नई दिल्ली। देश में राजनीतिक उठापटक के बीच सुब्रत राय सहारा श्री ने एक इंटरव्यू में कहा था की भारत देश में कोई विदेशी को देश चलाने की जिम्मेवारी नही देनी चाहिए। इसके पीछे उन्होने तर्क दिया। हमने तो बड़ी मुश्किल से अंग्रेजो को यहां से भगाया है, फिर विदेशी मूल के व्यक्ति को सत्ता सौंपना सही नही होगा। उनके इस बयान का मतलब यह निकाला गया की उन्होंने उस समय की ताकतवर महिला सोनिया गांधी की बिना नाम लिए उन्हें पीएम बनने से रोकने को लेकर इस तरह की टिप्पणी की थी।
इसके कुछ माह बाद ही तत्कालीन वित्त मंत्रालय और मंत्री पी चिदंबरम ने उनके कंपनी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। इसके बाद ही सरकारी एजेंसियों ने सहारा की चलती गाड़ी को वेपटरी कर दिया। निवेशकों की चिंता है यदि सहारा गलत तरीके से पैसा निवेशकों से जमा कर रही थी तो पहले ही कारवाई किया जाना चाहिए था। लेकिन लंबे समय तक धन उगाही करने की छूट या कथित मंजूरी देकर जमाकर्ताओं के साथ धोखा किया गया। बताते है केंद्र सरकार के इशारे पर आरबीआई की मदद से सेबी के द्वारा शिकंजा कसने के बाद तमाम सहारा पैरा बैंकिंग कम्पनियों की स्कीम्स रोक दी गईं और कम्पनी की आय सीमित होती चली गई।
इस दौरान निवेशक जमाकर्ताओं की देनदारी लगातार बढ़ती रही और कम्पनी का वित्तीय संकट डगमगा गया। सरकारों डंडे के बाद सहारा कम्पनी की सेहत को ऐसा नुकसान हुआ की, जिन्होंने छोटी बचत से बड़े सपने पूरे करने के लिए अपनी खून-पसीने की कमाई सहारा के हाथों में बड़ा मुनाफा आने की कीमत पर सौंपी थी। वो बर्बादी के कगार पर आ गए। कईयों की बेटी की शादी रुक गई तो कई ने जमा धन की आस में मौत के आगोश में समा गए लेकिन उन्हें रुपए नही मिले।
निवेशकों को कही से इंसाफ अबतक नहीं मिले है जबकि सरकारी एजेंसी के पक्ष में इंसाफ की आखरी दहलीज उच्चतम न्यायालय ने जुर्माना नही भरने और निवेशकों को भुगतान करने में असफल रहने पर तब सुब्रत राय को 4 मार्च 2014 के दिन तिहाड़ जेल भेज दिया था। बाद में जैसे तैसे पैसे के इंतजाम भी हुए और सुब्रत राय को मां के निधन पर पैरोल भी मिला लेकिन तब तक सहारा ग्रुप अर्स से फर्श तक पहुंच गया । बताते है सहारा में चल रही गड़बड़ियों को लेकर खुलासा साल 2010 में 4 जनवरी को रोशन लाल के नाम से नेशनल हाउसिंग बैंक को एक लेटर मिलने के बाद हुआ था।
जिसमे आवेदक ने सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉरपोरेशन और सहारा हाउसिंग इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन की तरफ से जारी बॉन्ड्स की जांच का अनुरोध किया था। इसी को सरकारी एजैंसी ने अपना हथियार बनाया था। आरोप था कि सहारा ग्रुप की कंपनियों के बॉन्ड नियमों के मुताबिक जारी नहीं किए गए और इस दौरान इसका मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। जहा सुनवाई के बाद अदालत ने सहारा ग्रुप को निवेशकों के 24,029 करोड़ रुपए 15 प्रतिशत ब्याज (सालाना) के साथ वापस करने का आदेश दिया था। फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सहारा ग्रुप की कंपनियों ने सेबी के कानून को उल्लंघन किया है और उन लोगों से भी पैसे इकट्ठा किए गए जो बैंकिंग का लाभ ही नहीं उठा सकते थे।इस मामले में मोदी सरकार के सत्ता में आने पर लोगो को उम्मीद काफी बढ़ गई थी।
उन्हे लगा था अब पैसा जरूर मिल जाएगा। खासकर मोदी के खास अमित शाह को सहकारिता मंत्रालय मिलने पर तो जमाकर्ता फूले नहीं समा रहे थे लेकिन उन्हे अब निराशा हाथ लगी है। मोदी सरकार ने संसद में एक प्रश्न के जवाब में बताया था कि सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने 19,400.87 करोड़ रुपए और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड ने 6380.50 करोड़ रुपये जुटाए थे। इन पैसों पर सहारा की तरफ से जानकारी दी गई थी कि वह निवेशकों के पैसे वापस करना चाहता है लेकिन यह पैसे सेबी का पास फंसे हैं।
इसके बाद वर्तमान मोदी सरकार इसमें पहल करते हुए कोर्ट से मंजूरी पर निवेशकों की रकम को लौटाने के लिए एक पोर्टल शुरू किया । शायद यह भी आगामी लोकसभा चुनाव जीतने के लिए वोटर्स को बरगलाने का एक तरीका हो सकता है क्योंकि महज 25 हजार करोड़ से सिर्फ पांच हजार करोड़ रकम लौटाने का फैसला सही नही है। वैसे भी इसमें सारे निवेशक और सहारा कर्मी का हित भी शामिल नहीं है। सवाल उठ रहा है अब बाकी पैसों का क्या होगा। आखिर इन पैसों पर सरकार और सेबी की नजर क्यों है। सरकारी एजेंसी सेबी और अदालत का आगे क्या रुख होगा और निवेशक कितने दिनों तक और ठगा महसूस करेंगे।
जारी है..