
इतिहास में गंगा जमुना तहजीब के चलते कई झूठी बातों को हमें घुट्टी के रूप में पिलाया गया है। जहाँगीर (real name Nur-ud-din Muhammad Salim) को हिन्दुओं के प्रति अति न्यायप्रिय घोषित किया है, मगर वो खुद क्या थे, वह लिख गए थे. JAHANGIRNAMA Memoirs of Jahangir, Emperor of India Translated, edited, and annotated by Wheeler M। Thackston में कई बातें बहुत ही रोचक हैं, और वह सारी उस सफेदी की कलई खोलकर रखती हैं जो इन इतिहासकारों ने जानबूझकर छिपाई।
इसी पुस्तक के पृष्ठ 349 पर कश्मीर के राजौर का किस्सा बयान करते हुए जहांगीर कहता है कि शुक्रवार को हमारा शाही शिविर जहां लगा, वह जगह राजौर थी। पुराने समय में यहाँ पर लोग हिन्दू हुआ करते थे और जमींदार कहलाया करते थे। सुलतान फ़िरोज़ ने उन्हें मुस्लिम बना लिया था। फिर भी वह खुद को राजा कहा करते थे ………………………………वह पति के मरने पर पत्नियों को कब्र में जिंदा दफ़न करते थे। कुछ दिन पहले ही दस या बारह साल की लड़की को उन्होंने दफ़न किया था। बेटी के पैदा होते ही वह गला दबाकर मार देते थे। और वह हिन्दुओं से बेटियाँ लेते भी थे और बेटियाँ देते भी थे। (अर्थात विवाह सम्बन्ध थे)
अब, महान न्यायप्रिय जहांगीर, जिसने अपनी गद्दी पर बैठते समय यह घोषणा कराई थी कि हिन्दू औरत को जबरन सती न कराए, जो मन से होना चाहे उसे होने दें। तो ऐसे न्यायप्रिय शासक की चिंता अपने मज़हब के लोगों के लिए क्या होनी चाहिए थी कि “लड़कियों को जिंदा क्यों दफनाना, वह तो हिन्दुओं की कुरीति है, हिन्दू अपनी बेटियों को मारते हैं” मगर इन्साफ पसंद और हिन्दुओं को प्रेम करने वाले जहांगीर ने अपने द्वारा टाँगे गए न्याय की घंटी बजाकर कहा
“Taking them is all well and good, but giving them to Hindus God forbid! It was commanded that henceforth such customs would not be allowed, and anyone who committed such practices would be executed।”
इसे हिंदी में समझते हैं! हिन्दुओं से अतिशय प्यार करने वाले जहांगीर ने कहा कि “हिन्दुओं से बेटियों को लेना (अर्थात मुसलमानों की बहू बनाना) तो ठीक है, मगर हिन्दुओं को अपनी बेटी देना? अल्लाह माफ़ करे! यह हुक्म दिया गया कि आगे से ऐसा कोई भी निकाह नहीं होगा, और जिसने भी ऐसा किया उसे मृत्युदंड दिया जाएगा!”
जी हाँ, उसे मौत की सजा दी जाएगी! हिन्दू लड़की अकबर के हरम में तो आएगी, मगर मुसलमान लड़की किसी हिन्दू के घर आदरपूर्वक बहू बनकर नहीं जाएगी।
यह कैसा नियम था? ओह! मैं तो भूल जाती हूँ कि यह सहिष्णुता तो एकतरफा ही थी! तभी भगवान दास की बेटी का निकाह जहांगीर से हो सकता है और उसका बेटा खुसरो होता है, कोई अमर सिंह नहीं! सहिष्णुता की धारा एक ही तरफ़ा है, और जिस तरह से वह इस फिल्म में हिंदी गाने पर अपना सिर नचाते हुए नज़र आ रहा है, उस हिंदी या हिन्दुस्तानी भाषा के विषय में कहा जाता है कि उसे यह भाषा नहीं आती थी। इसे पुस्तक से जहांगीर दावा करता है कि “हालांकि मैं हिंदुस्तान में पला बढ़ा हूँ, मगर फिर भी मुझे तुर्की आती है। Although I grew up in Hindustan, I am not ignorant of how to speak or write.
Turkish” यह वह काबुल के साथ अपने रिश्ते बताते हुए कहता है। अर्थात वह भारत की किसी भी भाषा के साथ खुद को नहीं जोड़ना चाहता। पूरी किताब में यह कहीं पर भी नहीं लिखा है कि क्या उसे हिन्दुस्तानी अर्थात हिन्दुओं द्वारा बोली जाने वाली भाषा से प्यार था या फिर उसे हिन्दुओं के रीतिरिवाजों से प्यार था! हाँ उसने यह जरूर कहा है कि हिन्दू अपने त्यौहार मनाते थे और उसने रोक नहीं लगाई, उसके पिता के समय से राखी और होली का त्यौहार मनाया जा रहा था, मगर यह त्यौहार मनाना ऊपरी परत थी तभी उसकी हिन्दू बीवी की कोख से पैदा होने वाला खुसरो होता है!
तो बहुत ही आराम से कहा जा सकता है कि भारत में जो मुग़ल आए उन्होंने इस धरती और यहाँ की संतानों से उसी तरह नफरत दिखाई जिस तरह आज मुनव्वर राना इस पवित्र भूमि को सौतेली माँ कहते हैं।सौतेलापन तो बाबर के कदम धरते ही उन्होंने दिखाया था, कि हिन्दुओं की बेटियाँ ले तो लो, मगर उन्हें अपनी दो नहीं! और हमारे सामने इसे प्यार का देवता बनाकर पेश किया गया, और यह षड्यंत्र अभी तक कभी मुनव्वर राना और राहत इन्दौरी जैसे लोगों को महान बनाकर चल रहा है!
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इस्लाम में गैर मुसलमानों (काफिरो)की लडकियों का अपहरण करकेउनका धर्मपरिवर्तनकरके अपने हरम में रखना और उनपर अत्याचार करते रहने वाले मुसलमानों को जन्नत का मार्ग बताया जाता है।हमारे लिये यह पाप
हैं परन्तु इस्लाम में यहीं पुण्य माना जाता रहा है ।अपनी लडकियों को वे काफिरों को नहीं देते अगर कोई मुस्लिम लडकी ऐसा दुसाहस करती हैं तो उसे व उस
काफिर लडके को भी मारने के लिये सारे हथकण्डे अपनाये जाते हैं।
विषय बहुत बडा हैं जिहादियॉं को समझना सरल नहींहम जियो और जीने दो के मार्ग पर चलते हैं जबकि इन मुसलमानों की शिक्षाओं में गैर मुस्लिम को धरती पर जीने का कोई अधिकार ही नहींऐसे में साम्प्रदायिक सौहार्द कैसे सम्भव होगा_हम विवश होकर कब तक समझौतावादी बनाएं रहेंगेउनका लक्ष्य केवल जिहाद है वे उसी के लिये जीते व ंमरते हैं हम सत्य व अहिंसा के पुजारी कब तक बनाएं रहेंगेआत्मरक्षा हमारा जब जन्म सिद्ध व संविधानिक अधिकार हैं तो फिर आवश्यकता अनुसार शस्त्र उठाना
ही होगा यही धर्म है।
विनोद कुमार सर्वोदय