श्वेता पुरोहित। पंचतंत्र
त्यक्ताश्चाऽयान्तरा येन बाह्यश्चाम्यतरीकृताः ।
स एव मृत्युमाप्नोति मूर्खश्चण्डरवीयथा।
अर्थात्:
अपने स्वभाव के विरुद्ध आचरण करने वाला, आत्मीयों को छोड़कर परकीयों में रहने वाला नष्ट हो जाता है। एक दिन जंगल में रहने वाला चण्डरव नाम का गीदड़ भूख से तड़पता हुआ लोभवश नगर में भूख मिटाने के लिए आ पहुँचा।
उसके नगर में प्रवेश करते ही नगर के कुत्तों ने भौंकते – भौंकते उसे घेर लिया और नोचकर खाने लगे। कुत्तों से किसी तरह जान बचाकर चण्डरव भागा। भागते-भागते जो भी दरवाज़ा पहले मिला उसी में घुस गया। वह एक धोबी के मकान का दरवाज़ा था। मकान के अन्दर एक बड़ी कड़ाही में धोबी ने नील घोलकर नीला पानी बनाया हुआ था। कड़ाही नीले पानी से भरी थी। गीदड़ जब डरा हुआ घुसा तो अचानक उस कड़ाही में जा गिरा। वहां से निकला तो उसका रंग बदला हुआ था। अब वह बिल्कुल नीले रंग का हो गया। नीले रंग में रंगा हुआ चण्डरव जब वन में पहुँचा तो सभी पशु उसको देखकर चकित रह गए। वैसे रंग का जानवर उन्होंने आज तक नहीं देखा था।
उसे विचित्र जीव समझकर शेर, बाघ, चीते भी डर- डरकर जंगल से भागने लगे। सबने सोचा, न जाने इस विचित्र पशु में कितना सामर्थ्य हो। इससे डरना ही अच्छा है।
चण्डरव ने जब सब पशुओं को डरकर भागते देखा, तो उन्हें बुलाकर बोला – पशुओ ! मुझसे डरते क्यों हो? मैं तुम्हारी रक्षा के लिए यहाँ आया हूँ। त्रिलोक के राजा ब्रह्मा ने मुझे आज ही बुलाकर कहा था कि आजकल चौपायों का कोई राजा नहीं है। सिंह-मृगादि सब राजाहीन हैं। आज मैं तुझे उन सबका राजा बनाकर भेजता हूँ, तू वहाँ जाकर सबकी रक्षा कर। इसलिए मैं यहाँ आ गया हूँ। मेरी छत्रछाया में पशु आनन्द से रहेंगे। मेरा नाम ककुद्द्रुम राजा है।
यह सुनकर शेर-बाघ आदि पशुओं ने चण्डरव को राजा मान लिया और बोले-स्वामी! हम आपके दास हैं, आज्ञापालक हैं। आगे से आपकी ही आज्ञा का पालन करेंगे।
चण्डरव ने राजा बनने के बाद शेर को अपना प्रधानमन्त्री बनाया, बाघ को नगर-रक्षक और भेड़िये को सन्तरी बनाया। अपने आत्मीय गीदड़ों को जंगल से बाहर निकाल दिया। उनसे बात भी नहीं की।
उसके राज्य में शेर आदि जीव छोटे-छोटे जानवरों को मारकर चण्डरव को भेंट करते थे। चण्डरव उनमें से कुछ भाग खाकर शेष अपने नौकर – चाकरों को बाँट देता था।
कुछ दिन तो उसका राज्य बड़ी शान्ति से चलता रहा, किन्तु एक दिन बड़ा अनर्थ हो गया।
उस दिन चण्डरव को दूर से गीदड़ों की किलकारियाँ सुनाई दीं। उन्हें सुनकर चण्डरव का रोम-रोम खिल उठा। खुशी में पागल होकर वह भी किलकारियाँ मारने लगा।
शेर-बाघ आदि पशुओं ने जब उसकी किलकारियाँ सुनीं तो वे समझ गए कि यह चण्डरव ब्रह्मा का दूत नहीं, बल्कि मामूली गीदड़ है। अपनी मूर्खता पर लज्जा से सिर झुकाकर वे आपस में सलाह करने लगे-इस गीदड़ ने तो हमें खूब मूर्ख बनाया, इसे इसका दंड दो; इसे मार डालो।
चण्डरव ने शेर-बाघ आदि की बात सुन ली। वह भी समझ गया कि अब उसकी पोल खुल गई है। अब जान बचानी कठिन है। इसलिए वह वहाँ से भागा। किन्तु शेर के पंजे से भागकर कहाँ जाता? एक ही छलाँग में शेर ने उसे दबोचकर खण्ड-खण्ड कर दिया।
इसलिए कहा गया है कि जो आत्मीयों को दुत्कार कर परायों को अपनाता है उसका नाश हो जाता है।
अपनी संगति से आप जब स्वभाव विरुद्ध काम करेंगे, अपनों को छोड़कर परायों को अपनाएँगे, तो आप पर वही आपत्ति आ जाएगी जैसे चण्डरव पर आई ।