नई दिल्ली। सुब्रत रॉय के निधन के बाद 25 हजार करोड़ रुपये की जमा रकम का क्या होगा। यह कोई भी एजेसी द्वारा स्पष्ट नहीं किया गया है। अदालत से लेकर सेबी तथा केंद्र सरकार भी इस मसले पर चुप है। इस बीच कही से निवेशक तथा सहारा कर्मी को न्याय मिलता नही दिख रहा। आशंका है इस रकम का सरकारी एजेंसी बेजा न इस्तेमाल कर ले और निवेशक पूर्व की तरह खुद को ठगा महसूस करते रहे। इस रकम को जब्ती से बचाने के लिए सुब्रत राय अदालत तक गए ताकि रकम वापिस मिल जाए।
लेकिन सफलता नहीं मिली। ज्ञात हो सहारा मसले पर सेबी ने कहा था कि 31 मार्च 2023 तक बैंकों में सहारा की कुल जमा राशि करीब 25,163 करोड़ रुपये है। अब सुब्रत रॉय के मौत के बाद इस जमा रकम का क्या होगा। इसकी चर्चा बिलकुल नहीं हो रही और सभी एजेंसियां चुप्पी साधे हुई है। मालूम हो सेबी ने 2011 में सहारा ग्रुप की दो कंपनियों सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉर्पोरेशन लिमिटेड और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड को वैकल्पिक रूप से पूर्ण परिवर्तनीय बांड- या (ओएफसीडी) के रूप में पहचाने जाने वाले कुछ बॉन्ड्स के जरिए करीब तीन करोड़ निवेशकों से जुटाई गए रकम को वापस करने का आदेश दिया था।
अपने आदेश में कहा था कि दोनों कंपनियों ने उसके रूल्स और रेगुलेशन का उल्लंघन करके पैसा जुटाया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त 2012 को सेबी के निर्देशों को बरकरार रखा और दोनों कंपनियों को निवेशकों से इकट्ठा किए हुए पैसे को 15 फीसदी ब्याज के साथ वापस करने को कहा था। इसके बाद सहारा को निवेशकों का पैसा लौटाने के लिए सेबी के पास अनुमानित 24,000 करोड़ रुपये जमा करने को कहा गया लेकिन सहारा समूह लगातार यह कहता रहा कि उसने पहले ही 95 फीसदी से ज्यादा इंवेस्टर्स को डायरेक्ट तरीके से पेमेंट कर दिया है।
सेबी के अनुसार सहारा समूह की दो कंपनियों के इंवेस्टर्स को 11 सालों में 138.07 करोड़ रुपये वापस किए गए। इस बीच रीपेमेंट के लिए खास तौर से खोले गए बैंक खातों में जमा रकम बढ़कर 25,000 करोड़ रुपये से ज्यादा हो गई है परंतु इस रकम का क्या होगा। यह बताने को अब भी कोई आगे नहीं आ रहा। सेबी के अकाउंट में पड़े 25,000 करोड़ एक बार फिर से चर्चा का विषय बन गया है। ऐसे में निवेशकों को इस बात की चिंता है कि इन पैसों का क्या होगा और इन्हें क्लेम कौन करेगा। क्या रकम सरकार वितरण करेगी या सहारा को वापस होगा या फिर जब्त होगी। इससे सहारा कर्मी और निवेशक परेशान है।