नई दिल्ली– सुब्रत राय सहारा के जाने के बाद क्या रेलवे के बाद सबसे बड़ी नियोक्ता रखने का दावा करने वाली सहारा बेसहारा हों गई है। सहारा में काम करने वाले कर्मी से लेकर निवेशक परेशान है, अब उनका भविष्य अंधकारमय तो नही हो जाएगा। जिंदा रहते सुब्रत रॉय सहाराश्री ने ग्लैमर तथा धन तो खूब बनाए, लेकिन किसी विशेष उद्यम में निवेश कर लाभ कमाने की बजाय वो फर्जीवाड़े के दलदल में फंसते चले गए।
चिटफंड से शुरू होकर सहारा ने एयरलाइंस से लेकर मीडिया हाउस, रियल एस्टेट, अस्पताल और एफएमसीजी तक के कारोबार में निवेश किया लेकिन कोई सौदा टिकाऊ फायदे का साबित नही हुआ। बताते है, सहारा श्री सुब्रत राय के सलाहकार मंडली कभी भी उनको सही राय नही दिया क्योंकि उनके आसपास व्यावसायिक दक्षता वाले लोगो की संख्या की शायद घोर कमी थी। उनका पैरा बैंकिंग, जो कम्पनी का मुख्य व्यवसाय रहा।
आज कानूनी पचरे की वजह से दम तोड़ती नजर आती है। भारत या विश्व में सहारा के खिलाफ अनूठा मामला लंबित है,जिसमे 25 हजार करोड़ की भारी भरकम राशि जमा होने के बाद भी निवेशक और सहारा कर्मी धन के अभाव में भटक रहे है। इस पर मानवता की पहल न तो अदालत और ना ही सेबी की तरफ से की गई।
ऐसा प्रतीत होता है चुनावी फायदे के लिए केंद्र सरकार ने भी सहारा सेबी विवाद के जरिए सिर्फ अपना हित साधा है। पोर्टल के द्वारा सहारा के निवेशकों को धन लौटाने का वादा किया गया लेकिन उसकी रफ्तार बेहद धीमी है। इस पोर्टल में उन कर्मियों के लिए कोई स्कीम नही है जो सहारा में कार्य करते हुए भी अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी के इंतजाम में विफल साबित हो रहे है। केंद्र सरकार, अदालत और सेबी को जब निवेशक की चिंता नहीं तो वो फिर कर्मी के पीठ पर क्यों मदद की हाथ रखेंगे।
बताते है साल 2009 में जब सहारा का व्यवसाय उच्चतम शिखर पर था, तब कम्पनी ने अपनी इंफ्रास्ट्रक्चर कम्पनी ‘सहारा प्राइम सिटी’ का आईपीओ लाने की योजना बनाई और इसके लिए सेबी में आवेदन भेज दिया था। उससे पहले आरबीआई ने भी सहारा पर नकेल कसने की कोशिश की थी। आरबीआई हो या सेबी सरकार के अधीन काम करती है और जब सेबी ने आईपीओ आवेदन की स्क्रीनिंग शुरू की तो उसे पता चला कि सहारा इंडिया रियल एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड और सहारा इंडिया हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड ने बगैर लिस्टिंग करीब तीन करोड़ निवेशकों से लगभग 24 हजार करोड़ रुपए जुटा लिए है।
सेबी ने इसे अवैध उगाही माना और आईपीओ का आवेदन खारिज करते हुए 12 हजार करोड़ का जुर्माना सहारा पर लगा दिया। इसके अलावा साथ ही सहारा समूह की अन्य कम्पनियों पर भी जांच बिठा दी। इसके बाद ही कंपनी का पतन शुरू हुआ लेकिन सवाल यह उठा अचानक नींद से सरकारी एजेंसी कैसे जग गई।
यदि नियमों को ताक पर रख कर कंपनी चल रहा था तो पहले क्यों नहीं नकेल कसी गई। मतलब साफ था साल 1978 से सहारा के सफर पर विराम देने के लिए राजनैतिक साजिश रची गई थी और हमेशा नेताओ को एक इशारे पर करीब बुलाने का माद्दा रखने वाले सुब्रत राय नजदीक आई उस समय के मुसीबत को टाल नहीं पाए जो आने वाले समय में उनके लिए पतन की वजह बनी।
क्रमश..