जितेन्द्र चतुर्वेदी। एपी का मतलब अहमद पटेल तो नहीं! ‘शिंदे’, ‘भारद्वाज’ और ‘के नाथ’ तक आते-आते रहस्य खुल जाता है। मोइन कुरैशी और पूर्व सीबीआई निदेशक एपी.सिंह की बातचीत में इन नामों का जिक्र है। तत्कालीन सीबीआई निदेशक एपी.सिंह स्वयं मोइन कुरैशी को शिंदे से बात करने की सलाह दे रहे हैं। शिंदे कौन हैं? यह जगजाहिर है। इस बातचीत में एन.संधू और भारद्वाज का भी नाम है। ध्यान ही होगा कि मनमोहन सरकार में एन संधू उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थे। अब तो कोई भी भारद्वाज की पहचान कर सकता है। दरअसल, खूफिया ब्यूरो के तत्कालीन निदेशक आसिफ इब्राहिम को प्रभावित करने की जुगत में दोनों के बीच रणनीतिक बातचीत हो रही थी, जिसे आयकर विभाग ने टेप कर लिया।
आयकर विभाग के पास ऐसी 540 घंटे की रिकॉर्डिंग है, जिसमें कई चौंकाने वाले रहस्य हैं। इस विभाग ने दिसंबर 2013 से मोइन कुरैशी के फोन को टेप करना शुरू किया था। उससे जो-जो नाम सामने आए, उसे सुनकर विभाग के हाथ पांव फूलने लगे थे। हालांकि, बातचीत के दौरान कूट भाषा का प्रयोग किया जाता था, लेकिन यह बात जाहिर हो गई कि मोइन कुरैशी कांग्रेसी नेताओं की नाक का बाल रहा है। मोइन का सीधा संपर्क दस जनपथ से था। इसका कोई सीधा प्रमाण नहीं है, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि दस जनपथ की कृपा के बगैर कोई आदमी मनमोहन सरकार और कांग्रेस पार्टी में इतनी ऊंची पहुंच नहीं रख सकता था।
फिलहाल प्रवर्तन निदेशालय के पास जो दस्तावेज हैं, उसमें पूरा किस्सा दर्ज है। दस्तावेज और मोइन कुरैशी की बातचीत से जाहिर होता है कि वह मनमोहन सरकार में बिचौलिए का काम करता था। मोइन उन लोगों को बचाने का ठेका लेता था, जो जांच एजेंसियों की गिरफ्त में आ जाते थे। इसके लिए विशेष पद्धति विकसित की गई थी, जो सरकारी एजेंसियों के कामकाज की अपेक्षा अधिक प्रभावी थी। उसका सर्वे-सर्वा मोइन कुरैशी स्वयं था और किसी दूसरे के हस्तक्षेप की इजाजत नहीं थी। अगर संप्रग सरकार के काम-काज की पद्धति को कोई बारीक नजर से देखेगा तो यह बात स्पष्ट हो जाएगी कि मोइन कुरैशी सरीखे लोगों के बीच मंत्रालय बंटे हुए थे। वहां किसी दूसरे को दखल देने की अनुमति नहीं थी। जहां वित्त मंत्रालय का ठेका कार्ति चिदंबरम के पास था। ठीक उसी तरह जांच एजेंसियों से समन्वय बनाकर काम की जिम्मेदारी कुरैशी के पास थी। वे इस खेल का माहिर खिलाड़ी रहा है। कांग्रेस रणनीतिकारों को इस बात की जानकारी थी, इसलिए सोच-विचारकर उन्होंने कुरैशी का चुनाव किया था।
जांच एजेंसियों के शीर्ष अधिकारियों के बीच यह बात जाहिर थी कि मोइन कुरैशी के सिर पर एपी (अहमद पटेल) का हाथ है। वह बेखौफ आरोपियों को बचाने का काम करता था। इसके लिए उसे अधिक मशक्कत नहीं करनी पड़ती थी। उसे केवल अपने ब्लैकबेरी मोबाइल फोन से संदेश भेजने की जरूरत होती थी। फिर काम होने पर कुरैशी संबंधी व्यक्ति से रुपए वसूलता था और उस रुपए का बंटवारा करता था। यह सिलसिला संप्रग सरकार में काफी समय तक व्यवस्थित ढंग से चलता रहा। पूर्व सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा और उनके बाद भी लोग मोइन कुरैशी के इशारे पर काम करते रहे। सीबीआई (केंद्रीय जांच एजेंसी) में कुरैशी का दखल इस कदर था कि यह संस्था वसूली का अड्डा बन गई थी और कुरैशी उसका मुखिया था।
