अर्चना कुमारी। दुनिया जानती है कश्मीर में पाक आतंकी स्थानीय मदद से ही आए दिन वारदात करते रहते है। इस्लाम परस्त आतंकी और स्थानीय लोग पहले कश्मीरी पंडितो को भगाया और साथ ही सेना पर भी निरंतर हमले किए। लेकिन कभी कोई ठोस करवाई नही हुई। जम्मू-कश्मीर के पुंछ में हालिया आतंकवादी हमले में तीन सैनिकों के शहीद होने के बाद सुरक्षा बल द्वारा पूछताछ के लिए हिरासत में लिए गए तीन नागरिकों की मौत हो गई। जो आतंकियों के कथित मददगार थे।
हिरासत में इनके साथ मारपीट हुई थी। ऐसा दावा किया जा रहा लेकिन तीनो की रहस्मय मौत पर पुलिस ने अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया है। मुकदमा दर्ज होने के बाद सेना ने ‘कोर्ट ऑफ इंक्वायरी’ शुरू की है। घटना को गंभीरता से लेते हुए सेना ने एक ब्रिगेडियर स्तर के अधिकारी का तबादला कर दिया गया और 48 राष्ट्रीय राइफल्स के तीन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। हिरासत में आम नागरिकों को यातना दिए जाने के आरोप लगे, जिसके बाद जनता में आक्रोश देखने को मिला। केंद्र सरकार भी मुस्लिमों को नाराज नहीं देखना चाहती।
चाहे सैनिक मरते रहे। सूत्रों ने कहा कि इस मामले में पुलिस ने मुस्लिमों को खुश करने के लिए अज्ञात आरोपी सैन्यकर्मियों के धारा 302 (हत्या) के तहत मामला दर्ज किया है। एक अधिकारी ने प्राथमिकी के हवाले से बताया, ‘आतंकवादियों की तलाश में बफलियाज के टोपा पीर में सेना के जवानों ने पूछताछ के लिए कुछ स्थानीय युवाओं को हिरासत में लिया था।
इनमें शामिल सफीर अहमद, मोहम्मद शौकत और शब्बीर अहमद ने कथित तौर पर चोटों के कारण दम तोड़ दिया था।’ज्ञात हो पुंछ में आतंकी हमले में 4 जवानों के शहीद होने के बाद जारी तलाशी अभियान के बीच सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने मौके का दौरा किया। उन्होंने कमांडरों को बहुत ही पेशेवर तरीके से अभियान संचालित करने के लिए प्रोत्साहित किया।
थल सेनाध्यक्ष ने उनसे सभी चुनौतियों के प्रति दृढ़ रहने को कहा। उन्हें मौजूदा सुरक्षा स्थिति के बारे में जानकारी दी गई। सेना प्रमुख ने मौके पर कमांडरों के साथ बातचीत की।’ लेकिन सभी ने खुद को निर्दोष बताया। इस बीच जांच के नाम पर कुछ सैनिक से सख्ती की जाएगी। जिससे उनका मनोबल गिर सकता है। सरकार और सेना को अपने जवानों के खिलाफ कार्रवाई में पारदर्शिता रखनी चाहिए