अर्चना कुमारी। समलैंगिकता एक प्रकार की मानसिक विकृति है, जिसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत उचित ठहरा रहे हैं। हैरान करने वाला तथ्य है कि महाभारत काल के दो योद्धाओं का उदाहरण देते हुए यह बताने की कोशिश की गई है कि इस तरह के संबंध हमारे देश में कोई नई बात नहीं है और भारतीय समाज समलैंगिकता के इर्द-गिर्द रचता बसता है।
उन्होंने जरासंध के दो सेनापति हंस और दिंभक का जिक्र किया लेकिन उनके इस बयान का क्या मतलब निकाला जाए । जिस समुदाय को भारतीय समाज में घृणा के नजरिए से देखा जाता है, उनके प्रति संघ प्रमुख के हालिया बयान का मतलब हमदर्दी है या इसमें कुछ और संदेश छिपा है?।
जानकार मानते हैं कि दुनिया में कितनी भी आधुनिकता जाए लेकिन भारतीय सभ्य समाज इसे दिल और दिमाग से मंजूरी नहीं प्रदान कर पाएगा। हाल ही में जॉर्जिया में तो समलैंगिक कार्यकर्ता विलियम डेल ज़ुलॉक जूनियर और ज़ाचरी ज़ैक जेकोबी ज़ुलॉक ने किस तरह अपने दत्तक पुत्रों का यौन शोषण किया। वह हाल ही में चर्चा का विषय था।
लेकिन अपने देश में तो इसे शुरू से ही घिनौना अपराध माना जाता रहा है लेकिन चोरी-छिपे इसके चर्चे जरूर होते हैं लेकिन पिछले कुछ दिनों से समलैंगिक संबंधों को लेकर दुनिया भर में बहस तेज हो गई है और भारत भी अछूता नहीं है। कई देश इसे कानूनी मान्यता दे चुके हैं।
भारत में भी इसे निजी अधिकार बता कर समलैंगिकता को वैधता प्रदान करने की मांग उठती रही है। लेकिन भारतीय समाज में अड़चन यह है कि यहां की सामाजिक बनावट में ऐसे रिश्तों को सहज रूप से स्वीकार कर पाना बहुत कठिन है।सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से जबसे बाहर कर दिया तब से इसकी चर्चा और होने लगी है जबकि इससे पहले लोग इस बारे में कम ही बात करते थे।
इस मुद्दे को लेकर एक बार फिर बहस उस समय तेज हो गई जब मोहन भागवत ने अपने विवादास्पद इंटरव्यू के माध्यम से समलैंगिकता को भारतीय समाज का हिस्सा बता दिया। लेकिन इंडियास्पीक्सडेली के संपादक संदीप देव ने इसकी कड़ी आलोचना की है। उनका कहना है कि भारत में हमें अपने बच्चों को समलैंगिकता जैसी अप्राकृतिक कुकृत्य से बचाने के लिए अपने धर्मग्रंथों का सही परिप्रेक्ष्य सामने रखना होगा, न कि भ्रमित करने वाला परिप्रेक्ष्य, जैसा कि संघ प्रमुख ने रखा है।
उन्होंने साफ कहा है मैंने भागवत जी को Twitter पर टैग करते हुए आग्रह किया है कि वह अपने बयान वापस लें। अन्यथा इंडियास्पीक्सडेली हिंदू समाज को गुमराह से बचाने के लिए कानून का रास्ता अख्तियार करेगी। इस बारे में जल्द ही दिल्ली के थाने में आईपीसी की धारा 295 ए के तहत मुकदमा दर्ज किए जाने का निवेदन किया जाएगा ।
इस धारा के तहत अगर कोई व्यक्ति भारतीय समाज के किसी भी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करता है या उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के इरादे से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य करता है या इससे संबंधित वक्तव्य देता है, तो वह आईपीसी (IPC) यानी भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 295 ए के तहत दोषी माना जाएगा
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