संप्रग सरकार में यह बात जाहिर थी, लेकिन कुरैशी को रोकने-टोकने की हिम्मत किसी में नहीं थी। आखिर क्यों? क्या उसे सीधे दस जनपथ से हरी झंड़ी मिली हुई थी? सीबीआई में कुरैशी के खौफ का आलाम यह था कि कौन सी फाइल कब कहां जाएगी? वह कितनी दिनों में पास होगी? इन सब की सूचना उसके पास होती थी। अब इससे ही सीबीआई में कुरैशी के प्रभाव का अंदाजा लगाया जा सकता है। जब तक संप्रग सरकार रही वह निर्भय होकर सीबीआई में अपनी मनमानी चलाता रहा। हालांकि, आयकर विभाग के पास उसके खिलाफ पक्के सूबत थे। आयकर विभाग ने फरवरी 2014 में कुरैशी के तमाम ठिकानों पर छापेमारी कर अघोषित संपत्ति जब्त की थी। लेकिन अपनी ऊंची पहुंच के कारण वह सलाखों के पीछे नहीं गया। लेकिन, इस छापेमारी ने सरकार का चेहरा बेनकाब कर दिया था। उससे सरकार के कई मंत्रियों और आला अधिकारियों की कुरैशी से सांठगांठ की पोल खुल गई। इससे पहले आयकर विभाग ने कई महीने कुरैशी के फोन को टेप किया था। उससे सरकार में फैले भ्रष्टाचार का भांडा फूटा। यह बात भी साफ हो गई कि संप्रग सरकार में राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले को लेकर भी अनदेखी की गई।
जिस तरह भारत का भगोड़ा अपराधी दाउद इब्राहिम ने अपनी मुखौटा कंपनी के जरिए स्पेक्ट्रम का लाइसेंस हासिल कर लिया था, उसी तरह मोइन कुरैशी ने पाकिस्तान में व्यापार करने वाली एक कंपनी के लिए संप्रग सरकार में अभियान चलाया था। उस कंपनी का नाम है- डांटा। यह कंपनी कई पाकिस्तान समेत कई देशों में हवाई अड्डे पर अपनी सेवा देती है। वह भारत में भी अपने पांव फैलाना चाहती थी। लेकिन 2001 में वाजपेयी सरकार ने उसे यह अनुमति नहीं दी। कारण राष्ट्रीय सुरक्षा को बताया गया था। लेकिन इस कंपनी ने भारत में अपने पांव फैलाने की कोशिश करती रही। कंपनी ने 2013 में इस काम के लिए मोइन कुरैशी से संपर्क किया। फिर डांटा ने कुरैशी की कंपनी इंडियन प्रीमियर सर्विसेज लिमिटेड में 50 फीसदी का निवेश किया, ताकि भारतीय कंपनी की हिस्सेदारी होने से दिल्ली हवाई अड्डे पर काम मिल जाए। वही हुआ। वह भी खुफिया ब्यूरो की आपत्ति के बाद। ब्यूरो सुरक्षा क्लियरेंस देने के लिए तैयार नहीं था। लेकिन, तत्कालीन सीबीआई निदेशक एपी. सिंह से बातचीत कर कुरैशी से रास्ता निकाल लिया। बातचीत के दौरान एपी.सिंह ने कुरैशी से कहा था- “आसिफ इब्राहिम से मेरा कोई सीधा संबंध नहीं है, लेकिन जिन लोगों से आसिफ की सीधी बातचीत होती है, उनसे मैं बात करता है।”
