देशवासियों की जो गुहार सूचना व प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर नहीं सुन पा रहे थे, वह केंद्र के मुखिया नरेंद्र मोदी ने ठीक तरह से सुनी है। ओटीटी प्लेटफॉर्म और ऑनलाइन पोर्टल्स अब सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार काम करने के लिए बाध्य होंगे।
केंद्र के इस महत्वपूर्ण आदेश की प्रतीक्षा देश जाने कब से कर रहा था। इस आदेश का मतलब ये है कि जो फिल्म निर्माता स्वतंत्रता का गलत फायदा उठाकर फिल्मों के बहाने गंदगी परोस रहे थे, वे अब ऐसा नहीं कर सकेंगे। हालांकि इस आदेश में अब भी एक अड़चन है और उसका नाम है प्रकाश जावड़ेकर।
सभी जानते हैं कि उनके रहते सूचना व प्रसारण मंत्रालय एक मज़ाक बनकर रह गया है। आपको याद होगा कि कंडोम के विज्ञापन दिखाने के लिए एक नियम बनाया गया था कि रात 11 से सुबह 6 बजे से पहले ही ये विज्ञापन दिखाए जा सकेंगे। इस नियम का कैसा कचूमर निकाला गया कि ब्रम्ह मुहूर्त में टीवी ऑन करने पर सनी लिओनी कंडोम के विज्ञापन के साथ हाज़िर हो जाती है।
ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल्स पर नियंत्रण लाना स्वागत योग्य कदम है क्योंकि ऐसा प्रयास पहले इस पद पर रहते हुए स्मृति ईरानी ने किया था लेकिन उस वक्त फेक न्यूज़ के गंभीर परिणामों से सरकार अवगत नहीं थी। आज नहीं तो भविष्य में सरकार को ये नियम लाना ही पड़ता।
आज ख़बरों के संसार में क्रेडिबिलिटी की स्थिति ये हो गई है कि विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता कि ब्रेकिंग न्यूज़ बनकर वायरल हो रही खबर सच ही है। ऐसी ख़बरों को सारे चैनल, अख़बार और वेब पॉर्टल्स ही हवा देते हैं। आज भारत के नागरिक को समझ ही नहीं आता कि सत्य और तथ्यपरक समाचार के लिए वह कहाँ जाए।
ओटीटी को लेकर विगत तीन साल में सबसे अधिक याचिकाएं कोर्ट में डाली गई हैं। लोग अपनी संतानों के लिए चिंतित हैं। जिस तरह का कंटेंट ओटीटी से आ रहा है, वह अत्यंत आपत्तिजनक होने के साथ हमारी युवा पीढ़ी के लिए चारित्रिक पतन का काम कर रहा है। अभी तो केंद्र ने केवल आदेश जारी किया है।
आने वाले समय में पता चलेगा कि सूचना व प्रसारण मंत्रालय इस विषय में कैसी गाइडलाइन जारी करने वाला है। हमें ये भी देखना होगा कि कहीं ये नियम सेंसर बोर्ड जैसे कमज़ोर तो नहीं होंगे, जो पद्मावत और हैदर जैसी तर्कहीन-विवादित फिल्मों को झटके में अनापत्ति प्रमाण पत्र दे डालते हैं। जिस तरह का कंटेंट ओटीटी पर आ रहा है, उसने सभी सीमाओं को पार कर दिया है।
इस भयानक कंटेंट को काबू करने के लिए निश्चय ही सख्त नियमों की दरकार होगी। इस आदेश की खबर आते ही फिल्म उद्योग की ओर से विरोध शुरु किया जा चुका है। फिल्म निर्देशक हंसल मेहता को ऐसा लग रहा है कि ये आदेश उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुठाराघात है।
यहाँ सूचना व प्रसारण मंत्रालय को पारदर्शिता दिखाने की आवश्यकता है। दरअसल देश अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक नहीं चाहता बल्कि उस भाषाई गंदगी पर रोक चाहता है, जो इन फिल्मों में दिखाई जा रही है। देश चाहता है आप अपनी फिल्मों में आपत्तिजनक दृश्य न रखें, आप विवाहेतर संबंधों जैसे विषयों को गरिमा के साथ उठाए। वे इस पक्ष में कतई नहीं है कि हर्षद मेहता के जीवन का सत्य बताने से रोका जाए।
देश मुख्यतः इस प्लेटफॉर्म पर फैलाई जा रही बेहिसाब अश्लीलता के विरुद्ध है और केंद्र सरकार के नियम भी संभवतः इस गंदगी को साफ़ करने के लिए ही बनाए गए हैं। निश्चय ही नियम बनाने से पूर्व उन याचिकाओं को देखा गया होगा, जो इस प्लेटफॉर्म पर बनने वाली फिल्मों को लेकर पिछले तीन साल से लगाई जा रही है।
ओटीटी पर बनने वाली नीली फिल्मों पर अब तक सूचना व प्रसारण मंत्री ने कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया है। एकता कपूर की एक फिल्म में सेना की छवि को अश्लील बनाने का प्रयास किया गया लेकिन मंत्री जी ने एक बयान तक नहीं दिया। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मध्यप्रदेश के इन्दौर में एक व्यक्ति सेना की छवि ख़राब करने के विरुद्ध क़ानूनी लड़ाई लड़ रहा है, जबकि ये कार्य मंत्री जी को करना चाहिए था।
मंत्री जी आज तक करण जौहर पर कोई कार्रवाई न कर सके, जिसकी फिल्म गुंजन सक्सेना में वायुसेना की छवि ख़राब करने का प्रयास किया गया था। कहने का मतलब ये है कि तीर और तरकश केंद्र सरकार दे देगी लेकिन उसे चलाने वाला तीरंदाज़ तो वही पुराना है, जो निशाने पर तीर चलाना जानता ही नहीं। वैसे संभावना बन रही है कि वे इस पद पर नहीं रहेंगे। ये कहने का ठोस कारण है।
केंद्र सरकार का ये आदेश उनके ट्वीटर हैंडल पर होना चाहिए था, जो कि नहीं है। ये खबर उनके हवाले से जारी होनी चाहिए थी, जो नहीं हुई। तो इस बात की संभावना बनती है कि हम जल्दी ही नया सूचना प्रसारण मंत्री देखे, जो केंद्र के इस आदेश को सख्ती से अनुसरण करवा सके। लिजलिजे प्रकाश जी जावड़ेकर में वह क्षमता नहीं है कि बेलगाम दौड़ते बॉलीवुड के घोड़े को लगाम लगा सके।