकर्ता गिरफ़्तार किए जाएंगे, लेकिन सनातन संस्था जैसे संगठनों को कोई छूना तक नहीं चाहता और देश चुप है।
राजदीप जैसे पत्रकार जिस प्रकार अपने आकाओं के लिए सेलेक्टिव मुद्दों को उठाते आ रहे हैं उन्हें दूसरी की कार्रवाई बगैर भेदभाव वाली कैसे लगेगी?
In the ‘new’ India human rights activists will be arrested but no one wants to touch groups like Sanathan Sanstha! And the country stays silent! #BhimaKoregaon
— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) August 28, 2018
जेएनयू की पूर्व छात्रा कविता कृष्णनन जिस प्रकार के विचार से ग्रसित हैं उन्हें प्रशासन की कार्रवाई उसी अनुकूल लगेगी। क्योंकि माओवादी विचारधारा मानने वालों के न्याय की किताब खून के बदले खून, आंख के बदले आंख की बात है। माओवादी क्षेत्र में तो लोगों को घोषित जंगलराज की आदत सी पड़ी है। इसलिए उसे मोदी सरकार में अघोषित आपातकाल दिखाई देता है।
कविता कृष्णनन को भीमा कोरेगांव की हिंसा नहीं दिखाई देती, लेकिन इस हिंसा में संलिप्त होने के आरोपियों का मानवाधिकार दिखाई देता है!
Under the Modi regime's undeclared Emergency, rights activists and dissenters are either shot at, killed, or raided, arrested and jailed. The arrests of Sudha Bharadwaj, Gautam Navlakha, Vernon Gonsalves, Varavara Rao follow on the heels of the murderous attack on Umar Khalid.
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) August 28, 2018
जिस राजनीतिक पार्टी के राज में बिहार जंगलराज का पर्याय बन चुका था उसी राजनीतिक दल यानि राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा ने कोरेगांव हिंसा के आरोपियों के खिलाफ हुई कार्रवाई को मानवाधिकार पर हमला बताया है। कितनी ताज्जुब की बात है। उनका कहना है कि भीमा कोरेगाँव की आड़ में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर हमला किया जा रहा है।
लालू यादव की पार्टी का यह सांसद इन नक्सलियों के पकड़े जाने से महागठबंधन पर आंच आता देख बौखला गया है।
Under the cover of #BhimaKoregaon investigation the brutal attack is now human rights activists. First you attempted brutalising the memory of Dalits and now threats/arrests of activists.. Isn't it time to bid farewell to democracy? Jai Hind
— Manoj K Jha (@manojkjhadu) August 28, 2018
झूठी खबर की फैक्ट्री चलाने के लिए मशहूर पत्रकार निखिल वाग्ले ने ट्वीट किया है, “डियर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, भीमा कोरेगांव हिंसा के दोषियों का क्या हुआ। एकबोट ज़मानत पर बाहर हैं। संभाजी भिडे खुलेआम आज़ाद घूम रहे हैं। क्या पुलिस मुद्दे को भटकाने की कोशिश कर रही है।”
Dear @Dev_Fadnavis, what happened to #BhimaKoregaon violence culprits? Ekbote is out on bail, Bhide is roaming free. Is police trying to divert the issue?
— nikhil wagle (@waglenikhil) August 28, 2018
जिस कांग्रेस पार्टी पर इस हिंसा का मास्टरमाइंड माना जा रहा है वह तो पुलिस की इस कार्रवाई को गलत बताएगी ही।
The draconian arrests of Sudha Bharadwaj, Arun Fereira and Vernon Gonsalves & other human rights activists further substantiate the anti-democratic actions of the ruling govt. PM Modi’s ‘New India’ is nothing but a dictatorship wrapped in expensive advertising. #BhimaKoregaon
— Congress (@INCIndia) August 28, 2018
लिखना संदीप देव से सुनिए माओवादियों की कहानी….
भीमा कोरेगांव और प्रधानमन्त्री मोदी को मारने की साजिश का खुलासा करती कुछ अन्य पोस्ट नीचे पढें-
JNU की प्रयोगशाला से निकला है पीएम को मारने की साजिश रचने वाला रोना विल्सन!
URL: Maoists and urban naxal behind the Bhima Koregaon Violence
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