उस वक्त आसिफ इब्राहिम खुफिया ब्यूरो के निदेशक थे। उनकी रजामंदी पर ही भारत में डांटा का भविष्य निर्भर था। उनको तैयार करने की जुगाड़ में कुरैशी लगा था। इसी संदर्भ में एपी.सिंह ने मोइन को सलाह दी थी कि वे ‘शिंदे’ से बात करें। एपी.सिंह ने खुद एन.संधू से बात करना स्वीकार किया। उस वक्त संधू उप-सुरक्षा सलाहकार थे। इस बाबात लंबी बातचीत एपी.सिंह और मोइन कुरैशी के बीच हुई। वह टेप आयकर विभाग के पास मौजूद है। आश्चर्य की बात यह है कि डांटा की हिस्सेदारी वाली कंपनी इंडियन प्रीमियर सर्विसेज लिमिटेड को भारत में काम करने की अनुमति मिल गई। डांटा ने 2013-14 की वार्षिक रिपोर्ट में इसका जिक्र भी किया है। मगर यह बात छुपाई गई कि इंडियन प्रीमियर सर्विसेज लिमिटेड एक मुखौटा कंपनी है, जिसे मोइन कुरैशी ने अपना नाम दिया था। कंपनी में सारा निवेश डांटा का है। मोइन की भूमिका डांटा को काम दिलाने की थी। संप्रग सरकार में यही उसका काम भी था। संप्रग सरकार में बड़े-बड़े लोग अपना काम कराने के लिए उसकी दरबारी करते थे। हैदराबाद का व्यवसायी प्रदीप कनेरू भी उनमें एक रहा है। ऐसे लोगों से काम कराने के बदले मोइन कुरैशी मोटी रकम वसूलता था और उन रुपयों को राजनेताओं और नौकरशाहों के विदेशी खातों में जमा कराता था।
इस तरह काली कमाई से उसने अकूत संपत्ति बनाई। विदेशों में उसके 45 खाते हैं और चार कंपनियां पंजीकृत हैं। लंदन, दुबई, न्यूयॉर्क, सिंगापुर में उसने मकान हैं। राजधानी दिल्ली के छतरपुर में उसका एक फार्म हाउस है, जिसे फ्रांसीसी वास्तुकार जॉन लुई डेनिओट ने डिजाइन किया है। उसका दामाद केन्द्रीय मंत्री रहे जितिन प्रसाद के रिश्तेदार हैं। उनका लंदन में अपना कारोबार है। वैसे तो मोइन कुरैशी भी पेशे से व्यापारी है और रामपुर का रहने वाला है। उसका परिवार मीट का पुश्तैनी कारोबारी है। यह कारोबार 1950 के दशक में कुरैशी के पिता अब्दुल माजिद ने शुरू किया था।
दून स्कूल में मोइन की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई हुई। आगे की शिक्षा सेंट स्टीफेंस कॉलेज में हुई। पिता की मृत्यु के बाद वह मांस के करोबार में आ गया। उसी दौरान कांग्रेस के एक दिग्गज नेता से उसकी नजदीकी बनी। बाद में वे पंजाब के मुख्यमंत्री भी हुए। उन्होंने आगे बढ़ने में कुरैशी की बहुत मदद की। मांस के व्यापार के साथ-साथ वह रियल एस्टेट के कारोबार में आ गया और काम करवाने के लिए अपने स्कूल और कॉलेज के दोस्तों की मदद लेने लगा। उसने एक के बाद एक दर्जन भर कंपनियां खोलीं।
इसी दौरान केन्द्र में सत्ता बदल गई और कांग्रेस नेतृत्व वाली संप्रग सरकार आई। फिर वह मांस कारोबारों के साथ-साथ हवाला कारोबारी भी बन गया। हेरा-फेरी में जो रुपए कमाता था, उसे वह लंदन भेज देता था। इस बात की जानकारी लंदन की एजेंसी ने आयकर विभाग को दी है। आयकर विभाग के पास उसकी बातचीत के जो टेप हैं, उसमें कुरैशी के काले धंधों की कहानी दर्ज है। टेप से यह बात भी जाहिर होती है कि उसे अपने कांग्रेसी आका का वरदहस्त प्राप्त था। वह कांग्रेस पार्टी का प्यादा था, जिसे आगे बढ़ाकर कांग्रेसी नेता और मंत्री घी पी रहे थे। उसके फोन की रिकॉर्डिंग से तो यही बात निकल रही है।
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साभार: यथावत